मदर टेरेसा बनीं “संत”, पोप फ्रांसिस ने की घोषणा

वेटिकन सिटी: कोलकाता के दीन दुखियों की सेवा करने वाली नन मदर टेरेसा को आज यहां संत घोषित किया गया.पोप फ्रांसिस ने वेटिकन के सेंट पीटर्स स्कवायर में एक लाख श्रद्धालुओं की मौजूदगी में उन्हें संत की उपाधि दी. उन्होंने लैटिन भाषा में कहा कि वह कलकत्ता (कोलकाता) की टेरेसा को संत घोषित करते हैं […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 4, 2016 5:35 PM

वेटिकन सिटी: कोलकाता के दीन दुखियों की सेवा करने वाली नन मदर टेरेसा को आज यहां संत घोषित किया गया.पोप फ्रांसिस ने वेटिकन के सेंट पीटर्स स्कवायर में एक लाख श्रद्धालुओं की मौजूदगी में उन्हें संत की उपाधि दी. उन्होंने लैटिन भाषा में कहा कि वह कलकत्ता (कोलकाता) की टेरेसा को संत घोषित करते हैं और उन्हें संतों की सूची में शामिल करते हैं और अब से वह सभी चर्चों के लिये श्रद्धेय हैं. कल मदर टेरेसा की 19वीं बरसी थी. 1997 में कोलकाता में उनका निधन हो गया था. 20 वीं सदी की महानतम हस्तियों में शामिल मदर टेरेसा करीब चार दशकों तक कोलकाता में रहीं और वहां बीमार और दीन दुखियों की सेवा में जीवन गुजार दिया.

इस कार्यक्रम को शांतिपूर्ण बनाने के लिए करीब 3,000 अधिकारियों को तैनात किया गया था. एकत्र भीड़ में शामिल रहे करीब 1,500 गरीब लोगों की देखभाल टेरेसा की ‘मिशनरी ऑफ चैरिटी’ की इतालवी शाखाएं कर रही हैं. संत की उपाधि दिए जाने के बाद फ्रांसिस के अतिथियों के लिए वेटिकन में पिज्जा भोजन कराया गया जिसे 250 सिस्टर और 50 पुरुष सदस्यों ने परोसा. टेरेसा युवावस्था में भारत में रहीं, इस अवधि के दौरान पहले उन्होंने शिक्षण किया और फिर दीन दुखियों की सेवा की. दीन दुखियों की सेवा करने को लेकर वह धरती पर सबसे मशहूर महिला बन गई. उनका जन्म स्कोप्जे : जो कभी ऑटोमन साम्राज्य का हिस्सा रहा है और अब मकदूनिया की राजधानी है में हुआ था. उनके माता पिता कोसोवो अल्बानियाई मूल के थे. उन्हें 1979 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. उन्हें ईसाई मूल्यों के लिए आत्म बलिदान और परमार्थ सेवा के पथ प्रदर्शक के रूप में दुनिया भर में जाना जाता है
टेरेसा का जन्म 1910 में ओट्टोमन अंपायर के तत्कालीन भाग स्कोप्जे में एक कोसोवर अल्बानियाई परिवार में हुआ था। यह इलाका अब मेसिडोनिया की राजधानी है.उनके बचपन का नाम एग्निस गोंक्शा बोजाशियू था. उनके पिता एक कारोबारी थे और उनका निधन तब हो गया जब वह सिर्फ आठ साल की थीं.बचपन से वह कैथलिक पूजास्थलों में जाया करती थीं और अपना जीवन मिशनरी के कामों में लगाना चाहती थीं.तत्कालीन कलकत्ता में उनके सेवा कार्यों को लेकर उन्हें 1979 में नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजा गया. पुरस्कार प्राप्त करते हुए अपने भाषण में उन्होंने गरीबों की मदद करने के अपने तरीके का पुरजोर बचाव किया जिसकी उन दिनों आलोचना होने लगी थी.जो लोग कहते थे कि जन्म को रोकना गरीबी से लड़ने का अहम तरीका है, उन्हें मदर टेरेसा जवाब देती थीं कि गर्भपात मां द्वारा की गयी सीधी हत्या है

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