नयी दिल्ली : गर्भपात कानून के एक प्रावधान का लाभ देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बलात्कार पीड़िता को अपने 24 हफ्ते पुराने असामान्य भ्रूण का गर्भपात कराने की इजाजत दे दी. पीड़िता को इस आधार पर इजाजत मिली कि गर्भावस्था जारी रहने से उसका शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य खतरे में पड़ जायेगा. सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 की धारा-5 के तहत कानून में दी गयी अपवाद की स्थिति का लाभ पीड़िता को दिया. कहा कि मेडिकल बोर्ड ने राय दी है कि गर्भावस्था जारी रहने से मां का शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य गंभीर खतरे में पड़ जायेगा.
ऐसे में हम याचिकाकर्ता को छूट देते हैं कि यदि वह गर्भपात कराना चाहती है, तो उसे इसकी अनुमति है. सुनवाई के दौरान, मुंबई स्थित किंग एडवर्ड मेमोरियल कॉलेज व अस्पताल के सात सदस्यीय मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट एक सीलबंद लिफाफे में कोर्ट को सौंपी गयीं. सुप्रीम कोर्ट ने 22 जुलाई को मेडिकल बोर्ड को महिला की मेडिकल जांच कर रिपोर्ट अदालत में दाखिल करने का निर्देश दिया था.
इससे पहले न्यायालय ने बलात्कार पीड़िता की अर्जी पर केंद्र और महाराष्ट्र सरकार से जवाब मांगा था. याचिका में महिला ने आरोप लगाया है कि शादी का झांसा देकर उसके पूर्व-मंगेतर ने उससे बलात्कार किया, जिससे वह गर्भवती हो गयी.
क्या है प्रावधान
मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 की धारा-5 के तहत यह प्रावधान है कि यदि गर्भ से मां की जिंदगी को गंभीर खतरा हो, तो 20 हफ्तों के बाद भी गर्भपात कराया जा सकता है. प्रावधानों को चुनौती : याचिकाकर्ता ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 की धारा 3-2-बी को रद्द करने का निर्देश देने की मांग की थी, क्योंकि यह 20 हफ्ते से ज्यादा पुराने भ्रूण के गर्भपात पर पाबंदी लगाती है, जो संविधान के अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 21 के तहत मिले अधिकारों का उल्लंघन है.