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देश में जिल्लतें सहीं, थप्पड़ खाये, स्पेन में बढ़ाया देश का मान

मिथिलेश झा रांची : जो लड़कियां कभी गांव से बाहर नहीं निकली थीं, उन्होंने सात समंदर पार अपनी प्रतिभा का शानदार प्रदर्शन कर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया. इसके लिए उन्हें जिल्लतें भी सहनी पड़ी. आज के समय में जब खिलाड़ियों को तमाम सुविधाएं देने की बात सरकार और जनप्रतिनिधि कहते हैं, इन लड़कियों को […]

मिथिलेश झा
रांची : जो लड़कियां कभी गांव से बाहर नहीं निकली थीं, उन्होंने सात समंदर पार अपनी प्रतिभा का शानदार प्रदर्शन कर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया. इसके लिए उन्हें जिल्लतें भी सहनी पड़ी.
आज के समय में जब खिलाड़ियों को तमाम सुविधाएं देने की बात सरकार और जनप्रतिनिधि कहते हैं, इन लड़कियों को पासपोर्ट हासिल करने के लिए जिल्लत सहनी पड़ी. पहली बार लड़कियां स्पेनिस टूर्नामेंट के लिए सेलेक्ट हुईं, तो पासपोर्ट के लिए जन्म प्रमाण पत्र की जरूरत पड़ी. चूंकि, सभी लड़कियां गांव में जन्मी थीं, किसी के पास जन्म प्रमाण पत्र नहीं था. सो, प्रमाण पत्र लेने के लिए स्थानीय पंचायत कार्यालय में गयीं. यहां उनसे एकमुश्त राशि जमा करने के लिए कहा गया. जिन लड़कियों ने पैसे देने में असमर्थता जतायी, उनसे पैसे के बदले में पंचायत भवन की सफाई करने के लिए कहा गया. एक-दो दिन नहीं, कई दिनों तक. इनमें से किसी ने पंचायत भवन में कार्यरत लोगों को याद दिलाया कि उनके पासपोर्ट बनवाने की डेडलाइन खत्म हो रही है, तो उन्हें थप्पड़ जड़ दिया गया.
बहरहाल, लड़कियां तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद स्पेन गयीं और अपने प्रदर्शन से सबका दिल जीत लिया. ओरमांझी और कांके की 18 लड़कियों ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर साबित कर दिया कि संसाधनों से कुछ नहीं होता. खेलने और जीतने का हौसला और जज्बा हो, तो कोई भी मुश्किल रास्ते की बाधा नहीं बन सकती.
ओरमांझी के हुटाप गांव में फुटबॉल की ट्रेनिंग ले रही लड़कियों का हौसला और जज्बा ही है, जिसने बॉलीवुड स्टार रणबीर कपूर को अपना दीवाना बना दिया. स्पेन में पिछले दिनों खेले गये दोनोस्ती कप में भाग लेने के लिए इनके रवाना होने से पहले रणबीर ने अंडर-14 की इन खिलाड़ियों से मुलाकात की. वादा किया कि हुटाप में स्कूल खोलने में इनकी मदद करेंगे. इसके लिए उन्होंने ‘#किक फॉर ए ब्रिक’ कैंपेन शुरू करने की भी बात कही.
झारखंड की इन खिलाड़ियों की प्रतिभा का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि स्पेन के रियल मैड्रिड ग्राउंड के हॉस्टल, जहां ये लड़कियां रहती थीं, के स्टाफ झारखंड की इन खिलाड़ियों के दीवाने हो गये थे. जब ये लड़कियां मैदान में उतरती थीं, होस्टल के कैंटीन स्टाफ उनका हौसला बढ़ाते थे. लोकल मीडिया में भी झारखंड की बालाओं को लेकर जबरदस्त उत्साह था.
यहां बताना प्रासंगिक होगा कि अपनी तरह के स्पेन के इस सबसे बड़े फुटबॉल टूर्नामेंट में एशिया से सिर्फ भारत ने भाग लिया है. एक-दो बार नहीं, तीन-तीन बार. वर्ष 2014 में 36 अंतरराष्ट्रीय टीमों से सजे इस टूर्नामेंट में भारत की अंडर-14 टीम ने कांस्य पदक जीता था. इनके प्रदर्शन से स्थानीय लोग भी इनके फैन हो गये.
लड़कियों के फुटबॉल खेलने की इच्छा पूरी करनेवाले और उनकी ट्रेनिंग के सारे इंतजाम करनेवाले गैरसरकारी संस्था ‘युवा’ के संस्थापक मिनेसोटा (अमेरिका) के फ्रांज गास्टलर कहते हैं कि उनका उद्देश्य इन लड़कियों के लिए एक सेंटर फॉर एक्सलेंस की स्थापना करना है, जहां लड़कियां खेल के साथ-साथ पढ़ाई भी करें और अपना भविष्य गढ़ें. वर्ष 2016 में भी झारखंड की बेटियों ने बेहतरीन खेल का प्रदर्शन किया. हालांकि, वह तीन में एक ही मैच जीत पायी.
गजब की थी दीवानगी
टीम की हिस्सा रहीं कुसुम कहती हैं, ‘खेल के प्रति टीम में दीवानगी थी. हम रात को सोते नहीं थे, क्योंकि सुबह मैच था. बार-बार कहने के बावजूद कोई सोने नहीं जाता था. अंतत: हमें धमकी दी जाती कि जो भी अभी नहीं सोयेगा, सुबह टीम से बाहर रहेगा. उसे मैच खेलने का मौका नहीं मिलेगा. बावजूद इसके टीम की सभी सदस्य दो-तीन बजे रात तक जगी रहती थीं. अगले दिन के मैच के बारे में बात करती रहती थीं.’
अविस्मरणीय बन गये दिन
कुसुम बताती है कि स्पेन में ही झारखंड की इन खिलाड़ियों ने पहली बार समंदर में मस्ती की. स्वीमिंग पूल में तैराकी का मजा लिया. टीम की हर सदस्य के लिए वे दिन अविस्मरणीय हैं. अनजान लोगों से मिलना, उनसे दोस्ती करना. रातों को पार्टी करना. हम वहां केलोगों की भाषा नहीं जानते थे, वे हमारी भाषा नहीं जानते थे. लेकिन हम दुभाषिये की मदद से आपस में बात करते थे. स्पेन की यादें बहुत रोमांचित करती हैं.

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