तोड़ा था अंगरेज कलक्टर का दंभ
-राजा राममोहन राय के जन्म दिवस 22 मई पर विशेष-देश के इतिहास में राजा राममोहन राय की पहचान भारतीय पुनर्जागरण आंदोलन के जनक व आधुनिक युग के अग्रदूत के रूप में है. उन्होंने रूढ़िवादी परंपराओं का विरोध करते हुए नारी उत्थान और सती प्रथा उन्मूलन की मशाल जलायी. इन विरल विशिष्टताओं के साथ-साथ वे अन्याय, […]
-राजा राममोहन राय के जन्म दिवस 22 मई पर विशेष-
देश के इतिहास में राजा राममोहन राय की पहचान भारतीय पुनर्जागरण आंदोलन के जनक व आधुनिक युग के अग्रदूत के रूप में है. उन्होंने रूढ़िवादी परंपराओं का विरोध करते हुए नारी उत्थान और सती प्रथा उन्मूलन की मशाल जलायी. इन विरल विशिष्टताओं के साथ-साथ वे अन्याय, पक्षपात और भेदभावपूर्ण दमनात्मक मानसिकता के भी प्रबल विरोधी थे. उनके इस व्यक्तित्व का गवाह है बिहार का भागलपुर.
।।शिव शंकर सिंह पारिजात।।
यह जानकारी ही लोगों को होगी कि राजा राममोहन राय ने भागलपुर में नौकरी की थी. एक सरकारी कर्मचारी होते हुए भी अपनी अस्मिता और स्वाभिमान को ठेस पहुंचने पर तत्कालीन अंगरेज कलक्टर की गवर्नर जनरल लार्ड मिंटो से शिकायत की थी. इसमें अंतत: उनका पलड़ा भारी रहा और अंगरेज कलक्टर को हुकूमत से फटकार मिली. आज से 204 वर्ष पहले और आजादी की 1857 की पहली लड़ाई से भी 48 साल पूर्व परतंत्र भारत में राजा राममोहन राय ने अपने स्वाभिमान और निडर व्यक्तित्व का परिचय दिया था.
वह आजादी के 66 वर्ष बाद स्वतंत्र भारत में अकल्पनीय प्रतीत होता है. डॉ रमण सिन्हा ने अपनी पुस्तक ‘भागलपुर : अतीत एवं वर्तमान’ में राजा राममोहन राय से जुड़े इस प्रकरण का रोचक विवरण दिया है. राजा राममोहन राय का जन्म कृष्णनगर हुगली जिले के निकट राधानगर गांव में 22 मई, 1722 को हुआ था. उनके पिता राधाकांत राय नवाब सिराजुद्दौला के शासन में एक अधिकारी थे. राममोहन ने पटना में फारसी, अरबी व वाराणसी में संस्कृत का अध्ययन किया.
1815 में कलकत्ता में आत्मीय सभा व 1828 में ब्रह्म समाज की स्थापना की. 1818 में सती प्रथा के उन्मूलन हेतु आंदोलन किया, जिसके परिणामस्वरूप 1829 में गवर्नर जनरल लार्ड विलियम बेटिंक ने सती प्रथा को अवैध घोषित कर दिया, जो भारतीय इतिहास में एक युगांतकारी घटना है. सन् 1830 में दिल्ली के तत्कालीन बादशाह अकबर द्वितीय 1806-1837 ने उन्हें राजा की उपाधि से नवाजा.
राजा राममोहन राय की डिगबी साहब नाम के एक अंगरेज मजिस्ट्रेट से पुरानी पहचान थी. डिगबी ने उन्हें बाद में सरकारी नौकरी मुंशी के रूप में रख लिया. राय ने डिगबी के साथ रामगढ़, जसौर, रंगपुर सहित भागलपुर में भी काम किया. भागलपुर कलेक्ट्रेट में वे 1808 से 1809 तक दीवानी सिसिरस्तेदार (कार्यालय अधीक्षक) रहे. हालांकि, वे भागलपुर में एक वर्ष तक ही रहे, पर इस अल्प अवधि में ही कुछ ऐसी घटनाएं हुईं, जिनका न सिर्फ उनके जीवन में वरन भारतीय इतिहास में भी स्थान है. भागलपुर में अंगरेज कलक्टर के साथ घटी घटना का विवरण (राममोहन रचनावली, संपादक अजीत कुमार घोष, कोलकाता से छपा, पेज 431 से 433 तक में वर्णित) इस प्रकार है. भागलपुर में 1809 में हुई एक घटना लगभग दबी हुई है, जब राजा राममोहन राय का भागलपुर के तत्कालीन कलक्टर सर फ्रेडरिक हेमिल्टन से विवाद हुआ था. उस समय भारत में इस्ट इंडिया कंपनी का शासन था. बिहार भी बंगाल के साथ अविभाजित था.
एक दिन राम मोहन राय पालकी पर चढ़ कर गंगा घाट संभवत: वर्तमान आदमपुर घाट से शहर की ओर जा रहे थे. उसी समय भागलपुर के कलक्टर हेमिल्टन घोड़े पर सैर के लिए निकले थे. देसी बाबू राममोहन पालकी में परदे लगे थे. इसलिए कलक्टर को देख नहीं सके. उस समय के शिष्टाचार के अनुसार भारतीयों को अंगरेज अधिकारियों के आगे सवारी से गुजरना मना था. अभिवादन करना अनिवार्य था. राममोहन वैसा नहीं कर सके. आग-बबूला हो कलक्टर साहब ने पालकी रुकवा कर राममोहन को बुरा-भला कहना शुरू कर दिया. राममोहन ने बहुत समझाने की कोशिश की, लेकिन कलक्टर का गुस्सा शांत नहीं हुआ. जब देखा कि उनका गुस्सा ठंडा नहीं हो रहा है, तो आगे समझाना व्यर्थ समझ कर राममोहन राय हेमिल्टन साहब के सामने ही पालकी पर पुन: सवार होकर आगे निकल गये.
राममोहन ने कलक्टर की इस करतूत को अपना अपमान समझा. तब उन्होंने 12 अप्रैल, 1809 को भागलपुर कलक्टर के व्यवहार के विरोध में तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड मिंटो के पास एक लंबी याचिका भेजी. शायद यह उनकी पहली अंगरेजी रचना थी. यह घटना राममोहन के साहस एवं स्वाभिमान की परिचायक थी. गवर्नर जनरल को लिखा उनका यह पत्र आज ऐतिहासिक दस्तावेज है. इसमें उन्होंने पूरी बेबाकी के साथ घटना का पूरा विवरण देते हुए स्पष्ट लिखा कि एक अंगरेज सरकारी अधिकारी द्वारा उनकी नाराजगी का चाहे जो भी कारण हो, किसी देसी प्रतिष्ठित सज्जन को इसका प्रकार बेइज्जत करना असहनीय यातना है. इस प्रकार का र्दुव्यवहार बेलगाम स्वेच्छाचार ही कहा जायेगा. राजा राममोहन राय के आवेदन के मजमून ने गवर्नर जनरल और कलकत्ता के फोर्ट विलियम के अधिकारियों पर प्रभावकारी असर डाला. गवर्नर जनरल लॉर्ड मिंटो ने इस पर अपने न्यायिक सचिव को भागलपुर के मजिस्ट्रेट से घटना की पूरी जानकारी तलब करने का निर्देश दिया. रिपोर्ट के साथ संलग्न होकर भागलपुर के कलक्टर का भी बयान आया, इसमें राममोहन राय को अपमानित करने या उनके साथ गाली-गलौज की बात से पूरी तरह से इनकार किया गया था. पर जांच में कलक्टर की यह बात झूठी पायी गयी.
अंतत: गवर्नर जनरल के न्यायिक सचिव ने भागलपुर के मजिस्ट्रेट को इस तीखी टिप्पणी के साथ पत्र लिखा कि वे आशा करते हैं कि सर फ्रेडरिक हेमिल्टन को अगाह किया जायेगा कि भविष्य में वे देसी लोगों के साथ वाद-विवाद में नहीं फंसेंगे.
इस संदर्भ ने कवि गुरु रवींद्रनाथ टैगोर का यह वक्तव्य माकूल लगता है कि राममोहन युग में भारत में कालरात्रि उतर आयी थी. लोग भय-आतंक के भयानक साये में जी रहे थे. मनुष्य और मनुष्य के बीच भेदभाव बनाये रखने के लिए उन्हें अलग-अलग खानों में बांट दिया गया था. उस काल रात्रि के समय राममोहन ने अभय तंत्र का उच्चरण किया था. प्रतिबंधों को तोड़ फेंकने की कोशिश की थी.