बंगाल की संस्कृति में रमी कविता

रांची: कविता बवारिया गुजराती समुदाय से हैं. कालीघाट बंगाल में जन्म हुआ. गुजराती होकर भी बंगाल की पंरपरा और संस्कृति को अपनाया है. महिलाओं को बंगाल की कला से जोड़ रही हैं. कविता के पूरे परिवारवाले गुजराती कपड़ों का कारोबार करते थे. घर पर बंधेज का काम होता था. पर उन्हें बंधेज की जगह शांति […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 24, 2014 10:42 AM

रांची: कविता बवारिया गुजराती समुदाय से हैं. कालीघाट बंगाल में जन्म हुआ. गुजराती होकर भी बंगाल की पंरपरा और संस्कृति को अपनाया है. महिलाओं को बंगाल की कला से जोड़ रही हैं. कविता के पूरे परिवारवाले गुजराती कपड़ों का कारोबार करते थे. घर पर बंधेज का काम होता था. पर उन्हें बंधेज की जगह शांति निकेतन के काथा स्टीच ज्यादा प्रभावित करते थे.

स्कूल में उन्हें हस्त शिल्प कला सिखायी जाती थी. 12वीं की पढ़ाई के बाद कविता बंगाल के जूट के काम से जुड़ीं. आगे उन्हें सरकार से मदद मिली और सरकार द्वारा देश भर में लगनेवाले सरकारी जूट मेले में जाने का अवसर मिला. इसी सिलसिले में अपने जूट के हस्तनिर्मित उत्पादों के प्रदर्शन के लिए मंगलोर, हैदराबाद, पुणो, चेन्नई व अन्य राज्यों में जाना हुआ. इन जगहों पर आज भी उनके उत्पादों की भारी मांग है.

कविता जूट एवं उसके सूत से आकर्षक गहने बनाती हैं. उन्होंने इस काम से कई महिलाओं को जोड़ा है. इनके निर्देशन में महिलाएं गहने बनाती हैं और रोजगार से जुड़ रही हैं. जो महिलाएं काम की तलाश में इधर-उधर भटकती थी, कविता उन्हें यह काम सिखा कर स्वावलंबी बना रही हैं. कविता को बंगाल की कला संस्कृति से प्रेम है. गुजरात समुदाय में मांस-मछली खाने की मनाही होती है.

पर उन्हें माछ-भात खाना बहुत पसंद है. बंगाली लिखना, पढ़ना और बोलना अच्छी तरह से जानती हैं. वह अपनी सफलता का श्रेय बंगाल बोर्ड को देती हैं. बंगाल बोर्ड में पहली कक्षा से ही लड़कियों को हस्तकला सिखाया जाता है, जिससे कि लड़कियां आगे पढ़ लिख न भी पायें तो अपने हुनर के बल पर रोजगार पा सकती हैं. उन्होंने भी 12 वीं तक ही अपनी शिक्षा पूरी कर पायी. आगे अपने स्कूल में सीखी हस्त कलाओं को ही अपने व्यवसाय का माध्यम बना लिया. कविता कहती हैं कि मैं अपने गहने बनाने के काम से बहुत खुश हूं, क्योंकि इसे महिलाएं बहुत खुशी से खरीदती हैं.

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