भारतीय महिला पहलवान साक्षी मलिक के इतिहास रचने के पीछे उनके पिता सुखवीर सिंह उनकी मां का बड़ा योगदान मानते हैं और बताते हैं कि उन्होंने कुश्ती लड़ने की प्रेरणा अपने दादा से ली, जो अपने समय में पहलवान थे.
रियो में भारत को पहला पदक के तौर पर कांस्य दिलाने वाली साक्षी के पिता दिल्ली में बस कंडक्टर हैं और उन्होंने कुश्ती कभी नहीं लड़ी.
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साक्षी के पिता ने बीबीसी से बातचीत में बताया कि हरियाणा के रोहतक में उनके घर में तो आधी रात से ही दिवाली मनाई जा रही है.
साक्षी के पिता सुखवीर मलिक की आवाज़ बार-बार रुंध रही थी. उन्होंने बताया, "हमारे घर के बाहर रात से ही पटाखे और रंग गुलाल खेला जा रहा है. रात से ही घर के अंदर-बाहर लोग इक्ट्ठा हैं. आज के बाद देशवासियों के लिए साक्षी अनजान नहीं रहेगा."
सुखवीर मलिक ने बताया, "जब साक्षी पैदा हुई तो मेरी पत्नी की जॉब लग गई. हमनें साक्षी को उसके दादा दादी के पास रहने भेज दिया. वह सात साल की होने तक अपने दादा दादी के पास रही. जब गांव के लोग मेरे पिता जी से मिलने आते थे तो पहलवान जी राम-राम कहते थे….तभी से उसने ठान लिया कि वो दादा की तरह पहलवान बनेगी. फिर हमने रोहतक के छोटू राम स्टेडियम में उसको ट्रेनिंग दिलाई."
उन्होंने बताया, "साक्षी ने बहुत मेहनत की थी. उसने दिन रात एक कर दिया था. साक्षी ने मुझसे कहा था ‘पापा मैं मेडल जरूर लाऊंगी’. रूस की पहलवान से हारने के बाद भी हमने आस नहीं छोड़ी थी क्योंकि साक्षी पहले भी ऐसा करती रही है. वो दूसरे खिलाड़ी को भांपने नहीं देती है कि वो कौन सा दांव लगाएगी और कौन सा नहीं."
वो कहते हैं, "उसने यहां भी यही किया और आखिरी मिनट में अपनी पूरी जान लगा दी."
वो कहते हैं कि जीत के बाद जब साक्षी से उनकी बात हुई तो उसने कहा- ‘पापा ये मेडल मैं आपको गिफ्ट करती हूं.’ साक्षी के पिता उसकी उपलब्धी की पीछे उसकी मां का बड़ा योगदान मानते हैं और कहते हैं कि वो तो दिल्ली में नौकरी करते रहे, लेकिन साक्षी के खाने पीने और उसकी ट्रेनिंग का ध्यान उसकी मां ने ही रखा.
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