जो दूसरों के बारे में सोचता है, तरक्की करता है
दक्षा वैदकर हमारे ऑफिस में एक लड़की ट्रेनिंग पर है. बीते दिनों मैंने देखा कि उसने डाकुओं की तरह सामने से चेहरे को ढक रखा है और काम कर रही है. सुबह से लेकर शाम हो गयी, लेकिन वह इसी तरह काम करती रही. जब मुझसे रहा नहीं गया, तो मैंने पूछा कि मुंह पर […]
दक्षा वैदकर
हमारे ऑफिस में एक लड़की ट्रेनिंग पर है. बीते दिनों मैंने देखा कि उसने डाकुओं की तरह सामने से चेहरे को ढक रखा है और काम कर रही है. सुबह से लेकर शाम हो गयी, लेकिन वह इसी तरह काम करती रही. जब मुझसे रहा नहीं गया, तो मैंने पूछा कि मुंह पर कपड़ा क्यों बांधा हुआ है? उसने कहा, ‘मुझे सर्दी है. मैं नहीं चाहती कि मेरी वजह से किसी को इंफेक्शन हो जाये’.
अपने आसपास के लोगों के बारे में इतना सोचने के उसके इस गुण की मैंने तारीफ की और कहा कि तुम बहुत तरक्की करोगी. उसने पूछा, क्यों? तो मैंने उसे स्वामी विवेकानंद जी के एक वाकये के बारे में बताया. स्वामी विवेकानंद अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस की धर्मपत्नी शारदा को मां मानते थे. एक बार की बात है : स्वामीजी विदेश यात्रा की तैयारी कर रहे थे. इससे ठीक पहले अलवर के महाराजा ने अपने बेटे के जन्मदिन पर उन्हें आमंत्रित किया. स्वामीजी अलवर गये. तभी उन्हें ख्याल आया कि मां शारदा से विदेश जाने की अनुमति तो ली ही नहीं. मां की अनुमति के बगैर काम कैसे होगा?
यह विचार आते ही विवेकानंद सारे काम छोड़ कर जयराम वाटी (बंगाल) पहुंचे. वहां मां शारदा सब्जी साफ कर रही थीं. स्वामीजी बोले, ‘मां विदेश जा रहा हूं. गुरुदेव का संदेश पूरी दुनिया में फैलाऊंगा.’ इस पर मां शारदा ने कहा – अच्छा जाओ, लेकिन वो वहां पड़ा चाकू मुझे दे जाओ.
विवेकानंद जी ने चाकू उठाया और धार वाला हिस्सा खुद पकड़ते हुए हत्थे वाला हिस्सा मां की ओर बढ़ा दिया. मां शारदा ने चाकू लिया और कहा, ‘नरेंद्र अब तू जरूर विदेशों में जा सकता है, क्योंकि तेरी सोच ऐसी है कि तू कठिनाइयां स्वयं झेलता है और दूसरों के भले की सोचता है, तो तू परमहंस देव का संदेश दुनिया में फैलाने में सफल होगा.’
daksha.vaidkar@prabhatkhabar.in