।। अनुज सिन्हा।।
(वरिष्ठ संपादक प्रभात खबर)
दिल्ली में पूर्वोत्तर के एक छात्र निदो तानिया की हत्या कर दी गयी. उसका गुनाह सिर्फ इतना था कि जब बाल और चेहरे को लेकर उसका मजाक उड़ाया गया, उसके खिलाफ नस्ली टिप्पणी की गयी तो उसने इसका विरोध किया. यह टिप्पणी कुछ दुकानदारों ने की थी. 19 साल का निदो अरुणाचल प्रदेश के एक कांग्रेस विधायक का पुत्र था और दिल्ली में पढ़ता था. जब दुकानदारों ने निदो और उसके मित्रों पर हमला किया तो पुलिस आयी थी, पर उसने दुकानदारों का ही पक्ष लिया. दुकान का कांच तोड़ने का आरोप लगा कर निदो से हर्जाना भी भरवाया गया. दुकानदारों ने दोबारा हमला किया और निदो की मौत हो गयी. ऐसी घटनाओं का दूरगामी असर पड़ता है. पूर्वोत्तर का हिस्सा पहले से संवेदनशील रहा है. अरुणाचल के बड़े हिस्से पर चीन सीधे दावा करता रहा है. न सिर्फ अरुणाचल, बल्कि संपूर्ण पूर्वोत्तर भारत में गड़बड़ी फैलाने की साजिश लंबे समय से चलती रही है. ऐसी घटनाओं से पूर्वोत्तर के लोगों को शेष भारत के खिलाफ भड़काने का मौका मिल सकता है.
इस बात को समझना होगा कि भारतीय संघ में कई ऐसे राज्य हैं जहां के निवासियों की वेश-भूषा, जीवन-शैली, संस्कृति, शारीरिक बनावट अलग-अलग है. पूर्वोत्तर, भारत का अभिन्न हिस्सा है और वहां के लोगों के भी वही अधिकार हैं जो भारत के अन्य नागरिकों के हैं. किसी के बाल, चेहरे को लेकर की गयी टिप्पणी ही गलत है. देश का कोई भी नागरिक किसी राज्य में जा सकता है, पढ़ सकता है, यह तो उसका हक है. अगर कोई नस्ली टिप्पणी कर उसे उकसाता है, तो एक तरीके से वह देश को तोड़ने में लगी ताकतों की परोक्ष मदद करता है. यह बात सही है कि ऐसी टिप्पणी करनेवालों की संख्या गिनी-चुनी है, लेकिन ऐसी ही टिप्पणी से माहौल खराब होता है. देश का बड़ा तबका महसूस करता है कि पूर्वोत्तर के लोगों को कभी ऐसे न लगने दिया जाये कि उनके साथ दूसरा व्यवहार होता है. बाकी राज्यों के लोगों से मिलने-जुलने के लिए अनेक सरकारी कार्यक्रम तक चलते हैं.
उन्हें दूसरों से कम सम्मान नहीं मिलता है. अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (छात्रों का संगठन) लगभग तीस सालों से पूर्वोत्तर के बच्चों को अन्य राज्यों में आमंत्रित करता है, ताकि वे देश के अन्य राज्यों की संस्कृति को समझ सकें, घुल-मिल सकें, परिवार का हिस्सा बन सकें. ये बच्चे एक सुखद याद लेकर अपने क्षेत्र में वापस लौटते हैं. लेकिन ताजा घटना से ऐसी कोशिशों को आघात लगा है. 1988-90 में जब मैं मैनेजमेंट का छात्र था, मेरे कई साथी पूर्वोत्तर (मिजोरम, नगालैंड) के थे. बड़े मेहनती थे. दो साल तक साथ पढ़ाई की. झारखंड (तब बिहार का हिस्सा) के बारे में अधिक से अधिक जानने का वे प्रयास करते थे. यहां की भाषा सीख रहे थे. टूटी-फूटी हिंदी में जब वे बात करते, बड़ा अच्छा लगता था. उनका अपनापन आज भी याद है. उन दिनों के हालात आज से भिन्न थे. आज चीन समेत कई देशों की नजर पूर्वोत्तर के युवाओं पर रहती है. ऐसे में अगर देश के किसी हिस्से में पूर्वोत्तर के लोगों के साथ नस्ली भेदभाव होता है, तो इससे देश की अखंडता पर असर पड़ सकता है. दिल्ली हो या देश का कोई अन्य शहर, ऐसी घटना फिर न घटे, इसका ध्यान रखना चाहिए.
पूर्वोत्तर के मूल में आदिवासी संस्कृति है, समानता और न्याय का बोध है. वे अन्याय बरदाश्त नहीं कर पाते. इसलिए अगर कोई टिप्पणी करता है तो उसका विरोध करने में वे पीछे नहीं रहते. दिल्ली में भी ऐसा ही हुआ जिसमें निदो की जान गयी. ऐसी घटनाओं से पूर्वोत्तर में प्रतिक्रिया होने का डर भी बना रहता है. गलती की दिल्ली के दुकानदारों ने, दिल्ली की पुलिस ने अ़ौर इसका अंजाम निदरेष हिंदीभाषी लोगोंको भुगतना पड़ता है. पूर्वोत्तर में देश के विभिन्न राज्यों के लोग व्यवसाय कर रहे होते हैं, घूमने जाते हैं, नौकरी करते हैं. प्रतिक्रिया की चपेट में ये आ सकते हैं. देश समङो और अन्याय के खिलाफ खड़ा हो, ताकि पूर्वोत्तर के लोगों को लगे कि पूरा देश उनके साथ खड़ा है, वे अकेले नहीं हैं.