नीतीश ने रखी विभिन्न मुद्दों पर बेबाक राय कहा,मोदी सिर्फ होर्डिंग पर

हाल ही में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इकोनॉमिक टाइम्स को एक लंबा इंटरव्यू दिया. इसमें उन्होंने आगामी आम चुनाव को लेकर एक नये मोरचे को स्वरूप देने के बारे में बातचीत की. यह मोरचा गैर-कांग्रेस, गैर-भाजपा होगा. पढ़िए, उस इंटरव्यू का हिंदी अनुवाद : अभी की बड़ी राजनीतिक तसवीर को आप कैसे देखते […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 1, 2014 5:17 AM

हाल ही में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इकोनॉमिक टाइम्स को एक लंबा इंटरव्यू दिया. इसमें उन्होंने आगामी आम चुनाव को लेकर एक नये मोरचे को स्वरूप देने के बारे में बातचीत की. यह मोरचा गैर-कांग्रेस, गैर-भाजपा होगा.

पढ़िए, उस इंटरव्यू का हिंदी अनुवाद :

अभी की बड़ी राजनीतिक तसवीर को आप कैसे देखते हैं?

यह बिल्कुल साफ है कि कोई भी गंठबंधन पूर्ण बहुमत हासिल करने नहीं जा रहा. हालांकि, प्रचार-प्रसार की सभी तकनीकों और तरह-तरह की जुगत से भाजपा के पक्ष में लहर बनाने का मजबूत और जोरदार प्रयास किया जा रहा है. अगर हम भाजपा और कांग्रेस को एक साथ रख दें, तो भी वे देश की पूरी राजनीति का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकते. भाजपा अपना प्रचार अभियान 272 सीट के लिए चला रही है, लेकिन उसकी पहुंच सीमित है. जहां-जहां भाजपा है, अगर वहां की सभी सीटें उसे दे दें, तो भी वह 272 की संख्या तक नहीं पहुंचेगी. भाजपा का दावा सिर्फ एक प्रचार है जिसमें कोई राजनीतिक यथार्थ नहीं है.

भ्रष्टाचार और महंगाई ने यूपीए के लिए दिक्कतें पैदा कर दी हैं. वह राजनीतिक मोरचे पर भी ज्यादा कुछ नहीं कर सका. सामाजिक और बुनियादा ढांचा क्षेत्रों में मंदी का माहौल चल रहा था. केंद्र बुनियादी ढांचे से जुड़ा एक भी बड़ा प्रोजेक्ट पूरा नहीं कर सका. 2008 में उन्होंने परमाणु ऊर्जा से जुड़ा बड़ा तमाशा किया. यह दावा किया कि वे हर घर तक बिजली पहुंचायेंगे. लेकिन वे इसकी शुरुआत तक न कर सके. उनका प्रदर्शन दयनीय रहा.

तीसरा मोरचा स्वरूप नहीं ले सका, क्योंकि इसका केंद्र हमेशा वाम दल रहे हैं और वे अभी बंगाल में कमजोर हैं, जहां से उन्हें सबसे ज्यादा सीटें मिलती रही हैं. लेकिन क्षेत्रीय दल विभिन्न राज्यों में अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं. आंध्र प्रदेश में जगन मोहन रेड्डी अच्छा कर रहे हैं, ओड़िशा में नवीन पटनायक अच्छे से काबिज हैं, बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में भाजपा कड़ी मशक्कत कर रही है, पर सबसे आगे समाजवादी पार्टी और बसपा हैं. हालांकि भाजपा बिहार में लहर पैदा करने की बहुत कोशिश कर रही है, लेकिन वह यहां बहुत सीटें नहीं जीत पायेगी. भाजपा हरियाणा में मजबूत नहीं है. वह पंजाब और महाराष्ट्र में सहयोगियों के आसरे है.

कुल मिला कर देखें, तो भाजपा केवल छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और गुजरात में मजबूत है. वह कर्नाटक में नीचे गयी है और यही एकमात्र जगह है जहां कांग्रेस मजबूत हो रही है. बाकी जगहों पर कांग्रेस की हालत पतली है. कर्नाटक में येदियुरप्पा एक मुद्दा होंगे, लेकिन कांग्रेस में इसे मुद्दा बनाने की क्षमता नहीं है. राहुल ने भ्रष्टाचार को एक मुद्दा बनाने की कोशिश की, लेकिन इनसान अपने संगी-साथियों से जाना जाता है. वह यह कह कर केवल खुद को बेवकूफ बना सकते हैं कि गंठबंधन पार्टी के साथ होता है, किसी व्यक्ति के साथ नहीं.

लेकिन जनमत सर्वेक्षण भाजपा को 200-210 सीटें मिलने का अनुमान जता रहे हैं?

जब हम भाजपा से अलग हुए, अंदर के एक आदमी, एक वरिष्ठ पत्रकार जो भाजपा की गतिविधियों से वाकिफ रहते हैं, ने मुझे चेताया था कि सर्वेक्षण के चार दौर सामने आयेंगे. उन्होंने मुझे उन एजेंसियों के बारे में भी सबकुछ बताया था जो ये सर्वेक्षण करेंगी. यह केवल जनसंपर्क (पीआर) की कवायद है. आप सिर्फ 20,000 लोगों के नमूने से पूरे देश का निष्कर्ष कैसे निकाल सकते हैं? आप ग्रामीण क्षेत्रों में कितना भीतर तक गये? बिहार में, मुखर तबके शहरी इलाकों में कुछ बोलते रहते हैं और व्यापक बहुमत खामोश रहता है. वे बात नहीं करते. एक सर्वेक्षण के मुताबिक, मेरी लोकप्रियता की रेटिंग 63 फीसदी है और 55 फीसदी मुङो दोबारा मुख्यमंत्री देखना चाहते हैं, लेकिन लोकसभा चुनाव में मुझे सिर्फ 7-13 सीटें मिलेंगी. क्या यह सर्वेक्षण है?

2005 में सर्वेक्षणों ने त्रिशंकु विधानसभा का अनुमान जताया था, तब हमें पूर्ण बहुमत मिला था. 2009 के आम चुनाव में, कोई नहीं कह रहा था कि हम 32 सीटें जीतेंगे. यहां तक कि 2010 में सर्वेक्षणों ने त्रिशंकु विधानसभा की भविष्यवाणी की थी. 2010 में हमारी टक्कर (मोदी के साथ) का एक दौर चला था. उन लोगों ने कोसी के बाढ़ पीड़ितों के लिए पांच करोड़ की मदद देने का दावा करते हुए बैनर-पोस्टर लगा दिये थे. जबकि हम हजारों करोड़ रुपये खर्च कर चुके थे. हमने उनका पैसा लौटा दिया और कहा कि यह इश्तहार दुर्भावनापूर्ण है.

तनाव बढ़ता जा रहा था. यहां तक कि मैं तब इस्तीफा देने को तैयार था, लेकिन वे पीछे हट गये. उन दिनों मैं अपनी यात्र पर था. एक जगह पर भाजपा को मेरे साथ आना था, लेकिन वे नहीं आये. अगले दिन मैंने उनसे कहा कि अगर आप नहीं आना चाहते हैं, तो मैं राज्यपाल के पास जाऊंगा. उस स्थिति में भी मैंने 180 सीटों का अनुमान लगाया था और हमें 206 सीटें मिलीं. इसलिए, मैं जानता हूं कि ये सर्वेक्षण क्या चीज हैं. मैं संसदीय चुनाव 1989 से लड़ता रहा हूं. मैं पांच बार सांसद रहा हूं और ज्यादातर दफा सर्वेक्षणों ने मेरी हार की भविष्यवाणी की थी.

मैंने एक पेशेवर एजेंसी से भी मतदाताओं का मूड भांपने के लिए कहा है. सभी 243 विधानसभा सीटों में प्रत्येक से 500 लोगों को नमूने के तौर पर लिया गया है. मुङो कोई दिक्कत नहीं है. जो नतीजे आ रहे हैं, वे सीएसडीएस द्वारा दिखाये गये मेरी लोकप्रियता के आंकड़े (63}) जैसे ही हैं.

लेकिन कोई भी भाजपा को 190-180 सीटों से कम नहीं दे रहा है?

भाजपा के इतनी ज्यादा सीटें जीतने का सवाल ही नहीं है. क्या आप कह रहे हैं कि भाजपा तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में जीतेगी.

उत्तर प्रदेश और बिहार के बारे में क्या ख्याल है?

वे गलतफहमी के शिकार हो सकते हैं. लेकिन वे उत्तर प्रदेश में भी उतनी ज्यादा सीटें जीतने नहीं जा रहे हैं. वे प्रचार के जरिये एक माहौल बनाने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन इसे टक्कर दी जायेगी. अन्य लोग भी आपके अतिशय प्रोपेगंडा को देख कर अपना विचार बनायेंगे. और हां, यह जो ताकत उनसे बड़ी है वह केवल किसी एक जगह पर नहीं दिखेगी. अभी चुनाव में काफी समय है और आप देखेंगे. ये पार्टियां भी साथ आयेंगी. बहुत-सी पार्टियां सत्र से पहले संसद में आपसी ताल-मेल बिठाने की कोशिश में लगी हैं.

4-5 दिनों में हम साथ बैठेंगे और फैसला करेंगे. वाम दल, उनके मित्र एवं सहयोगी और अन्य मिल कर एक संसदीय धड़ा बनाने की कोशिश कर रहे हैं. उम्मीद है कि अगले दो-तीन दिनों में इसके नतीजे दिखेंगे. संसदीय धड़ा (पार्लियामेंटरी ब्लॉक) से हमारी शुरुआत होगी. विभिन्न राज्यों में जनता दल से निकली सभी पार्टियां एक बड़ी पार्टी या मोरचा के रूप में उभरने के लिए साथ आ सकती हैं. राजनीतिक दलों का एक संघ (फेडरेशन) बनाने के लिए जदयू, उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और कर्नाटक में जनता दल (सेकुलर) के बीच बातचीत चल रही है.

यह पार्टियों का विलय नहीं होगा, लेकिन हम एक संघ में इन्हें जोड़ सकते हैं. हम अपने-अपने राज्यों में अपने-अपने चुनाव चिह्न् पर लड़ेंगे. अगले 10-15 दिनों में कुछ नया खड़ा हो सकता है. वाम दलों और अन्य दलों के साथ धीरे-धीरे यह एक मोरचे का आकार ले सकता है. क्या हुआ जो संसद सिर्फ लेखानुदान के लिए बैठने जा रही है? पहले वहां एक गैर-कांग्रेस, गैर-भाजपा धड़ा दिखेगा, फिर हम इसे आगे ले जा सकते हैं. यह पार्टी और मोरचे के लिए एक ज्यादा बड़ी भूमिका हो सकती है.

सभी इसमें साथ नहीं आ सकते. मुलायम सिंह और मायावती एकसाथ नहीं आ सकते. वाम और ममता एकसाथ नहीं आ सकते. वाम दलों के नवीन पटनायक और जयललिता से अच्छे रिश्ते रहे हैं. उनका केरल में अपना मोरचा है. लोगों में धारणा है कि एनडीए एक गंठबंधन है. लेकिन एनडीए में बचा कौन है? केवल शिव सेना और अकाली दल. मैं एनडीए में था और मैं जानता हूं कि किस तरह के उनके रिश्ते (भाजपा से) हैं. एनडीए बस नाम के लिए है, पूरा फोकस बस भाजपा पर है. लेकिन भाजपा की क्या पहुंच है? वे उत्तर प्रदेश और बिहार में फैलना चाह रहे हैं. मेरा दावा है कि उन्हें बिहार में कुछ मिलने नहीं जा रहा है. उन्हें और प्रचार करने दीजिए, सर्वेक्षणों के दो और दौर सामने आने दीजिए. ये सर्वेक्षण उनके समर्थकों को बतकही करने के लिए कुछ मसाला दे देते हैं. वो अपनी बनायी दुनिया में मस्त हैं!

भाजपा जो भी शहरी मध्य-वर्ग की बात करती रही है, वहां अब एक नयी ताकत है, आम आदमी पार्टी, जो उभर रही है. वे भी इंटरनेट और सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं. भाजपा के लिए आगे की राह आसान नहीं है. हां, उनके पास संसाधन बहुत हैं.

यानी, इन चुनावों में आपके पास एक तीसरा मोरचा होगा. क्या आप चुनाव-पूर्व गंठबंधन करेंगे?

यथासंभव एकता के लिए यह हमारा प्रयास है. पूर्ण एकता नहीं, यथासंभव एकता. हम पहले चर्चा करेंगे, चुनाव-पूर्व, चुनाव-बाद इन सभी चीजों पर बाद में फैसला करेंगे. अभी मैं इससे ज्यादा नहीं कह सकता क्योंकि हम बहुत शुरुआती चरण में हैं. हम बैठेंगे और सभी विकल्पों पर बात करेंगे.

क्या प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार भी होगा? चूंकि इसके मुख्य प्रवर्तकों में मुलायम सिंह और आप है, इसलिए आप में से किसी एक को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार होना चाहिए?

यह कोई मुद्दा नहीं है. इसके बारे में सोचने की कोई जरूरत नहीं है. व्यक्तियों के बारे में सोचने के बजाय हम गैर-कांग्रेस, गैर-भाजपा एकता के लिए काम करेंगे. महत्वपूर्ण बात यह है कि यह एक बड़ी ताकत है, जिसकी पूरी तरह उपेक्षा की जा रही है. यहां तक कि कोई इस ताकत पर ध्यान तक नहीं दे रहा. पूरी बहस एक व्यक्ति के इर्द-गिर्द सिमटी हुई है और अंतर्विरोध से भरी है. उनका लक्ष्य 272 का है, लेकिन उनकी इतनी पहुंच ही नहीं है. फिर कांग्रेस पार्टी है. कांग्रेस जो कहती है, उसमें कोई दम नहीं है. उसके पास कोई राजनीतिक और नैतिक चेहरा नहीं हे. उसके पास सिर्फ सबसे पुरानी पार्टी होने का आभामंडल है, जो केंद्र और राज्यों में सत्ता में थी. अन्यथा, आप मुझे बताइए, एक तरफ वे अध्यादेश फाड़ते हैं और दूसरी तरफ उसी अध्यादेश से लाभान्वित होनेवालों से हाथ मिला रहे हैं. मैं बिल्कुल पहले दिन से जानता था कि कांग्रेस राजद से गंठबंधन करने जा रही है. उनका हमेशा से गंठबंधन था. ऐसे मौकों पर वे केवल सीटों के लिए मोल-तोल करते हैं. लोग भाजपा से कर्नाटक में येदियुरप्पा के बारे में पूछेंगे और वे कांग्रेस से अध्यादेश के बारे में पूछेंगे. आप यह नहीं कह सकते कि आप एक पार्टी से गंठबंधन कर रहे हैं और एक व्यक्ति से नहीं. मैंने कहीं देखा कि वे एक विचार पर गंठबंधन बनाने के लिए बात कर रहे हैं. वह विचार क्या है? बुनियादी विचार होना चाहिए शासन (गवर्नेस) और कामकाज. अभी स्थितियां तरल हैं. कुल मिला कर कहूं, तो त्रिशुंक संसद रहेगी. अपने घर पे बैठ कर कल्पना करते रहिए.. हमारे पास अभी जो दोनों गंठबंधन हैं.. दोनों कल्पना की उड़ान करते हैं.

आप इससे सहमत नहीं हैं कि मोदी की लहर है?

ऐसी कोई लहर नहीं है. कैसी लहर? मुझे लहर तो नहीं दिखती, लेकिन हां, मुझे मोदी के होर्डिग दिखते हैं. लेकिन ये होर्डिग जनता नहीं, भाजपा लगा रही है. या तो इसके लिए लोगों को पैसा दिया जा रहा है या वे मुफ्त में लगा दे रहे हैं. मुझे मीडिया कवरेज दिखता है.

आपको एनडीए से नाता तोड़ने का कोई अफसोस है?

बिल्कुल नहीं. हर दिन मेरा फैसला और सही साबित होता जा रहा है. जिन मुद्दों पर हम अलग हुए, उन मुद्दों पर वे लगातार और ज्यादा अड़ते जा रहे हैं. अगर हमने अपने रास्ते अलग न कर लिये होते तो आज हम ज्यादा बड़ी परेशानी में होते.

मान लीजिए भाजपा 210 सीटें नहीं, सिर्फ 180-170 सीटें जीतती है और यदि मोदी प्रधानमंत्री नहीं बनते हैं, तब क्या आपके भाजपा के साथ लौटने की संभावना है? अगर प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी या राजनाथ सिंह बनते हैं, तब क्या?

नहीं. यह मामला अब खत्म हो चुका है. इब इस रास्ते से पीछे लौटने का कोई मतलब नहीं. एनडीए की एकता उन्होंने तोड़ी है. देश में कांग्रेस-विरोधी माहौल था और ऐसे में भाजपा को बड़ा दिल दिखाना चाहिए था. दो बार ‘भारत बंद’ हुआ था जो बहुत सफल रहे थे. एनडीए, वाम और क्षेत्रीय पार्टियां सभी इसका हिस्सा थीं. यह विपक्ष की एकता थी. उन्होंने सोचा कि कांग्रेस-विरोधी माहौल है और उन्हें चुनाव जीतना चाहिए. इस लालच में वे कूद पड़े. उन्होंने अपना लालच दिखा दिया. मैं उनके पास वापस कैसे जा सकता हूं? पीछे जाना आत्मघाती होगा.

राष्ट्रीय स्तर पर दूसरों से हाथ मिलाना क्या अब आपकी मजबूरी है, ताकि आप बेहद मजबूत दिख रहे विरोधियों का सामना कर सकें?

हम खुद में एक ताकत हैं. हम दूसरों से हाथ मिलायेंगे. हमारा प्रयास एक गैर-भाजपा, गैर कांग्रेस गंठबंधन बनाना होगा जो बहुमत हासिल कर सके. इसके बाद हम एक सर्व-स्वीकृत साझा कार्यक्रम के आधार पर सरकार चलाना चाहेंगे. अगर ऐसी स्थिति आती है, तो हम साथ बैठेंगे और सर्वसम्मति से किसी को (प्रधानमंत्री) चुनेंगे. उन दोनों पार्टियों के दिवा-स्वप्न धूल में मिल जायेंगे. हम उस दिन से ही सक्रिय हैं जिस दिन से हम एनडीए से अलग हुए. हमने निर्वाचन क्षेत्रों और जिलों में सम्मेलन किये. हमने 12 संकल्प रैलियों की योजना बनायी है, जिसमें से सात हो चुकी हैं. हमें शानदार प्रतिक्रिया मिल रही है, लेकिन कोई इसके बारे में नहीं लिखेगा. जान-बूझ कर इन रैलियों की उपेक्षा की जा रही है, ताकि वे स्थापित कर सकें कि हम तो हैं ही नहीं. अगर वे हमारी रैलियों को दिखायेंगे तो उन्हें मानना पड़ेगा की हमारी मौजूदगी काफी बड़ी है. उन्होंने हमें खत्म करार दे दिया है. अब, मैं इसे लेकर परेशान नहीं होता. यहां तक कि कड़ी ठंड और बारिश में भी लोग आये.

आप कहते हैं कि भाजपा 272 सीटों पर तो है ही नहीं, लेकिन उनके पास प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार है. तब आपके समूह का भी प्रधानमंत्री उम्मीदवार क्यों नहीं है?

आप यह दावा नहीं कर सकते कि आप भविष्य के प्रधानमंत्री हैं. कभी-कभी मुङो लगता है कि नरेंद्र मोदी को पीए संगमा से पद की शपथ भी ले लेनी चाहिए जो राष्ट्रपति का चुनाव राष्ट्रपति भवन को पृष्ठभूमि में रख कर चुनाव लड़े थे. वे इस तरह कर रहे हैं मानो वह पहले ही प्रधानमंत्री बन चुके हों. संसदीय व्यवस्था में एक हद तक इसका काफी मतलब है, पर आपको स्थापित करना होगा कि कैसे आप 272 के आंकड़े तक पहुंचेंगे. लेकिन आप कह रहे हैं कि आप काफी कुछ हासिल कर लेंगे, तब आप सहयोगी जुटायेंगे और बाकी अपने आप आपकी तरफ खिंचे चले आयेंगे. यह आपकी ख्याली स्थापना है. लेकिन वे खिंचेगे या नहीं? यह बड़ा सवाल है. और भाजपा के भीतर ही यह चर्चा है कि मोदी को समर्थन नहीं मिलेगा, इसलिए किसी और को प्रधानमंत्री बनना चाहिए. वो सभी प्रतीक्षारत प्रधानमंत्री हैं.

आपका राहुल गांधी के बारे में क्या आकलन है?

मैं वास्तव में उन्हें नहीं जानता. मेरा उनके साथ संवाद नहीं रहा है. अगर उन्हें नेतृत्व करना है, तो उन्हें सीधी बात करनी होगी. उन्होंने एक इंटरव्यू दिया है. मुझे उसे देखने का समय नहीं मिल पाया. लेकिन इंटरव्यू के बारे में जो मैंने सुना है उससे यह लगता है कि वह सीधे जवाब देने से बचते रहे. उन्हें देश के मुद्दों से टकराना होगा, राजनीतिक मुद्दों से सामनेसे भिड़ना होगा. लेकिन वह एक ही चीज के बारे में बात करते रहे.

क्या आपको लगता है कि इस चुनाव में कांग्रेस दहाई में सिमट जायेगी?

कांग्रेस राजनीतिक मुद्दों तक पर बहुत खामोश रही है. वह भाजपा से सामने से नहीं भिड़ सकी. कांग्रेस की हालत अपने कारणों से पतली हुई है. शासन खराब रहा और राजनीतिक रूप से वह सभी मुद्दों पर अनिर्णय की स्थिति में रहा. प्रधानमंत्री ईमानदार हो सकते हैं, लेकिन उनकी कांग्रेस पार्टी में कोई हैसियत नहीं है. प्रधानमंत्री अपनी जिम्मेदारी छोड़ चुके हैं, वह इस्तीफे वाले अंदाज में आ गये हैं. देश का नेता होने की तो बात ही छोड़िए, वह अपनी पार्टी के ही नेता नहीं बन सके.

क्या 1990 के दशक में वाजपेयी की लहर नहीं थी, ऐसा दोबारा क्यों नहीं हो सकता?

1996 और 1998 में निश्चित रूप से उत्तर प्रदेश में भाजपा की लहर थी. यह अयोध्या पर ध्रुवीकरण और अटल जी की उदार शख्सीयत और नेतृत्व के कारण था. आप वाजपेयी की तुलना मोदी से कैसे कर सकते हैं? वाजपेयी को उनकी पार्टी के बाहर के लोग तक स्वीकार करते थे. उन्हें संसद में 40 साल रहने के बाद मौका मिला. और आप एक ऐसे व्यक्ति के बारे में बात कर रहे हैं जिसने कभी संसद का मुंह नहीं देखा. कोई तुलना ही नहीं है. वाजपेयी की लोकप्रियता गढ़ी हुई नहीं थी. यह धीरे-धीरे बढ़ी. आपको यह नहीं सोचना चाहिए कि मीडिया सबकुछ कर सकता है. इसकी सीमित भूमिका है. (साभार: इकोनॉमिक टाइम्स)

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