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दक्षिण चीन सागर पर मुंह की खाने के बाद ‘बौखलाये” चीन ने फिलीपीन पर लगाये बेहद गंभीर आरोप

इंटरनेट डेस्क/एजेंसी नयी दिल्ली/बीजिंग : साउथ चाइना शी यानी दक्षिण चीन सागर पर मंगलवार को हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण के फैसले से चीन की बौखलाहट बढ़ गयी है. चीन की सरकार व मीडिया ने इसे बड़ा मुद्दा बनाते करो या मरो का स्वरूप दे दिया है. चीन ने न्यायाधिकरण में शामिल जापानी न्यायाधीश को तो […]


इंटरनेट डेस्क/एजेंसी


नयी दिल्ली/बीजिंग : साउथ चाइना शी यानी दक्षिण चीन सागर पर मंगलवार को हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण के फैसले से चीन की बौखलाहट बढ़ गयी है. चीन की सरकार व मीडिया ने इसे बड़ा मुद्दा बनाते करो या मरो का स्वरूप दे दिया है. चीन ने न्यायाधिकरण में शामिल जापानी न्यायाधीश को तो कोसा ही है, साथ ही अमेरिका को भी खरी-खोटी सुनाई है. चीन की मीडिया ने फैसला आने से पहले ही अपने सेना को इस मुद्दे पर एक्टिव मोड में आने की नसीहत दे दी थी, जिसका असर फैसला आने के साथ दिखा जब चीन के रक्षा मंत्रालय ने भी अपनी सेना को हर परिस्थिति का मुकाबला करने के लिए तैयार रहने को कहा. यानी इस मुद्दे पर वह युद्ध व सीमित संघर्ष के लिए मानसिक रूप से तैयार है. वहीं, अमेरिकी सांसदों ने अपनी सरकार ने कहा है कि वह अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण के फैसले को लागू करवाने के लिए हर प्रयास करे और जरूरत हो तो सैन्य ताकत का भी इस्तेमाल किया जाये. जाहिर है अब चीन व अमेरिका के बीच इस मुद्दे पर नये सिरे से संघर्षपूर्ण स्थिति बनेगी और यह शीतयुद्ध वाली स्थिति भी हो सकती है. उधर, आजचीनने इस मुद्दे पर एक श्वेत पत्रलायाहै और उसमें कहा है कि दक्षिण चीन सागरकेरणनीतिक क्षेत्र पर बीजिंग का दावा 2000 साल पुराना है.


चीनकी न्यूज वेबसाइटचाइनाडेलीनेविशेषज्ञों के हवाले से लिखा है कि चीन में साउथ चीन में चीन को ब्लॉक करने के फैसले में फिलीपीन के पीछे अमेरिका का हाथ है. वेबसाइट ने लिखा है कि इस क्षेत्र में फौजी व कूटनीतिक सक्रियता बढ़ेगी. चाइनीज एकेडमी में यूएस स्टडीज पर रिसर्च करने वाले ताओ वेनझाओ को कोट करते हुए वेबसाइट ने लिखा है कि हमलोग यह देखते रहे हैं कि वाशिंगटनने स्वयं कभी समुद्र के संबंध में नियमों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलनों की कभी पुष्टि नहीं की, वह इस मुद्दे पर काफी लंबे अरसे से इस मुद्दे पर व मध्यस्थता मामले में फिलीपीन को सपोर्ट व प्रोत्साहित करता रहा है.


इसी तरहशंघाई जियातोंग यूनिवर्सिटी के जापान स्टडी सेंटर केडायरेक्टर वांगसाओपूको कोट करते हुए वेबसाइटने लिखा है कि जापान ने स्वयं को एशिया प्रशाांत क्षेत्र में पुनर्संतुलन रणनीति के सहयोगी की भूमिका में मान लिया है, साउथ चीन सागर इसका एक उदाहरण है.


इसी तरह रूलिंग नल एंड वाइड फैसला अमान्य नाम से एक स्टोरी लिखी गयी है, जिसमें चीन के राष्ट्रपति के हवाले से अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण के फैसले को नकारा गया है. इसमें चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के हवाले से कहा गया है कि चीन विवादों को सीधे वार्ताकर सुलझाना चाहता है, लेकिन उसकी सार्वभौमिकता किसी भी परिस्थिति में हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण के फैसले से प्रभावित नहीं होगी. इसी तरह एक अन्य आलेख लिखा गया है : वाय इज द इनिटिएशन आॅफ आर्बिट्रेशन एंगेस्ट लॉ? यानी, मध्यस्थता की पहल नियम के विरुद्ध क्यों है? इस आलेख में बिंदुवार न्यायाधिकरण के फैसले को खारिज करने के पीछे तर्क दिये गये हैं. इसमें फिलीपीन पर झूठ बोलने व कभी इस मुद्दे पर वार्ता नहीं करने का आरोप लगाया गया है.



चीन के दावे निरस्त, बनाये कृत्रिम द्वीप


चीन को कूटनीतिक तौर पर एक बड़ा झटका देते हुए स्थायी मध्यस्थता अदालत ने कल रणनीतिक लिहाज से महत्वपूर्ण दक्षिण चीन सागर में इस कम्युनिस्ट देश के दावों को निरस्त कर दिया था.

हेग स्थित अदालत ने कहा है कि चीन ने फिलीपीन के संप्रभुता के अधिकारों का उल्लंघन किया है. उसने कहा कि चीन ने कृत्रिम द्वीप बनाकर ‘‘मूंगे की चट्टानों वाले पर्यावरण को भारी नुकसान’ पहुंचाया है.


क्या है श्वेत पत्र में?


चीन द्वारा जारी किये गये श्वेत पत्र में कहा गया कि चीन का 2000 साल से दक्षिण चीन सागर पर दावा है और याचिका दायर करने वाला फिलीपीन चीनी क्षेत्र पर कब्जा कर रहा है. इसमें कहा गया कि दक्षिण चीन सागर में चीन और फिलीपीन के बीच विवादों के मूल में वे क्षेत्रीय मुद्दे हैं, जो 1970 के दशक में शुरू हुई फिलीपीन की घुसपैठ और कुछ द्वीपों एवं चीन के नांशा कुंदाओ :नांशा द्वीपसमूहों: पर अवैध कब्जे के कारण पैदा हुए हैं.

‘‘चीन और फिलीपीन के बीच दक्षिण चीन सागर को लेकर उपजे प्रासंगिक विवादों को बातचीत के जरिए सुलझाने को तैयार है चीन’ शीर्षक वाले दस्तावेज में कहा गया, ‘‘फिलीपीन ने इस तथ्य को छिपाने के लिए और अपने क्षेत्रीय दावे बरकरार रखने के लिए कई बहाने गढ़े हैं.’ स्टेट काउंसिल इन्फॉर्मेशन ऑफिस की ओर से जारी श्वेत पत्र में कहा गया कि फिलीपीन का दावा इतिहास और अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुसार आधारहीन है.

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दक्षिण चीन सागर पर मुंह की खाने के बाद ‘बौखलाये'' चीन ने फिलीपीन पर लगाये बेहद गंभीर आरोप 2


दक्षिण चीन सागर के बारे में मीडिया को चीन के दावों की जानकारी देते चीनी अधिकारी.


पत्र में कहा गया कि इसके अलावा, समुद्र के अंतरराष्ट्रीय कानून के विकास के साथ दक्षिण चीन सागर के कुछ नौवहन क्षेत्रों को लेकर चीन और फिलीपीन में नौवहन सीमा-निर्धारण संबंधी विवाद भी पैदा हो गया.

श्वेत पत्र में फिलिपीन पर हमला बोलते हुए कहा गया कि मनीला ने चीन और फिलीपीन के बीच के द्विपक्षीय सहमति को नजरअंदाज करते हुए बार-बार प्रासंगिक विवादों को जटिल करने वाले कदम उठाए हैं, जिससे वे बढे ही हैं.


फिलीपीन ने हमारे द्वीपों पर बनाये हैं सैन्य ठिकाने : चीन


इस श्वेत पत्र में कहा गया है कि फिलीपीन ने घुसपैठ और अवैध कब्जा करके चीन के नांशा द्वीपसमूह के कुछ द्वीपों पर सैन्य प्रतिष्ठान बनाए हैं. उसने जानबूझकर चीन की ओर से लगाए गए सर्वेक्षण संकेतक नष्ट कर दिए और एक सैन्य वाहन को अवैध रूप से चलाकर चीन के रेनाई जियाओ द्वीप पर अवैध कब्जा करने की कोशिश की.


मछुआरों को प्रताड़ित करने का आरोप


इसमें कहा गया कि फिलिपीन चीन के हुआनग्यान दाओ के क्षेत्र पर भी दावा करता है. यह इसे अवैध रूप से कब्जाने की कोशिश कर चुका है और इसने जानबूझकर हुआनग्यान दाओ की घटना को अंजाम दिया था. श्वेत पत्र के अनुसार, फिलिपीन ने बार-बार चीनी मछुआरों को प्रताड़ित किया और मछली पकड़ने वाली नौकाओं पर हमला किया.

पत्र में कहा गया है कि जनवरी 2013 में, फिलिपीन गणतंत्र की तत्कालीन सरकार ने एकपक्षीय तरीके से दक्षिण चीन सागर मध्यस्थता शुरु कर दी थी. ऐसा करके उसने द्विपक्षीय वार्ता के जरिए विवादों को सुलझाने के चीन के साथ चल रहे समझौते का उल्लंघन किया. इसमें कहा गया, ‘‘फिलिपीन ने तथ्यों को तोड़ा-मरोड़ा है, कानूनों की गलत व्याख्या की है और बहुत से झूठ गढ़े हैं ताकि दक्षिण चीन सागर में चीन की क्षेत्रीय संप्रभुता और समुद्री अधिकार एवं हितों को नकारा जा सके.’ आगे श्वेत पत्र में कहा गया है कि फिलिपीन के एकपक्षीय अनुरोध पर स्थापित न्यायाधिकरण का यह अधिकार क्षेत्र नहीं है और इसकी ओर से सुनाए गए फैसले अमान्य हैं और ये बाध्यकारी नहीं हैं. चीन ऐसे फैसलों को न तो स्वीकार करता है और न ही मान्यता देता है.


अमेरिकी सांसदों ने फैसले के क्रियान्वयन पर दिया जोर

वाशिंगटन : शीर्ष अमेरिकी सांसदों ने कहा है कि अमेरिका को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि दक्षिण चीन सागर में अधिकार संबंधी चीन के दावों के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण के फैसले को लागू किया जाए और यदि आवश्यकता पड़े तो उसे इस रणनीतिक क्षेत्र में ‘‘यथास्थिति’ बनाए रखने के लिए सैन्य संसाधनों का भी इस्तेमाल करना चाहिए.

सीनेटर जॉनी अर्नेस्ट ने छह रिपब्लिकन सीनेटरों के समूह का नेतृत्व करते हुए एक प्रस्ताव पेश किया जिसमें सभी पक्षों से हेग स्थित न्यायाधिकरण के फैसले का सम्मान करने की अपील की गयी है. न्यायाधिकरण ने फैसला सुनाया है कि ‘नाइन-डैश लाइन’ में पड़ने वाले समुद्री क्षेत्र या इसके संसाधनों पर ऐतिहासिक अधिकारों के दावे के लिए चीन के पास कोई कानूनी आधार नहीं है.

प्रस्ताव में दक्षिण चीन सागर में ‘‘बल प्रयोग के जरिए यथास्थिति बदलने ‘ के किसी भी प्रयास का विरोध करने की बात की गयी है. यह प्रस्ताव चीन से दक्षिण चीन सागर में सभी असैन्य एवं सैन्य गतिविधियों को रोकने की अपील करता है और अमेरिका एवं फिलीपीन के बीच आपसी सहयोग एवं सुरक्षा संधि की पुन: पुष्टि करता है. इसमें अमेरिका के विदेश मंत्री जॉन केरी से अपील कीगयी है कि वह दक्षिण चीन सागर के उपर उड़ान भरने और नौवहन की स्वतंत्रता के प्रति अपना समर्थन दिखाने के लिए ‘‘सभी राजनयिक माध्यमों’ का इस्तेमाल करें.

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