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कश्मीर: ‘शहीद दिवस’ पर अलगाववादियों की रैली

रियाज़ मसरूर बीबीसी संवाददाता, श्रीनगर भारत प्रशासित जम्मू कश्मीर में अलगाववादियों ने 13 जुलाई को तीन जगह से मार्च की अपील की है. ब्रितानी हुकूमत में 13 जुलाई 1931 को श्रीनगर सेंट्रल जेल के सामने हुई गोलीबारी में बहुत से लोग मारे गए थे. इसी दिन को यौमे शोहदा क रूप में मनाया जाता है. […]

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भारत प्रशासित जम्मू कश्मीर में अलगाववादियों ने 13 जुलाई को तीन जगह से मार्च की अपील की है.

ब्रितानी हुकूमत में 13 जुलाई 1931 को श्रीनगर सेंट्रल जेल के सामने हुई गोलीबारी में बहुत से लोग मारे गए थे. इसी दिन को यौमे शोहदा क रूप में मनाया जाता है.

बुरहान वानी की मुठभेड़ में हुई मौत के बाद घाटी में पैदा हुए हालात को देखते हुए अलगाववादियों ने इस मार्च की अपील की है. लोगों को मार्च करते हुए उन मज़ारों तक जाने की अपील की गई है, जहां 1931 में मारे गए लोगों को दफनाया गया है.

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अलगाववादियों का मक़सद लोगों की एक बहुत बड़ी रैली आयोजित करने की है. इसे देखते हुए प्रशासन ने सख़्त पाबंदियां लगा दी हैं.

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मंगलवार को पिछले दिनों के मुक़ाबले थोड़ी शांती रही. लेकिन मंगलवार को हुई दो मौतों की वजह से लोगों का ग़ुस्सा शांत नहीं हुआ है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को दिल्ली में एक बैठक में कश्मीर के हालात की समीक्षा की. यह एक महत्वपूर्ण क़दम था. लेकिन यहां सवाल उठाए जा रहे हैं कि जब कश्मीर पर इतनी बड़ी बैठक हो रही थी तो इसमें कश्मीर का प्रतिनिधित्व किसने किया. लोगों का कहना है कि बैठक में मुख्यमंत्री का होना ज़रूरी था, क्योंकि राज्य में काम तो उन्हें ही करना है.

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केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने विपक्षी नेताओं को फ़ोन कर मामले को सुलझाने में मदद मांगी है. वहीं माकपा ने कहा है कि इस मामले पर सर्वदलीय बैठक बुलाने की मांग की है.

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हालांकि ज़मीनी सच्चाई यह है कि घाटी में 30 लोग मारे गए हैं और क़रीब डेढ़ हज़ार लोग घायल हुए हैं.

घायलों में से सौ से ज्यादा लोगों की आंखों पर गंभीर चोट लगी है. डॉक्टरों का कहना है कि इनमें से 50 से ज्यादा लोग आंखों की रोशनी खो चुके हैं.

श्रीनगर में आर्थोपेडिक का केवल एक ही अस्पताल है. अस्पताल प्रशासन का कहना है कि उनके यहां भर्ती 52 लोग ऐसे हैं, जिनकी रीढ़ की हड्डी में चोट लगी है. ये लोग अब जीवन भर के लिए विकलांग हो गए हैं.

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यह एक बहुत बड़ी मानवीय त्रासदी है. इस पर बहुत ही मानवीय तरीक़े से ध्यान देने की ज़रूरत है. मुझे नहीं लगता है कि सर्वदलीय बैठक से इस समस्या का कोई समाधान हो.

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