वाशिंगटन : भारत और अमेरिका ने द्विपक्षीय सामरिक संबंधों को बढ़ावा देते हुए एक व्यापक व ऐतिहासिक साजोसामान आदान-प्रदान करार पर हस्ताक्षर किया है. इससे दोनों देशों की सेनाएं एक-दूसरे की सुविधाओं एवं ठिकानों का उपकरणों की मरम्मत एवं आपूर्ति को सुचारु बनाए रखने के लिए उपयोग कर सकेंगे. इससे उनके संयुक्त अभियानों की दक्षता में इजाफा होगा. अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के कार्यकाल के अंतिम महीनों में इस बहुप्रतीक्षित करार को अंतिम रूप दिया जा सका, जिसका अनुमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पिछले अमेरिका दौरे के दौरान भी मीडिया लगा रहा था, हालांकि उस दौरान इसके दस्तावेज को अंतिम रूप दिया गया था. भारत-अमेरिका के बीच हुए इस करार को वैश्विक राजनीति में अमेरिका के एशिया में बढ़ते चीन के प्रभाव को रोकने की कवायद माना जा रहा है, वहीं, भारत द्वारा इसे चीन-पाकिस्तान गठजोड़ के प्रभाव व आतंकवाद को रोकने की कोशिशों से जोड़ा जा रहा है. पाकिस्तान के प्रमुख अखबार द डॉन ने इसी आशय की खबर भी दी है. इस अखबार ने लिखा है कि अमेरिकी मीडिया इसे ओबामा प्रशासन का की पार्ट मानता है, जिससे वह चीन के प्रभाव को रोक सकेगा. द डॉन ने द फोर्ब्स की दो दिन पूर्व की उस स्टोरी का जिक्र किया है, जिसका शीर्षक था :China And Pakistan Should Note — This Week, India And US Sign The LEMOA Pact. नि:संदेह इस करार से एशिया में शक्ति संतुलन होगा और विदेश राज्यमंत्री एमजे अकबर के शब्दों के अनुसार, भारत जिस ओर चाहेगा एशिया उस ओर झुक जाएगा.
चीन के सरकारी अखबार ने क्या लिखा?
चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने भारत-अमेरिका के बीच हुए रणनीतिक साझेदारी को बड़ा करार माना है, लेकिन लिखा है कि इससे भारत अपनी रणनीतिक स्वतंत्रता खो सकता है और चीन-पाकिस्तान सहित रूस भी नाराज हो सकता है. अखबार ने लिखा है कि अमेरिका जानबूझ कर ऐसा कर रहा है ताकि चीन पर दबाव बनाया जा सके. ग्लोबल टाइम्स के संपादकीय में लिखा गया है कि इससे भारत के लिए सुरक्षित महसूस करने के बजाय,उसेभूराजनीतिकशत्रुताओं के केंद्र में ले आ सकता है.
पर्रिकर व कार्टर ने किये हस्ताक्षर
रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर एवं अमेरिकी रक्षा सचिव एश्टन कार्टर ने ‘‘साजोसामान आदान-प्रदान सहमति करार :एलइएमओए:’ पर हस्ताक्षर किये. उन्होंने कहा कि इससे व्यावहारिक संबंध एवं आदान-प्रदान के लिए अवसर का सृजन होगा.
एलइएमओए से भारत एवं अमेरिका के बीच साजोसामान सहयोग, आपूर्ति एवं सेवाओं का उसकी पुन:पूर्ति के आधार पर प्रावधान होगा तथा उन्हें संचालित करने के लिए एक प्रारूप भी मुहैया कराया जाएगा.
इसमें खाना, पानी, वस्त्र, परिवहन, पेट्रोलियम, तेल, लुब्रिकेंट, परिधान, चिकित्सा सेवाएं, कलपुर्जे एवं उपकरण, मरम्मत एवं देखभाल सेवाएं, प्रशिक्षण सेवाएं तथा अन्य साजोसामान की वस्तुएं एवं सेवाएं शामिल हैं.
करार पर हस्ताक्षर होने के बाद एक संयुक्त बयान में कहा गया, ‘‘वे इस तंत्र पर सहमत हुए कि इस प्रारूप से रक्षा प्रौद्योगिकी एवं व्यापार सहयोग में अभिनव एवं आधुनिक अवसरों के अवसर मिलने में सुविधा होगी. अमेरिका अपने स्तर पर भारत के साथ रक्षा व्यापार एवं प्रौद्योकिगी को बढाने पर सहमत हुआ है तथा यह भारत को उस स्तर के बराबर ले जाएगा जो उसके नजदीकी सहयोगी एवं भागीदारों को प्राप्त है.’
साक्षा मूल्यों व हितों पर आधारित करार
बयान के अनुसार दोनों देशों के बीच के रक्षा संबंध उनके ‘‘साझा मूल्यों एवं हितों’ तथा ‘‘वैश्विक शांति एवं सुरक्षा के प्रति उनकी स्थायी प्रतिबद्धता’ पर आधारित हैं.
पर्रिकर ने कार्टर के साथ एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में स्पष्ट किया कि समझौते में ‘‘भारत में किसी तरह का सैन्य अड्डा या किसी तरह की गतिविधि स्थापित करने का कोई प्रावधान नहीं है.’ इससे पहले दोनों नेताओं ने पेंटागन में बातचीत की.
पर्रिकर ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘समझौते का सैन्य अड्डा स्थापना से कुछ लेना देना नहीं है. यह मूल रूप से एक-दूसरे के बेड़े के लिए साजोसामान सहयोग को लेकर है जैसे ईंधन आपूर्ति, संयुत अभियानों, मानवीय सहायता अन्य राहत अभियानों के लिए जरूरी अन्य चीजों की आपूर्ति.’ उन्होंने कहा, ‘‘इसलिए यह सुनिश्चित करेगा कि दोनों नौसेनाएं उन संयुक्त अभियानों और अभ्यासों में एक-दूसरे की सहयोगी हों जो हम करते हैं.’ अमेरिकी रक्षा मंत्री कार्टर ने कहा कि यह समझौता दोनों देशों को साथ लाने में पर्याप्त रूप से सहायक बनाएगा. उन्होंने कहा कि समझौता दोनों सेनाओं के बीच संयुक्त अभियानों को साजोसामान के हिसाब से आसान एवं कुशल बनाएगा.
कार्टर ने समझाया, ‘‘यह समझौता हमारे लिए साथ काम करना संभव और आसान बनाएगा जब हम इसका चयन करेंगे. यह स्वयं ही नहीं करेगा…वे समझौते…वे ऐसी चीजें हैं जिस पर दोनों सरकारों को मामला दर मामला के आधार पर सहमत होना होगा. लेकिन जब वे सहमत होंगे, यह समझौता चीजों को आसान करेगा एवं कुशल संचालन करेगा.’ उन्होंने कहा, ‘‘यह पूरी तरह से परस्पर है. अन्य शब्दों में हम एक-दूसरे को इस समझौते के तहत पूरी तरह से समान एवं आसान पहुंच मुहैया कराते हैं. यह किसी तरह का आधार समझौता नहीं है लेकिन यह संयुक्त अभियानों के प्रचालन तंत्र को अधिक आसान एवं कुशल बनाता है.’ पर्रिकर ने यह भी संकेत दिया कि भारत को उन दो अन्य मूलभूत समझौतों पर हस्ताक्षर करने की कोई जल्बदाजी नहीं है जिस पर अमेरिका कई वर्षों से जोर दे रहा है.
अहम समझौते
दो मूलभूत समझौतों – कम्युनिकेशंस एंड इंफॉर्मेशन सिक्युरिटी मेमोरेंडम आफ एग्रीमेंट (सीआइएसएमओए), बेसिक एक्सचेंज एंड कोऑपरेशन एग्रीमेंट (बीइसीए) फॉर जियोस्पेशियल इंटेलिजेंस का भविष्य उन चार मूलभूत समझौतों का हिस्सा हैं जिस पर अमेरिका भारत के साथ अपने रक्षा संबंधों को बढ़ाने के अपने प्रयासों के तहत एक दशक से अधिक समय से जोर दे रहा है.
चार समझौतों में से जनरल सिक्योरिटी आफ मिलिटरी इन्फार्मेशन एग्रीमेंट (जीएसओएमआइए) पर 2002 में हस्ताक्षर हुए थे जबकि साजोसामान आदान प्रदान सहमति करार (एलइएमओए) पर हस्ताक्षर कल किए गए.
एलइएमओए जरूरी सहयोग जुटाने का एक अतिरिक्त माध्यम मुहैया कराता है और इसमें मामला दर मामला आधार पर दोनों देशों की मंजूरी जरूरी है.
उदाहरण के लिए अमेरिका के साथ किसी द्विपक्षीय अभ्यास के दौरान हिस्सा लेने वाले देश की इकाई को अपने उपकरण के लिए ईंधन की जरूरत हो. इकाई तब तक खरीद नहीं कर सकती जब तक कि वह सीधा और तत्काल भुगतान नहीं करती.
कार्टर ने कहा कि एलइएमओए समझौते के तहत ईंधन का मूल्य और उसके भुगतान की शर्तें पहले से तय होंगी और जरूरी नहीं कि यह भुगतान नकद में ही किया जाए.
कार्टर ने कहा कि भारत का ‘एक प्रमुख रक्षा साझेदार’ के तौर पर ओहदा अमेरिका को उसके साथ सहयोग करने की इजाजत देगा. यह सहयोग सामरिक और प्रौद्योगिकीय डोमेन में होगा और यह सहयोग अमेरिका के नजदीकी एवं सबसे दीर्घकालिक सहयोगियों के बराबर होगा.