11 साल की लड़की और 3,000 किमी का सफर

11 साल की इसरा ने सीरिया में अपना घर तबाह हो जाने के बाद परिवार समेत 3,000 किलोमीटर की यात्रा की और लगभग पूरा यूरोप पार कर जर्मनी पहुंचीं. यात्रा में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. उन्हें लंबी दूरी तक पैदल चलना पड़ा और उनकी विकलांग बहन को व्हीलचेयर से खींचना पड़ा. वो कहती […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 26, 2016 10:03 AM
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11 साल की इसरा ने सीरिया में अपना घर तबाह हो जाने के बाद परिवार समेत 3,000 किलोमीटर की यात्रा की और लगभग पूरा यूरोप पार कर जर्मनी पहुंचीं.

यात्रा में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. उन्हें लंबी दूरी तक पैदल चलना पड़ा और उनकी विकलांग बहन को व्हीलचेयर से खींचना पड़ा.

वो कहती हैं, "मैंने पूरा यूरोप पार किया, ताकि मैं सुरक्षित स्कूल जा सकूं."

इसरा सीरिया के अलेप्पो शहर की रहने वाली हैं.

वो कहती हैं, "जब हम अलेप्पो में रहते थे हमारे पास खिलौनों की भरमार थी. मुझे वो घर बहुत याद आता है."

उन्होंने बताया, "एक दिन हमारे घर पर एक मिसाइल आ गिरी और सब ख़त्म हो गया."

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इनकी तरह ही लाखों परिवार सीरिया छोड़कर यूरोप के देशों में शरण लेने के लिए जोखिम भरी यात्राएं करने पर मजबूर है.

इसरा बताती हैं, "जब हम वहां से निकले तो हम अकेले थे. लंबे सफर में अकेले परिवार होने की बजाय बड़ा समूह हो तो अच्छा रहता है. लेकिन हमने हिम्मत नहीं हारी और एक दूसरे का साथ दिया, एक दूसरे की पूरी मदद की."

इसरा के पिता तारिक़ बताते हैं, "मेरे सारे बच्चे स्वस्थ हैं लेकिन शाहिद लकवाग्रस्त है. वो मानसिक और शारीरिक रूप से अक्षम है और कुछ भी नहीं कर सकती. मैं उसके लिए अपनी ज़िंदगी भी कुर्बान कर सकता हूं."

इसरा कहती हैं, "यात्रा के दौरान मुझे पता ही नहीं चला कि हम किस जगह हैं, कभी बस से ट्रेन और फिर ट्रेन से बस पकड़ते थे."

वो एक वाकया बताती हैं, "रास्ते में एक जगह बस ख़राब हो गई, फिर हमें पैदल ही चलना पड़ा."

इस दौरान बारिश हो रही थी और वो पैदल चल रहे थे.

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इसरा कहती हैं, "मुझे पैदल चलना अच्छा लगता है और बारिश में तो और अच्छा लगता है. उन्होंने हमें एक किलोमीटर चलने को कहा था, लेकिन हम 10 किलोमीटर चले."

इसरा और उसका परिवार अब सर्बिया और क्रोएशिया की सीमा के पास पहुंचने वाला था.

लेकिन जब वो सीमा पर पहुंचे तो वहां भारी भीड़ जमा थी और सीमा का रास्ता बंद था, बारिश लगातार जारी थी और जिसके पास जो था उसी से अपना बचाव कर रहा था.

किसी तरह उन्हें एक टेंट मिला और फिर उन्होंने ठंड से बचने के लिए आग जलाई. इसरा बताती हैं, "दो बच्चे ठंड से मर गए थे."

लोगों का कहना था कि अधिक लोग होने के कारण सीमा बंद कर दी गई थी. कुछ पता नहीं था कि सीमा खुलेगी या नहीं, अगर खुलेगी भी तो कब.

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इसरा के पिता तारिक कहते हैं, "मेरी बेटी बहुत बहादुर और दयालु है. वो सबको प्यार करती है. वो चाहती है हर कोई सुरक्षित रहे. वो नहीं चाहती कि लोग उसकी जुदाई का दुख झेलें. अन्य शरणार्थी बच्चों के साथ उसका व्यवहार बहुत दोस्ताना रहा."

रास्ते के संघर्ष और तकलीफ़ों को याद करते इसरा की आंखें भर आती हैं.

इस यात्रा को बारिश-ठंड ने और कठिनाइयों वाला बना दिया था.

बारिश रुकने का नाम नहीं ले रही थी, ठंड भी बहुत थी, आखिरकार सीमा का रास्ता खुल गया. लोग चलने लगे. रास्ते कीचड़ से भरे था. लोगों को अकेले चलना ही मुश्किल हो रहा था. उसमें शाहिद की व्हीलचेयर खींचना और भारी पड़ रहा था.

तारिक कहते हैं कि सभी कीचड़ भरे रास्ते में चल रहे थे. कीचड़ बर्दाश्त नहीं हो रही थी.

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वो बताते हैं, "कीचड़ में चलना बहुत मेहनत का काम है, ऊपर से मैं व्हीलचेयर भी खींच रहा था. मेरे लिए यह थोड़ा मुश्किल भरा काम था क्योंकि अब मैं जवान नहीं रहा. मैं 50 वर्ष का हो चुका हूं."

इन मुश्किलों में भी वे लोग किसी तरह स्लोवेनिया पहुंचे.

इसरा बताती हैं, "वहां काफी लोग थे और भुने हुए भुट्टे खा रहे थे. हमें भी तेज़ भूख लगी थी. वहां खून जमा देने वाली ठंड थी और लोग आग जलाकर खुद को गर्म रखने की कोशिश कर रहे थे."

यहां से इसरा का परिवार ऑस्ट्रिया पहुंचा. यहां से पैदल चलने की मुसीबत ख़त्म हो गई थी. जब पता चला कि अब यहां से कोई सीमा पार नहीं करनी है तो बच्चों में जैसे खुशी की लहर दौड़ गई.

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सबने एक सुर से कहा, "बस, हम पहुंच गए? अब और नहीं चलना पड़ेगा?"

यहां से पूरा परिवार बस पर सवार हुआ और फिर ट्रेन पकड़ कर जर्मनी रवाना हुआ.

इसरा कहती हैं, "जब हम जर्मनी पहुंचे तो सभी खुशी से चिल्ला रहे थे और गाने गा रहे थे."

तारिक़ कहते हैं, "इस यात्रा ने हमें बहुत कुछ सिखाया, साहस, मजबूती और सब्र. हालांकि हमने बहुत कुछ सहा, तूफ़ानों से लड़े."

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इसरा की ओर देखते हुए वो कहते हैं, "इसने ज़िंदगी के क़ीमती सबक हासिल किए. वो अब मजबूत होगी और अपनी समस्याओं का सामना करने लायक हो जाएगी. यह उसके लिए जिंदगी भर का सबक है."

आज इसरा का पूरा परिवार जर्मनी पहुंच गया है और पनाह की इजाज़त का इंतज़ार कर रहा है.

लेकिन उनकी मुश्किलें ख़त्म नहीं हुई हैं, ये इसरा का परिवार अच्छी तरह जानता है.

(12 महीने पहले बीबीसी की प्रोडक्शन टीम ने सीरिया से पलायन करने वाले लोगों को कैमरा-फ़ोन दिए थे. उन्होंने अपने उन रास्ते की घटनाओं का वीडियो रिकॉर्ड किया, जहां सामान्य क्रू नहीं पहुंच सकता. इस स्टोरी को बीबीसी टू के एक कार्यक्रम में प्रसारित किया गया.)

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