वो 2007 की दोपहर थी और मुंबई के जूहू इलाके में स्थित एक नामी होटेल में हमेशा की तरह हमें फ़िल्म स्टार कास्ट से मिलने के लिए बुलाया गया था.
यह फ़िल्म थी ‘लाईफ़ इन ए मेट्रो’ जिसमें उस समय शिल्पा शेट्टी, शाइनी आहूजा, कोंकणा सेन, इरफ़ान ख़ान, धर्मेंद्र जैसे कलाकार थे और इनके इंटरव्यू के लिए मीडियाकर्मी क़तार लगाए इंतज़ार कर रहे थे.
यहां-वहां रिपोर्टरों के झुंड मौजूद थे और हर कोई अपनी बारी का इंतज़ार कर रहा था कि इतने में ख़बर उड़ी की आज शिल्पा शेट्टी तो नहीं आ रही हैं और कोंकणा को बाहर निकलना है.
मैं बेचैन हो गया! अरे, कोंकणा भी चली जाएंगी तो इंटरव्यू किसका लेंगे? सुबह से यहां बैठे हैं?
इतने में पीआर ने मुझसे कहा, “संजय तब तक कंगना का इंटरव्यू कर लो वो भी फ़िल्म में को-स्टार है.”
उस रोज कई लोग कंगना के इंटरव्यू के लिए मना कर चुके थे क्योंकि उन्हें डर था कि कहीं इस बीच कोंकणा निकल गई तो लेने के देने पड़ जाएंगे ऐसे में हर कोई कोशिश कर रहा था कि पीआर को कोई बहाना लगा दे. लेकिन मैंने हां कर दी और उस भीड़ में एक कोने में बैठी खूबसूरत, पतली, लंबे घुंघराले बालो वाली लड़की से मेरी पहली मुलाक़ात हुई जिसका नाम था कंगना रनौत.
यह हमारी पहली मुलाक़ात थी, मैं चार साल से मीडिया में था और वो अभी सिर्फ़ दो फ़िल्में पुरानी थी इसलिए मेरा पलड़ा थोड़ा भारी था. कंगना पहली मुलाक़ात में मुझे थोड़ी कम बोलने वाली, प्राइवेट और ज़्यादा सवाल पूछने पर परेशान होने वाली एक सामान्य अदाकारा लगी जो बोलने में हड़बड़ाने और तुतलाने लगती.
मुझे लगा वो बस एक दो फ़िल्मों के बाद यह ग़ायब होने वाली हैं लेकिन कंगना रनौत के पास आज की तारीख में तीन राष्ट्रीय पुरस्कार हैं और हिट फिल्मों की क़तार.
ये तो विकीपीडिया पर भी लिखा है कि कंगना हिमाचल प्रदेश के एक छोटे से गाँव से हैं जहां उनके परदादा एक विधायक थे, दादा आईएस अफ़सर थे और पिता कारोबारी और मां टीचर थीं.
मेडिकल की पढ़ाई छोड़कर वो पहले दिल्ली में मॉडल बनी और फिर थिएटर करते-करते मुंबई आ गई और एक एक्टिंग कोर्स में दाखिल हो गई. मेडिकल की पढ़ाई छूटने पर घर वालों से बातचीत बंद हो गई लेकिन 2007 में जब उनकी तीसरी फ़िल्म लाईफ़ इन ए मेट्रो रिलीज़ हुई तो घरवालों से उनकी फिर से सुलह हो गई और आज कंगना की मैनेजर उनकी सगी बहन रंगोली हैं.
मेट्रो फ़िल्म मिलने से पहले कंगना का बहुत मुश्किल से ग़ुज़ारा चल रहा था. और ये भी नहीं कि कैसे हिमाचल के किसी कस्बे की लड़की अपना सफ़र ख़ुद तय कर बॉलीवुड हीरोइनों की एक नई इमेज गढ़ सकती है.
साल 2007 में लाईफ़ इन ए मेट्रो में कंगना के साथ काम करने वाले इरफ़ान ख़ान ने भी कहा था, “कंगना अब हीरो हो गई हैं, उनके साथ काम करने के लिए अब मुझे हीरोईन बनना होगा.”
बॉलीवुड में अभिनेता आदित्य पांचोली के साथ उनके अफ़ेयर की ख़बरें थी और साथ ही आए दिन आदित्य के कंगना को पीटे जाने के चर्चे आम हो रहे थे, इसी बीच उनकी बहन रंगोली पर एक सिरफिरे आशिक ने एसिड फेंका और इन सारी बातों के एक के बाद एक होने से किसी का भी विचलित होना स्वाभाविक था. कंगना का भी.
बॉलीवुड पत्रकार मनोज खाडिलकर बीबीसी को बताते हैं, “वो दूसरी लड़कियों की तरह नहीं थीं. वो शुरू से ही बाग़ी तेवरों वाली रही हैं. अपनी बहन और अपने साथ हुए हादसों के बाद से उसने ख़ुद अपनी ज़िंदगी का हीरो बनने का फ़ैसला किया और यह उसकी शख़्सियत, उसकी फ़िल्मों की पसंद में दीखता है. ‘क्वीन’ के बाद से जिस कंगना को मैं देखता हूं वो पहले वाली कंगना नहीं है, कमज़ोर तो बिलकुल भी नहीं."
एक्टिंग में धमाल मचाने के अलावा वह सुर्खियों में दूसरी वजहों से भी रहती हैं. कभी कंगना पर उनकी सोसाईटी से झगड़े की ख़बर थी, कभी उन्हें सेट पर गुस्से में देखा गया और कभी शेखर सुमन के बेटे अध्ययन सुमन ने उनपर मार पीट और काला जादू का भी आरोप लगाया.
कंगना की इस कहानी में परिवार से मनमुटाव, अकेलापन, बहन पर एसिड अटैक, प्रेमी से प्रताड़ना–हिंसा जैसी तमाम कहानियां जुड़ी हैं लेकिन जो सबसे बड़ा और गंभीर विवाद उनके नाम से जुड़ा वो था हाल ही में सुपरस्टार ऋतिक रोशन के साथ हुआ विवाद. जो इस कदर आगे बढ़ा कि इस पर सीरियल नहीं तो फिल्म बन ही सकती है.
कंगना ने ऋतिक पर और ऋतिक ने कंगना पर एक दूसरे को ब्लैकमैल और मानिसक रुप से परेशान करने के कई आरोप लगाए. इस मामले ने इतना तूल पकड़ा कि इन दोनों सितारों के निजी इमेल, मैसेज और बातें अख़बारों की सुर्खियों में छपने लगी लेकिन अब इस मामले की क़ानूनी जाँच चल रही है.
ऋतिक रोशन ने इस मामले पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा है, “कोई यह न सोचे कि मामला ख़त्म हो गया है, मैं जल्द ही चीज़ों को लेकर सामने आउंगा”
ऋतिक के साथ हुए इस विवाद में कूदने वाले एक और अभिनेता और कंगना के पूर्व प्रेमी अध्ययन सुमन ने कंगना पर काला जादू करने और ख़ुद को मानसिक व शारिरिक रुप से प्रताड़ित करने का आरोप भी लगाया था.
कंगना चुप रही. पर तब ही तक जब उन्हें उनके काम के लिए तीसरा राष्ट्रीय पुरस्कार नहीं मिल गया. फिर कंगना ने ‘सुमन’ परिवार को सिर्फ़ इतना कहा कि वो किसी पर कीचड़ उछालने नहीं आई हैं और अगर वो ग़लत हैं तो सुमन परिवार अदालत भी जा सकता था. कंगना को अब तक लोगों का रवैया बदल चुका था शायद उनके काम के कारण ही.
कंगना की तुलना लगभग डायन से कर चुके शेखर सुमन ने बीबीसी से इस मामले पर कहा, “अपना लक्ष्य लेकर निकली कंगना मेहनत करते हए अपनी मंजिल की ओर बढ़ रही हैं. सबकी दो ज़िंदगियां होती हैं एक प्रोफेशनल और दूसरी निजी… ऐसा ही कंगना और अध्धयन के बीच जो भी हुआ वो उन दोनों का अपना निजी मामला है. दो लोगों के बीच रिश्तों में कभी मधुरता होती है तो कभी खटास भी आ जाती है, ये तो ज़िंदगी का नियम है. काम को लेकर कंगना की ढृढ़ता, मेहनत और मनोबल जिसकी वजह से आज वो एक मुकाम पर है और उन्होंने ज़िंदगी में उतार चढ़ाव भी देखा है लेकिन वो हरदम बेहद मज़बूत रही हैं.”
लगभग आठ सालों से निर्माता अजय धामा बॉलीवुड में कंगना के करीबी दोस्त रहे हैं, “कंगना जैसे लोग दुनिया में कम मिलते हैं.” अजय के अनुसार जब भी कोई सेलिब्रेशन होता है तो अपने सभी दोस्तों और फिल्म की टीम को बुलाकर कंगना खूब जश्न मनाती हैं.
2013 में आई फ़िल्म रज्जो के दौरान कंगना और फ़िल्म के प्रमोशन का काम संभालने वाली संस्कृता पांडे कहती हैं, “कंगना को हर चीज अपने मन मुताबिक़ चाहिए, वो आमिर ख़ान की तरह परफेक्शनिस्ट हैं और वो उन लोगों पर हावी रहती हैं जिनको काम की जानकारी और अनुभव या तो कम है या है ही नहीं.”
कंगना के दो सालों तक बॉडीगार्ड रहे आनंद घाटगे के अनुसार, “मैडम अपने आस-पास काम करने वाले छोटे-छोटे लोगों का बहुत ध्यान रखती हैं. स्टाफ़ के साथ खाना-पीना, जोक्स सुनना, गेम्स खेलना, हंसी-मज़ाक करना और बच्चों के साथ टाइम बिताना मैडम को ख़ुशी देता है.”
कंगना गुस्सा नहीं होती? आनंद का कहना है, “ऐसी बात नहीं है, एक सवाल को बार-बार पूछने से कंगना चिढ़ जाती हैं और उनको ख़ाली समय में किसी का डिस्टर्ब करना पसंद नहीं है. और हां एक बात और, कंगना जब घर पर रहती हैं और उनके पास वक्त होता है तो वो ख़ुद बहुत अच्छा खाना बनाती हैं और दोनों बहनों में रंगोली ज्यादा सीरियस हैं."
फ़िल्म गैंगस्टर (2006 ) और वो लम्हे (2006) के दौरान कंगना की पड़ोसी और बॉलीवुड की पुरानी लेखक पत्रकार इंदू मिरानी बताती हैं, “कंगना अपनी उम्र को लेकर बेहद सजग थी और एक बार जब हमारे अख़बार में कंगना की उम्र ग़लत छप गई थी तो उस समय रंगोली कंगना का पासपोर्ट लेकर मेरे घर आ गई थी मुझसे लड़ने.”
इंदू के मुताबिक कंगना, ख़ुद से जुड़ी किसी भी अफ़वाह को उड़ने नहीं देती थी, वो बेहद परेशान हो जाती थी मामला भले ही उसकी उम्र का हो, उसके किसी प्रेम संबंध का या किसी क़ानूनी कार्रवाई का, वो दबंग हैं और निडर होकर अपनी बात रखती हैं लेकिन वो शुरू से ऐसी नहीं थी, अपने शुरुआती दिनों में कंगना ने न सिर्फ ख़राब फ़िल्मों का चयन किया बल्कि वो दिखने और बोल-चाल में भी आज से उन्नीस ही थी.
साल 2007 में एक फ़्लॉप रही फ़िल्म ‘शाकालाका बूम बूम’ में कंगना बॉबी देओल के साथ नज़र आई थी और इस फ़िल्म के निर्देशक सुनील दर्शन कंगना की पहली इमेज को भूले नहीं है, “इन दस सालों में कंगना ने अपनी बहुत सी कमियों पर खूब मेहनत की है अब वो बिलकुल परफेक्ट है. मैंने जब शाकालाका बूमबूम के लिए उनको अपने ऑफिस में बुलाया था तो कंगना की भाषा में एक देसीपन था, तब वह इतने फ़र्राटे के साथ अंग्रेजी नहीं बोल पाती थीं.”
वो आगे कहते हैं, “अपने उच्चारण पर, अंग्रेजी भाषा पर जो काम उसने किया है, जो पकड़ बनाई है, वो बेहतरीन है.”
सुनील कंगना की बॉडी की भी तारीफ़ करते हैं और तब ध्यान आता है लीना मोगरे का जिन्होनें कंगना को शुरू के दिनों में ट्रेन किया, “कंगना को मेरे पास मधुर भंडारकर ने भेजा था, डिमांड थी कि उनकी बॉडी को फ़िल्म फ़ैशन के लिए मॉडल की तरह शेप देना है. हम क़रीब तीन से चार साल तक साथ रहे और मेहनत के मामले में वो हार्ड वर्किंग थी और वो पूरे समय गंभीरता से वर्कआउट करती हैं.”
क्या कंगना में कुछ बदला तो लीना कहती हैं, “बहुत कुछ! उनकी इंग्लिश, उनके बात करने का तरीका किसी हॉलीवुड स्टार जैसा हो गया है. वो शुरू से ही खूब योगा करती है लेकिन अब जैसी उनकी फ़िज़ीक है ऐसी पहले नहीं थी. उन्होनें अपनी बॉडी पर बहुत काम किया है और अब वो मेरी ट्रेनिंग से भी बेहतर काम कर रही हैं.”
एक बात जो यहां गौरतलब है वो ये कि कंगना का नाम लेकर उनके पिछले दिनों को याद करते हुए लोग जब कंगना के आज के ज़िक्र पर आते हैं तो अचानक से ‘कंगना मैडम’, ‘उनको’ जैसे संबोधनों का इस्तेमाल करते हैं.
एक ही वाक्य में कंगना से मैडम हो जाना, शायद नाम, पैसा, शोहरत के अलावा कंगना ने बॉलीवुड के इन 10 सालों में ये इज़्ज़त भी कमाई है.
कंगना को उनका पहला नेशनल अवॉर्ड दिलाने वाली फ़िल्म फ़ैशन (2008) के निर्देशक मधुर भंडारकर याद करते हैं, “हम बांद्रा के एक होटल में मिले थे और कंगना इस रोल के लिए उत्साहित नहीं थीं, वो इसके लिए न सोच कर ही आई थीं. लेकिन मैं जानता था वो किरदार उनके लिए ही बना है.”
मधुर कहते हैं, “उसने परेशानी देखी है, वो किसी परिवार या कैंप से नहीं आईं, वो एक गाँव से आई हैं और आज वो जो भी हैं अपने डेडिकेशन और मेहनत की वजह से हैं. कई लोगों को उसमें एटिट्यूड दिख सकता है लेकिन जिस कंगना से मैं 8 साल पहले मिला था यह वही कंगना है, थोड़ी और सॉलिड और मज़बूत, बॉलीवुड की क्वीन.”
(साथ में मुंबई से सुशांत मोहन)(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक और ट्विटर पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)