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SCS न्यायाधिकरण के फैसले के खिलाफ चीन ने जारी किया श्वेत पत्र

बीजिंग : चीन ने आज संयुक्त राष्ट्र समर्थित न्यायाधिकरण के उस फैसले के खिलाफ श्वेत पत्र जारी किया है, जिसने दक्षिण चीन सागर (एससीएस) में उसके ‘ऐतिहासिक अधिकारों’ को निरस्त कर दिया है. श्वेत पत्र जारी करते हुए चीन ने कहा कि इस रणनीतिक क्षेत्र में बीजिंग का दावा 2000 साल पुराना है. चीन को […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 13, 2016 12:09 PM

बीजिंग : चीन ने आज संयुक्त राष्ट्र समर्थित न्यायाधिकरण के उस फैसले के खिलाफ श्वेत पत्र जारी किया है, जिसने दक्षिण चीन सागर (एससीएस) में उसके ‘ऐतिहासिक अधिकारों’ को निरस्त कर दिया है. श्वेत पत्र जारी करते हुए चीन ने कहा कि इस रणनीतिक क्षेत्र में बीजिंग का दावा 2000 साल पुराना है. चीन को कूटनीतिक तौर पर एक बड़ा झटका देते हुए स्थायी मध्यस्थता अदालत ने कल रणनीतिक लिहाज से महत्वपूर्ण दक्षिण चीन सागर में इस कम्युनिस्ट देश के दावों को निरस्त कर दिया था. हेग स्थित अदालत ने कहा है कि चीन ने फिलीपीन के संप्रभुता के अधिकारों का उल्लंघन किया है. उसने कहा कि चीन ने कृत्रिम द्वीप बनाकर ‘मूंगे की चट्टानों वाले पर्यावरण को भारी नुकसान’ पहुंचाया है.

श्वेत पत्र में कहा गया कि चीन का 2000 साल से दक्षिण चीन सागर पर दावा है और याचिका दायर करने वाला फिलीपीन चीनी क्षेत्र पर कब्जा कर रहा है. इसमें कहा गया कि दक्षिण चीन सागर में चीन और फिलीपीन के बीच विवादों के मूल में वे क्षेत्रीय मुद्दे हैं, जो 1970 के दशक में शुरू हुई फिलीपीन की घुसपैठ और कुछ द्वीपों एवं चीन के नांशा कुंदाओ (नांशा द्वीपसमूहों) पर अवैध कब्जे के कारण पैदा हुए हैं. ‘चीन और फिलीपीन के बीच दक्षिण चीन सागर को लेकर उपजे प्रासंगिक विवादों को बातचीत के जरिए सुलझाने को तैयार है चीन’ शीर्षक वाले दस्तावेज में कहा गया, ‘फिलीपीन ने इस तथ्य को छिपाने के लिए और अपने क्षेत्रीय दावे बरकरार रखने के लिए कई बहाने गढे हैं.’

स्टेट काउंसिल इंफॉर्मेशन ऑफिस की ओर से जारी श्वेत पत्र में कहा गया कि फिलीपीन का दावा इतिहास और अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुसार आधारहीन है. पत्र में कहा गया कि इसके अलावा, समुद्र के अंतरराष्ट्रीय कानून के विकास के साथ दक्षिण चीन सागर के कुछ नौवहन क्षेत्रों को लेकर चीन और फिलीपीन में नौवहन सीमा-निर्धारण संबंधी विवाद भी पैदा हो गया. श्वेत पत्र में फिलिपीन पर हमला बोलते हुए कहा गया कि मनीला ने चीन और फिलीपीन के बीच के द्विपक्षीय सहमति को नजरअंदाज करते हुए बार-बार प्रासंगिक विवादों को जटिल करने वाले कदम उठाए हैं, जिससे वे बढे ही हैं.

इस श्वेत पत्र में कहा गया है कि फिलिपीन ने घुसपैठ और अवैध कब्जा करके चीन के नांशा द्वीपसमूह के कुछ द्वीपों पर सैन्य प्रतिष्ठान बनाए हैं. उसने जानबूझकर चीन की ओर से लगाए गए सर्वेक्षण संकेतक नष्ट कर दिए और एक सैन्य वाहन को अवैध रूप से चलाकर चीन के रेनाई जियाओ द्वीप पर अवैध कब्जा करने की कोशिश की. इसमें कहा गया कि फिलिपीन चीन के हुआनग्यान दाओ के क्षेत्र पर भी दावा करता है. यह इसे अवैध रूप से कब्जाने की कोशिश कर चुका है और इसने जानबूझकर हुआनग्यान दाओ की घटना को अंजाम दिया था.

श्वेत पत्र के अनुसार, फिलिपीन ने बार-बार चीनी मछुआरों को प्रताडित किया और मछली पकडने वाली नौकाओं पर हमला किया. पत्र में कहा गया है कि जनवरी 2013 में, फिलिपीन गणतंत्र की तत्कालीन सरकार ने एकपक्षीय तरीके से दक्षिण चीन सागर मध्यस्थता शुरू कर दी थी. ऐसा करके उसने द्विपक्षीय वार्ता के जरिए विवादों को सुलझाने के चीन के साथ चल रहे समझौते का उल्लंघन किया.

इसमें कहा गया, ‘फिलिपीन ने तथ्यों को तोडा-मरोडा है, कानूनों की गलत व्याख्या की है और बहुत से झूठ गढे हैं ताकि दक्षिण चीन सागर में चीन की क्षेत्रीय संप्रभुता और समुद्री अधिकार एवं हितों को नकारा जा सके.’ आगे श्वेत पत्र में कहा गया है कि फिलिपीन के एकपक्षीय अनुरोध पर स्थापित न्यायाधिकरण का यह अधिकारक्षेत्र नहीं है और इसकी ओर से सुनाए गए फैसले अमान्य हैं और ये बाध्यकारी नहीं हैं. चीन ऐसे फैसलों को न तो स्वीकार करता है और न ही मान्यता देता है.

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