आठ िदसंबर 1970 को जमशेदपुर आये थे अब्दुल गफ्फार खां
कमल किशोर
बात 1970 की है, आठ दिसंबर का दिन था. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के पुरोधा और सीमांत गांधी के नाम से मशहूर भारत रत्न खान अब्दुल गफ्फार खां जमशेदपुर आये थे. करीब 80 साल की उम्र रही होगी तब सीमांत गांधी की. मौका था रीगल मैदान में आयोजित सार्वजनिक सभा का. सीमांत गांधी को देखने और सुननेवालों की अपार भीड़ उमड़ पड़ी थी.
भारत की आजादी और देश के बंटवारे के बाद वह पाकिस्तान में बस गये थे और 22 साल बाद संभवत: पहली बार (नवंबर 1969 को) भारत आये थे. अपने भाषण के दौरान उन्होंने इस बात का जिक्र भी किया था. करीब दो साल तक वह भारत में ही रहे थे. इसी दौरान जमशेदपुर पहुंचे थे.
अाजादी की लड़ाई और उसके बाद दो देशों के बदलते हालात व दशा को नजदीक से देखने के बाद सीमांत गांधी ने जमशेदपुर में हिंदुस्तान के अवाम को एक बार फिर जगाने की कोशिश की थी. स्वतंत्रता की सीमाएं और मूल्यों से लोगों को अवगत कराया था. जमशेदपुर की इस सभा में टाटा संस के डायरेक्टर सर जहांगीर गांधी, रूसी मोदी सहित कई लोग मौजूद थे.
सीमांत गांधी ने एक राष्ट्र के रूप में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच एकता का समर्थन किया था. बंटवारे के बाद भारत के अंदरूनी हालात और समाज में धार्मिक व सामाजिक विभाजन से वह काफी दुखी थे. जमशेदपुर में कहा भी था, ‘ यह मुल्क बरबादी की तरफ जा रहा है. गांधी जी के जमाने में इस मुल्क की बहुत इज्जत थी.’ भारत में सामाजिक ताना-बाना में सुधार की आवश्यकता बतायी थी. धर्म के आधार पर बंटे लोगों को सबक भी दिया था.
वह मूलत: बहुलवादी व्यक्ति थे. भारत में धर्म और जाति के आधार पर बंटे समाज को जागरूक करने का प्रयास किया था. अपने भाषण में कहा था, ‘ भारत एक ऐसा देश है, जहां के लोग अपने को भारतीय न कह कर हिंदू, मुसलमान, सिख, ईसाई कहते हैं. जिस कौम में कौमियत नहीं, मुहब्बत नहीं, गैरत नहीं, वह कौम क्या है ? ‘ एक आदर्श, विकसित और खुशहाल देश की कल्पना करते हुए बताया था, ‘ कौमियत का मतलब है मुहब्बत, इत्तफाक, इनसानियत. कौमियत का ताल्लुक मजहब से नहीं होता, मुल्क से होता है. मजहब किसी को मारता नहीं. भलाई का नाम, इनसानियत का नाम मजहब है. ‘
सीमांत गांधी को पाकिस्तान में भी कई वर्षों तक जेल में रहना पड़ा था. उन्होंने आठ साल तक निर्वासित जीवन बिताया. इस दौरान उन्होंने इंग्लैंड और अफगानिस्तान में भी काफी समय गुजारा था. देश के विभाजन के विरोधी सीमांत गांधी को पाकिस्तान में स्थापित विचार धारा कभी रास नहीं आयी. वह हमेशा से पाकिस्तान के नीति और सिद्धांतों के खिलाफ रहे. जमशेदपुर में उन्होंने अपने भाषण के दौरान कहा भी था, ‘ हालात बताते हैं, हमारी कुरबानियां किसी काम न आयीं.’ भारत के संदर्भ में कहा था, ‘ मैंने सोचा था कि आजादी के 22 साल बाद हिंदुस्तान खुशहाल होगा और लोगों में मुहब्बत होगी. लेकिन यहां खुशहाली की जगह गरीबी और मुहब्बत की जगह नफरत है. हिंदू, मुसलमान से डरता है और मुसलमान हिंदू से डरता है. ‘
अपने भाषण के दौरान सीमांत गांधी ने देशवासियों को मेहनत कर खुद से खड़े होने की सबक दी थी. तमाम मुश्किलों से लड़ कर खुद को स्थापित करने, कुछ कर गुजरने का जज्बा भरा था.
विदेशी सहायता के भरोसे नहीं, खुद से तकदीर बदलने की वकालत की थी. उन्होंने कहा था, ‘ जर्मनी, रूस और जापान ने हजारों मुश्किलें झेलीं. वहां जंग हुई. जापान हमारे मुकाबले छोटा सा मुल्क है, उस पर एक नहीं, दो-दो बार एटम बम गिरे. और अाज जापान और जर्मनी अपने पैरों पर खड़े हैं. दूसरे देशों की मदद कर रहे हैं. और हिंदुस्तान जैसा बड़ा मुल्क आज भी भिखमंगा है. ‘
सीमांत गांधी किसी के सामने हाथ फैलाने के सख्त खिलाफ थे. अपने जीवन काल में उन्होंने इसे चरितार्थ भी किया था. पाकिस्तान में बसने के बाद उन्होंने पख्तुनिस्तान के लिए आजीवन संघर्ष किया. उन्हें इसके लिए भारी कीमत भी चुकानी पड़ी, पर वह झुके नहीं.
उनके जज्बे और दृढ़ संकल्प की बानगी जमशेदपुर में उनके भाषण के दौरान देखने को मिली. भारत के संदर्भ में उन्होंने कहा था, ‘ आप अमेरिका से मदद मांगते हैं, रूस का दरवाजा खटखटाते हैं, भीख मांगते हैं. आप से दरियाफ्त करता हूं कि आप पर कौन सी जंग आयी है, ऐसी कौन सी मुसीबत का पहाड़ टूटा, जो भीख मांगते हो, दूसरों के आगे हाथ फैलाते हो. ‘ उनके कहने का मतलब स्पष्ट था, खुद की काबिलियत पर भरोसा करो, मेहनत करो, संघर्ष करो, अपने अंदर के जज्बे व साहस को बाहर निकालो.
सीमांत गांधी को देखने और सुनने बड़ी संख्या में विद्यार्थी भी अाये थे. उनके साथ उन्होंने बैठक भी की थी. उन्होंने विद्यार्थियों में देश सेवा का अलख जगाने का भी प्रयास किया था.
इस बैठक में उन्होंने विद्यार्थियों को सलाह दी थी, ‘ हफ्ते में एक बार देहात में जरूर जायें आैर वहां बिना किसी गर्ज के कुछ सेवा का काम करें. देहात में रहनेवाले गरीब जरूर हैं, पर अच्छे लोग हैं. इनसान से मुहब्बत करनेवाले हैं.’ सीमांत गांधी ने अपने भाषण के अंत में धार्मिक आडंबरों से बचने की सलाह दी थी. वैसे लोगों से दूर रहने की सलाह दी थी, जो कथित रूप से खुद को धर्म का ठेकेदार समझते हों, कहा था, ‘ आप मुल्लाओं और सरमायेदारों से बच कर रहें.
सीमांत गांधी 1985 में भी भारत आये थे. उस समय कांग्रेस अपना शताब्दी समारोह मना रही थी.
इस समारोह में सीमांत गांधी आकर्षण के केंद्र थे. 1987 में भारत सरकार ने उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया था. 20 जनवरी 1988 को इस महान व्यक्तित्व का जीवन समाप्त हो गया. जब उनकी मौत हुई, उस समय उन्हें पाकिस्तान सरकार ने पेशावर स्थित उनके घर में नजरबंद रखा था. उनकी इच्छा के अनुसार, उन्हें अफगानिस्तान के जलालाबाद स्थित घर में दफनाया गया. उनके अंतिम संस्कार में दो लाख से अधिक लोग शामिल हुए थे.