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गणतंत्र, सुशासन और चुनाव

।। मार्क टली ।। वरिष्ठ पत्रकार आजादी मिलने के इतने वर्षो बाद भी पूरे देश का विकास नहीं हो पाया है निश्चित रूप से भारत की गणतांत्रिक प्रणाली काफी मजबूत है, लेकिन कुशासन के कारण भारत अपनी क्षमता का पूरी तरह से आज तक उपयोग नहीं कर पाया है. यह भारत के लिए बड़ी चुनौती […]

।। मार्क टली ।।

वरिष्ठ पत्रकार

आजादी मिलने के इतने वर्षो बाद भी पूरे देश का विकास नहीं हो पाया है

निश्चित रूप से भारत की गणतांत्रिक प्रणाली काफी मजबूत है, लेकिन कुशासन के कारण भारत अपनी क्षमता का पूरी तरह से आज तक उपयोग नहीं कर पाया है. यह भारत के लिए बड़ी चुनौती है.

भारत की गणतांत्रिक प्रणाली काफी मजबूत है. भारतीय गणतंत्र के लिए यह अच्छी बात है. 1950 से ही हम देखें, तो ये गणतांत्रिक प्रणाली दिनों-दिन मजबूत होती गयी है. इतने बड़े लोकतांत्रिक देश में जहां विभिन्न जाति, धर्म, संप्रदाय और वर्ग के लोग रहते हैं, वहां लोकतंत्र पर किसी तरह का खतरा आज तक दिखाई नहीं दिया है.

यही लोकतंत्र की सबसे बड़ी खूबसूरती और मजबूती है. यह सच्चे अर्थो में लोकतांत्रिक व्यवस्था का परिचायक है. इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि भारत में 15 लोकसभा चुनाव हो चुके हैं. चुनाव से पूर्व सभी पार्टियां एक-दूसरे के खिलाफ होती हैं. एक-दूसरे पर दोषारोपण सहित आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलता है. लेकिन चुनाव के बाद जिस पार्टी की भी सरकार बनती है, उसे विपक्षी दल पूरी तरह से स्वीकार करते हैं. यही लोकतंत्र की खूबसूरती है.

यही गणतांत्रिक व्यवस्था की मजबूती का संकेत है. जिस संविधान के तहत राजनीतिक दलों को काम करना है, उसी तरह से काम करते हुए आगे बढ़ते हैं. हालांकि, दूसरे देशों में ऐसा नहीं होता है. पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान और बांग्लादेश को हम देख सकते हैं. लोकतंत्र पर सेना का कब्जा हो जाता है.

सरकार के विरुद्ध लोग सड़क पर उतर कर पूरे लोकतंत्र को खतरे में डाल देते हैं. लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकारें बरखास्त कर दूसरे लोग सत्ता हथिया लेते हैं. लेकिन भारत में अब तक न ऐसा हुआ है, और न ही आगे भी ऐसा होने की कोई आशंका दिखती है. क्योंकि भारत का गणतंत्र मजबूत है.

सबके अपने-अपने कार्यक्षेत्र बंटे हैं. सभी के लिए अपनी सीमाओं में रह कर काम करने की प्रणाली विकसित की गयी है. भारत हमेशा से विविधता में भी एकता का संदेश देता रहा है. हालांकि इसके साथ ही भारत के समक्ष कई चुनौतियां हैं.

आजादी मिलने के इतने वर्षो बाद भी पूरे देश का विकास नहीं हो पाया है. भारत में शासन की सबसे बड़ी चुनौती है. जिस सुंदर शासन की कल्पना की गयी थी, वह भारत को अब तक नहीं मिल पाया है. इसके लिए कौन जिम्मेवार है, इस पर विचार करने की जरूरत है.

जिस सुशासन का सपना भारत के लोगों ने देखा था, उसके सफल होने की कामना और कल्पना की थी,आखिर वह साकार क्यों नहीं हो पाया? विकास की गति को आज तक हम गांव में नहीं पहुंचा पाये. जो सुविधा शहर में मिल रही है, वह सुविधा आज तक गांव में नहीं पहुंची है.

इन सवालों का जवाब ढूंढ़ना होगा. तथा इनका हल करने की दिशा में काम करना होगा, तभी भारत में गणतंत्र की अवधारणा को सफल बताया जा सकता है. निश्चित रूप से भारत की गणतांत्रिक प्रणाली काफी मजबूत है, लेकिन कुशासन के कारण भारत अपनी क्षमता का पूरी तरह से आज तक उपयोग नहीं कर पाया है. यह भारत के लिए बड़ी चुनौती है. जब तक अच्छा शासन नहीं होगा, तब तक देश का विकास नहीं हो सकता है.

जब संविधान का निर्माण किया गया था, तब भारत के राष्ट्र-निर्माताओं ने कई तरह के सपने देखे थे. उनका सपना गरीबी, भ्रष्टाचार से निजात पाना था. लोगों को रोजगार मुहैया कराने के साथ ही रोटी-कपड़ा और मकान देने का सपना दिखाया गया था. लेकिन तब का सपना आज तक पूरा नहीं हो पाया है.

और यह तब तक संभव नहीं है, जब तक देश में सुशासन न हो. भारत में इसका अभाव दिखा है. इसे चुनौती के रूप में लेकर देश को एक अच्छा शासन देने की जरूरत है. जब तक देश में सुशासन नहीं आयेगा, तब तक देश का पूरा विकास नहीं हो सकता है. देश में खास से लेकर आम तक विकास पहुंचाना जरूरी है.

आजादी के इतने वर्षो बाद भी जिस सुशासन का सपना देखा गया था वह पूरा नहीं हो पाया है. इससे जब तक पूरा नहीं किया जायेगा, तब तक हमारा लोकतंत्र मजबूत नहीं हो सकता है.

देश में एक बार फिर से चुनाव होनेवाला है. इसलिए इन बातों पर हर भारतीय को सोचना होगा. सुशासन के अभाव में जिन चुनौतियों का भारत सामना कर रहा है, उस कमी को दूर कर आगे बढ़ने की जरूरत है. सुशासन की कमी का खामियाजा आज भारत कई रूपों में भुगत रहा है. समय रहते इन समस्याओं पर काबू नहीं पाया गया, तो यह देश संकट में फंस सकता है.

भारत बहुत बड़ा देश है और अलग-अलग प्रांतों में अलग-अलग तरह की समस्याएं है. नक्सलवाद पूरे देश के लिए एक गंभीर समस्या बन कर आया है. यह देश के सामने सबसे बड़ी चुनौती है. झारखंड सहित कई प्रदेशों में नक्सलवाद गंभीर समस्या बना हुआ है. समस्या इतनी बड़ी क्यों बनी इस पर सोचने की जरूरत है. इसका सबसे बड़ा कारण उन जगहों पर विकास का न पहुंचना है.

विकास के अभाव में कई तरह की समस्याएं पनपती हैं और उन्हीं में से नक्सलवाद भी एक है. इसलिए जरूरी यह है कि विकास की गति मिले और विकास सभी जगहों पर हो. जो स्थान विकास से अछूता है, वहां पर विकास की किरण लाकर जनता में विश्वास और भरोसा कायम करना जरूरी है. एक स्थान पर विकास की गति पहुंच रही है, जबकि दूसरा राज्य या स्थान विकास से महरूम हैं, तो इसका खामियाजा भी उठाना पड़ेगा और कई तरह के दुष्परिणाम भी सामने आयेंगे.

जिन स्थानों तक आज तक विकास नहीं पहुंचा है, उसका कारण किसी चीज का अभाव नहीं रहा है, बल्कि इसका कारण अच्छा शासन नहीं दे पाना रहा है. शासन इतना कमजोर रहा है कि उसका लाभ सभी वर्गो और सभी क्षेत्रों तक नहीं पहुंच पाया है. यह निश्चित रूप से चिंतनीय और सोचनीय है.

आज भी गांव में वह सुविधा नहीं पहुंची है, जो सुविधा ग्रामीणों को मिलनी चाहिए तथा जिसके वह हकदार हैं. गांवों और शहरों में काफी अंतर है. आखिर गांव के लोगों को भी वह सुविधा चाहिए जो सुविधा शहर के लोगों को मिल रही है. इसलिए इन बातों पर हमारे राजनेताओं को विचार करना होगा. भारत की अवधारणा और संविधान निर्माताओं के सपने को पूरा करने की दिशा में काम करना जरूरी है, तभी हम एक मजबूत और प्रभावशाली गणतंत्र पर गर्व कर सकते हैं.

(बातचीत : अंजनी कुमार सिंह)

लेखक परिचय : मार्क टली, बीबीसी के नयी दिल्ली स्थित ब्यूरो के पूर्व अध्यक्ष हैं. जुलाई 1994 में इस्तीफे से पूर्व उन्होंने 30 वर्ष तक बीबीसी के लिए कार्य किया. 20 वर्ष तक बीबीसी के दिल्ली स्थित ब्यूरो हेड का पद संभाला. टली ने भारत पर केंद्रित कई महत्वूपर्ण किताबें भी लिखी हैं.)

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