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भारत और अमेरिका की नजदीकी रास नहीं आ रही पड़ोसियों को

बीजिंग : भारत और अमेरिका के बीच बढ़ रही दोस्ती पड़ोसी मुल्कों चीन और पाकिस्तान को रास नहीं आ रही है. सोमवार को भारत और अमेरिका ने एक ऐसे महत्वपूर्ण समझौते पर हस्ताक्षर किया, जो दोनों देशों को रक्षा क्षेत्र में साजो-सामान के लिए करीबी साझेदार बनाएगा. इससे पहले चीन की सरकारी मीडिया ने कहा […]

बीजिंग : भारत और अमेरिका के बीच बढ़ रही दोस्ती पड़ोसी मुल्कों चीन और पाकिस्तान को रास नहीं आ रही है. सोमवार को भारत और अमेरिका ने एक ऐसे महत्वपूर्ण समझौते पर हस्ताक्षर किया, जो दोनों देशों को रक्षा क्षेत्र में साजो-सामान के लिए करीबी साझेदार बनाएगा. इससे पहले चीन की सरकारी मीडिया ने कहा कि भारत की ओर से अमेरिका के गठबंधन से जुडने के जो प्रयास किए जा रहे हैं, वे चीन, पाकिस्तान और यहां तक कि रुस को भी ‘नाराज’ कर सकते हैं. ये प्रयास भारत को एशिया में भूराजनीतिक शत्रुताओं के केंद्र में लाकर नई दिल्ली के लिए ‘रणनीतिक परेशानियां’ पैदा कर सकते हैं.

रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर और अमेरिकी रक्षा मंत्री एश्टन कार्टर द्वारा साजो सामान संबंधी विशद समझौते पर हस्ताक्षर किए जाने से पूर्व लिखे गए एक संपादकीय में सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने कहा कि यदि भारत अमेरिका की ओर झुकाव रखता है तो वह अपनी रणनीतिक स्वतंत्रता खो सकता है. ‘लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट’ (एलईएमओए) ईंधन भरने और साजो सामान को जुटाने के लिए भारत और अमेरिका को एक दूसरे के सैन्य प्रतिष्ठानों तक पहुंच उपलब्ध करवाता है.

संपादकीय में कहा गया, ‘‘निश्चित तौर पर यह अमेरिका और भारत के सैन्य सहयोग में एक बडा कदम है. अमेरिकी मीडिया ने इस समझौते की बहुत सराहना की है. फोर्ब्स ने इसे ‘युद्ध समझौता’ बताया है और वह यह मान रहा है कि भारत शीत युद्ध के अपने सहयोगी रुस से दूर होकर अमेरिका के साथ एक नए गठबंधन की दिशा में बढ रहा है.’

संपादकीय में कहा गया, ‘‘यदि भारत अमेरिकी गठबंधन के तंत्र में जल्दबाजी में शामिल हो जाता है तो इससे चीन, पाकिस्तान और यहां तक कि रुस भी नाराज हो सकता है. यह शायद भारत को सुरक्षित महसूस कराने के बजाय उसके लिए रणनीतिक मुश्किलें ले आएगा और यह उसे एशिया में भूराजनीतिक शत्रुताओं के केंद्र में ला सकता है.” इसमें कहा गया, ‘‘ ब्रिटेन के औपनिवेशीकरण से मुक्त होने के बाद से भारत के लिए उसकी आजादी और संप्रभुता बेहद अजीज रही है. वह खुद को एक बडी शक्ति के रुप में देखता है और वह उभरते देशों की लहर के बीच विकास कर रहा है.” संपादकीय में कहा गया कि हालांकि अब तक भारत ने अमेरिकी गठबंधन में शामिल होने से बचते हुए सचेत रुख अपनाया है, लेकिन कुछ रक्षा विश्लेषकों ने इस बात पर चिंता जाहिर की है कि भारत अपनी रणनीतिक आजादी खो सकता है. उन्होंने चेतावनी दी है कि यह समझौता नई दिल्ली को वाशिंगटन का ‘पिछलग्गू’ बना सकता है.

भारत को राष्ट्रीय सुरक्षा को सर्वाधिक महत्व देने वाला बताते हुए संपादकीय में कहा गया, ‘‘हमारा मानना है कि यह एक जरुरी काम है क्योंकि एक महाशक्ति बनने के लिए रक्षा व्यवस्था को चाक चौबंद रखना अनिवार्य है , बजाय इसके कि वह संकट से सुरक्षित रहने के लिए अमेरिका से नजदीकी बढाए.” इसमें कहा गया कि अपनी गुट-निरपेक्ष नीति के कारण भारत ने हालिया वर्षों में अमेरिका, जापान, चीन और रुस जैसी सभी बडी शक्तियों को महत्व दिया है. संपादकीय में कहा गया, ‘‘हालांकि हालिया वर्षों में, वाशिंगटन ने जानबूझकर नई दिल्ली को अपना सहयोगी बनने के लिए लुभाने की कोशिश की है ताकि वह चीन पर भू राजनीतिक दबाव बना सके. ऐसा संभव है कि (नरेंद्र) मोदी प्रशासन साजो सामान से जुडे समझौते के जरिए अमेरिका की ओर झुकाव बनाने के अपारंपरिक तरीके को आजमा रहा है.”

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