ये तस्वीर श्रीनगर के एक अस्पताल के बिस्तर पर दर्द में कराहती 14 साल की इंशा मुश्ताक़ की है.
दक्षिण कश्मीर की रहने वाली मुश्ताक़ की मां रज़िया बेगम उनके जल्द ठीक होने की दुआ मांग रही हैं.
महाराजा हरि सिंह अस्पताल के आईसीयू में भर्ती इंशा के चेहरे पर इतने छर्रे लगे हैं कि उनका चेहरा सूजकर पूरी तरह से विकृत हो गया है.
डॉक्टरों का कहना है कि इंशा की हालत गंभीर है. इंशा के पिता मुश्ताक़ अहमद मलिक सदमे में हैं. वो बड़ी मुश्किल से कुछ बोल पाने की हालत में हैं.
अस्पताल के कॉरिडोर में खड़े मलिक कहते हैं, "वो परिवार के दूसरे लोगों के साथ घर के पहले माले में थी. शाम का वक्त था. मैं नमाज़ पढ़ने मस्जिद गया था. उसने खिड़की से झांककर देखा और सीआरपीएफ के जवान ने बहुत नज़दीक से उसपर छर्रे दाग दिए."
गहरी सांस भरते हुए रज़िया बेगम कहती हैं, "वो दर्द से रोते हुए कह रही थी, मां मैं मर रही हूं."
श्रीनगर के सरकारी मेडिकल कॉलेज के नेत्र विज्ञान विभाग के प्रमुख डॉ तारीक़ कुरैशी कहते हैं, "उसकी दोनों आंखें बुरी तरह से ज़ख्मी हैं और उसकी दृष्टि लौटने की कोई उम्मीद नहीं है. हमारे पास ऐसे 117 मामले आए हैं."
छर्रों से ज़ख्मी होने के कारण सात लोग पूरी तरह से आंखों की रोशनी खो चुके हैं. आंखों में चोट वाले 40 लोगों को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई है.
डॉक्टर कुरैशी का कहना है कि जो आंखें छर्रों से ज़ख़्मी हुई हैं उनमें पूरी तरह से रोशनी लौटने की संभावना बेहद कम है.
8 जुलाई को सरकारी बलों ने दावा किया था कि लोकप्रिय स्थानीय चरमपंथी नेता बुरहान वानी को मारकर उन्हें एक बड़ी कामयाबी मिली है.
वानी के मारे जाने के बाद से कश्मीर घाटी में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू हुए.
सड़कों पर हो रहे विरोध प्रदर्शनों को विफल करने के लिए सरकार ने कड़े कर्फ्यू नियम लागू किए हैं.
हालांकि युवाओं ने इन नियमों की अनदेखी करते हुए कश्मीर के ज्यादातर इलाकों में प्रदर्शन किए जिससे कई नागरिकों की मौत के साथ हज़ारों प्रदर्शनकारियों को गहरी चोटें आई हैं.
सरकारी बल बुलेट, आंसू गैस के गोले, पेपर गैस और छर्रों का इस्तेमाल प्रदर्शनकारियों पर कर रही है.
अमृतसर के सरदार बहादुर डॉ सोहन सिंह नेत्र अस्पताल में वरिष्ठ रेटिनल सर्जन डॉक्टर प्रीतम सिंह कहते हैं कि उनके पास लगातार कश्मीर से मरीज़ आ रहे हैं जो छर्रों से आंशिक या पूरी तरह से अंधे हो गए हैं.
डॉक्टर सिंह ने कहना था, "छर्रे आमतौर पर आंखों में छिद्रित चोटें पहुंचाती हैं. चूंकि ये मानव शरीर का बहुत ही नाजुक अंग होता है और ज्यादातर मामलों में ये रेटिना को नष्ट कर देता है. ये छर्रे लोगों की जान तो नहीं लेते पर ज़िन्दगी भर के लिए पंगु ज़रूर बना देते हैं."
सरकारी बलों पर मानक संचालन प्रक्रिया(एसओपी) के उल्लंघन के आरोप लग रहे हैं जिससे उनकी कड़ी आलोचना हो रही है.
एसओपी के नियमों के तहत बहुत ही बेकाबू स्थिति में पैरों को निशाना बनाने की हिदायत है.
लेकिन विभिन्न अस्पतालों में भर्ती 90 फीसदी से ज्यादा लोगों को कमर से ऊपर के हिस्से में चोटें आई हैं.
नाम नहीं बताने के शर्त पर एक डॉक्टर ने कहा, "सरकारी बल जानबूझकर छाती और सिर को निशाना बना रहे हैं. उनका उद्देश्य मारने का है."
जिस अस्पताल में इंशा का इलाज चल रहा है, वहां दर्द और पीड़ा की कहानियां चारों तरफ़ से सुनाई पड़ती है.
ज्यादातर पीड़ित बात नहीं करना चाहते या नहीं चाहते कि उनकी तस्वीरें खींची जाए क्योंकि पुलिस एजेंसियां उनपर नज़र रखे हुए है.
इस वॉर्ड के बिस्तर पर 16 साल के आमिर फयाज़ गनाई लेटे हुए हैं. वो कश्मीर के बडगाम जिले के चरार-ए-शरीफ़ में 11वीं कक्षा में पढ़ते हैं.
गनाई कहते हैं, "10 जुलाई को मैं अपने दोस्त के घर जा रहा था और विरोध प्रदर्शन चल रहे थे. अचानक बहुत ज़ोर से मेरी बाईं आंख पर कुछ लगा. पूरी तरह से ब्लैकआउट हो गया. मुझे लगा कि गोली लगी है और मैं मर जाऊंगा."
कमरे के कोने में गनाई के बिस्तर के बगल में एक नर्स 17 साल के शबीर अहमद डार के दाहिनी आंख की जांच कर रही है.
गनाई के मुकाबले डार की हालत ज्यादा गंभीर है. डॉक्टरों के मुताबिक डार अपने दाहिनी आंख की रोशनी खो सकते हैं.
आंखों के डॉक्टरों की तीन सदस्यों की एक टीम नई दिल्ली के एम्स अस्पताल से कश्मीर भेजी गई है जो संकट की इस घड़ी में घाटी के डॉक्टरों को सहयोग देगी.
इस टीम का नेतृत्व करने वाले डॉक्टर सुदर्शन के कुमार ने घाटी के डॉक्टरों की कोशिशों की सराहना की है.
मरीज़ों की जांच करने के बाद डॉक्टर कुमार ने कहा कि वहां के डॉक्टरों को ‘युद्ध जैसी स्थिति’ से जूझना पड़ रहा है.
(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक और ट्विटर पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)