क्षेत्र की परिस्थितियों व संसाधनों के अनुरूप बने स्वरोजगार से संबंधित योजनाएं : रामचंद्र

रामचंद्र रांची के सिल्ली स्थित रुडसेट के प्रशिक्षण केंद्र के निदेशक हैं. रुडसेट ग्रामीण विकास व ग्रामीणों को रोजगार से जोड़ने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम संचालित करने वाला एक प्रमुख संगठन है. यह संगठन केनरा बैंक, सिंडिकेट बैंक और दक्षिण भारत के एसडीएमइ ट्रस्ट द्वारा संयुक्त रूप से संचालित किया जाता है. पूर्व में सार्वजनिक […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 1, 2014 11:23 AM

रामचंद्र रांची के सिल्ली स्थित रुडसेट के प्रशिक्षण केंद्र के निदेशक हैं. रुडसेट ग्रामीण विकास व ग्रामीणों को रोजगार से जोड़ने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम संचालित करने वाला एक प्रमुख संगठन है. यह संगठन केनरा बैंक, सिंडिकेट बैंक और दक्षिण भारत के एसडीएमइ ट्रस्ट द्वारा संयुक्त रूप से संचालित किया जाता है. पूर्व में सार्वजनिक क्षेत्र के एक प्रमुख बैंक में काम कर चुके रामचंद्र को ग्रामीण रोजगार की अच्छी समझ है. उन्हें पिछले वर्ष केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश से बेस्ट इंस्टीटय़ूट अवार्ड भी मिला. ग्रामीण स्वरोजगार के विभिन्न मुद्दों पर उनसे राहुल सिंह ने बात की. प्रस्तुत है प्रमुख अंश :

झारखंड संसाधनों से भरापूरा राज्य है. फिर भी लोगों के पास रोजगार की दिक्कतें हैं. क्या प्रमुख दिक्कत आप महसूस करते हैं?
यहां रोजगार के अनुरूप कौशल विकास या प्रशिक्षण (स्किल ट्रेनिंग) की आवश्यकता है. प्रशिक्षण पाने वाले लोगों को सक्रिय मार्गदर्शन किया जाये. वास्तविक विषयों-चीजों पर काम होना चाहिए, जो फिलहाल नहीं हो पाता. सरकार की जो पॉलिसी है, उसे वैसे ही उतारना चाहिए. फिलहाल झारखंड में प्रशिक्षण या कौशल विकास को लेकर पेपर वर्क ही ज्यादा होता है. ग्रामीण विकास मंत्रलय की गाइडलाइन के अनुरूप कौशल विकास से संबंधित प्रशिक्षण छह से सात घंटे प्रतिदिन होना चाहिए. लेकिन बहुत जगह वह चार से पांच घंटे ही प्रशिक्षण होता है. जबकि यह आवश्यक है कि हम कम से कम छह घंटे की ट्रेनिंग प्रतिदिन दें.

स्वरोजगार या स्वनियोजन के लिए दिये जाने वाले प्रशिक्षण का प्रारूप कैसा होता है. उसका वर्गीकरण किस रूप से होना चाहिए?
प्रशिक्षण कार्यक्रम में हार्ड स्किल व सॉफ्ट स्किल का प्रशिक्षण दिया जाता है. हार्ड स्किल यानी हुनर से संबंधित प्रशिक्षण. जैसे किसी व्यक्ति को कोई रोजगार या काम करना है तो उससे संबंधित प्रशिक्षण हार्ड स्किल के तहत आता है. जबकि सॉफ्ट स्किल में व्यक्तित्व विकास का प्रशिक्षण दिया जाता है कि कैसे उनमें आत्मविश्वास आये, कैसे उनके संवाद का कौशल बढ़े. प्रशिक्षण सत्र में 60 से 70 प्रतिशत हार्ड स्किल का प्रशिक्षण दिया जाता है, जबकि 30 से 40 प्रतिशत सॉफ्ट स्किल का प्रशिक्षण दिया जाता है. हम इसी तरह एक प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित कर रहे थे, उसमें एक महिला थीं जो बोल-सुन नहीं सकती थीं. हालांकि बाद में वह सबसे अच्छी प्रशिक्षु निकलीं. आज वे कई महिलाओं को प्रशिक्षण भी दे रही हैं. ऐसे लोगों के कौशल विकास भी जरूरत है.

ग्रामीण स्वरोजगार से संबंधित प्रशिक्षण में कैसे बड़ी संख्या में चुन कर आये पंचायत प्रतिनिधियों को सहभागी बनाया जा सकता है?
हमलोगों ने जोन्हा (रांची) हाइस्कूल में एक कार्यक्रम किया था. इसमें सभी वार्ड सदस्य व मुखिया भी आये थे. उनकी सहभागिता वाले इस प्रशिक्षण कार्यक्रम का बहुत अच्छा रिजल्ट आया. हमलोगों ने दो-चार दिन पहले भी वार्ड सदस्यों के साथ बैठक की. ग्रामीण विकास से संबंधित कौशल विकास किया जाये. पंचायत प्रतिनिधियों को जोड़ने से जागरूकता आयेगी. अगर उन्हें सभी ग्राम विकास योजनाओं से लिंक किया जाये तो उसके बेहतर परिणाम आयेंगे.

आपलोग किस तरह उनके लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाते हैं?
हमलोग हाट-बाजार में जागरूकता कार्यक्रम चलाते हैं. गांव में स्टॉल लगा कर कार्यक्रम चलाते हैं. बेरोजगार युवाओं को सेल्फ इंपावरमेंट के माध्यम से आत्मनिर्भर बनाते हैं. पूंजी की जरूरत पूरी करने में भी मदद करते हैं. बैंक से उन्हें कर्ज दिलाते हैं. प्रशिक्षण देने के बाद दो साल तक उन्हें मॉनीटर भी करते हैं. इस दो साल की मानीटरिंग से उन्हें बहुत लाभ होता है.

झारखंड में किस तरह के ग्रामीण रोजगार की संभावना है?
झारखंड के अलग-अलग इलाकों में अलग-अलग तरह के ग्रामीण रोजगार के अवसर हैं. जैसे रांची के सिल्ली-मुरी इलाके में लाह उत्पादन से जुड़े रोजगार की काफी संभावना है, तो सरायकेला इलाके में बांस से बनने वाली चीजों के जरिये रोजगार उपलब्ध कराया जा सकता है. इसी तरह राज्य के हर हिस्से में वहां की परिस्थितियों व संसाधनों की उपलब्धता के आधार पर रोजगार की संभावना है. जरूरत इस बात की है कि जहां जो संसाधन उपलब्ध हैं, वहां उसी संसाधन में वेल्यू एडीशन किया जाये. उसको लेकर जागरूकता लायी जाये, कौशल विकास किया जाये व बाजार उपलब्ध कराया जाये.

ग्रामीणों को रोजगार उपलब्ध कराने में कौन-सी दिक्कतें आप झारखंड के परिप्रेक्ष्य में महसूस करते हैं?
लोगों को तथ्यों की सही जानकारी नहीं है. उनको जानकारी नहीं दी जाती है. लोग चाहते भी हैं कि जानकारी नहीं पहुंचे. ऐसे में आम ग्रामीणों तक सूचनाओं व तथ्यों की सही और स्पष्ट पहुंच होनी चाहिए.

डेयरी, पशुपालन के क्षेत्र में झारखंड में रोजगार की क्या संभावना महसूस करते हैं?
डेयरी के क्षेत्र में अच्छी संभावना है. इसके लिए बैंकर्स को जागरूक होना होगा. बैंक के लिंकेज के लिए उन्हें आगे आना होगा. दिये गये कर्ज की रिकवरी (वापसी) के लिए प्रशासन को आगे आना होगा. उसे बैंक की मदद करनी होगी. क्योंकि कर्ज देने वाले अधिकारी की जिम्मेवारी उसकी वापसी की भी होती है. कुल मिला कर यह एक सामूहिक प्रयास होना चाहिए, जिसमें सभी पक्षों की पूरी भागीदारी हो.

बागवानी या लघु वनोपज कैसे यहां के लोगों के रोजगार का आधार बन सकता है?
बागवानी, सब्जी उत्पादन में रोजगार की संभावना है. वहां भी वैल्यू एडिशन की जरूरत है. झारखंड के 32 प्रतिशत हिस्से में वन क्षेत्र है. यहां वनोपज में भी विविधता है. अत: उसमें वैल्यू एडिशन कर लोगों को अधिक से अधिक संख्या में रोजगार उपलब्ध कराया जा सकता है.

स्वयं सहायता समूहों के जरिये ग्रामीण महिलाओं में आर्थिक आत्मनिर्भरता लायी जा सकती है. लेकिन झारखंड में उनकी स्थिति अच्छी नहीं है. समूहों को बैंक लिंकेज व अन्य कार्यो में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है?
स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) की मूल अवधारणा को अपनाना जरूरी है. आंध्रप्रदेश में एसएचजी का प्रदर्शन काफी अच्छा है, वहां उसके आधारभूत सिद्धांतों को अमल में लाया जाता है. झारखंड में देखने में आता है कि एसएचजी अपने रजिस्टर को अपडेट नहीं करते हैं. समूह की नियमित बैठक नहीं होती है. ऐसे में वे प्रभावशाली नहीं हो पाते. उन्हें दूसरी मदद पाने में दिक्कत होती है. इसलिए इन चीजों को दुरुस्त करना जरूरी है.

झारखंड में पलायन काफी बड़ी संख्या में होता है. उसमें भी जनजातीय आबादी ज्यादा है. रोजगार की दिक्कत भी उस वर्ग के पास अपेक्षाकृत अधिक है. उनके लिए क्या योजनाएं हों? आपलोग किस तरह से उनके लिए काम करते हैं?
हमने अबतक जितने प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाये हैं, उसमें 30 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति (आदिवासी) के लोग ही शामिल हुए हैं. हमारा मानना है कि पलायन रोकने व स्थानीय स्तर पर रोजगार से लोगों को जोड़ने के लिए जागरूकता कार्यक्रम चलाया जाना चाहिए. इसलिए हम इस तरह के काफी कार्यक्रम करते हैं. धनबाद में हमलोगों ने अनुसूचित जाति व जनजाति वर्ग के लोगों के लिए स्वयं सहायता समूह संबंधी एक विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाने का निर्णय लिया है. कुल मिला कर परिणाम के लिए एक समन्वित प्रयास की जरूरत है.

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