करमा विशेष : भाई-बहन के प्रेम का पर्व करम

आए गेलैं भादो, आंगना में कादो भाई रीझ लागे… झुमइर खेले में आगे बाई रीझ लागे… भादो की एकादशी को करमा पर्व मनाया जाता है़ यह पर्व झारखंड के आदिवासी-मूलवासी सभी मिल कर मनाते हैं. नौ दिन पहले पूजा के लिए टोकरियों में बोये गये जावा फूल (विभिन्न अनाजों) के बीज अंकुरित हो गये हैं […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 12, 2016 5:54 AM

आए गेलैं भादो, आंगना में कादो भाई रीझ लागे… झुमइर खेले में आगे बाई रीझ लागे…

भादो की एकादशी को करमा पर्व मनाया जाता है़ यह पर्व झारखंड के आदिवासी-मूलवासी सभी मिल कर मनाते हैं. नौ दिन पहले पूजा के लिए टोकरियों में बोये

गये जावा फूल (विभिन्न अनाजों) के बीज अंकुरित हो गये हैं अौर सुनहरे चमकदार रंगों में लहलहा रहे हैं. करमदेव की पूजा के लिए आंगन अौर चौक-चौराहों पर

मौजूद पूजा स्थलों को पत्तों, फूलों से सजाया गया है. पूजा में बैठने वाले व्रती स्नान

कर शाम में नये वस्त्र धारण कर शामिल होंगे. शाम में ही करम देव (डाल) को

काट कर युवा लायेंगे. डाल का स्वागत कर पाहन/पुजारी उसे विधिपूर्वक पूजा स्थल

में स्थापित करेंगे. पूजा के साथ ही करमा धरमा की कथा सुनायी जायेगी. पूजा

के बाद जावा फूलों को कानों में खोंसा जायेगा. अौर फिर शुरू होगा मांदर, ढोल, नगाड़े की धुन पर करमा के गीतों पर सामूहिक नृत्य.

– गिरिधारी राम गोंझू

लेखक जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष हैं

भादो का महीना लग गया. आंगन में भादो कर कादो भर गया. ये कादो तो तभी जमेगा, जब आंगन में करम का अंगइन झूमर खेला जायेगा. चारों अोर हरियाली का समंदर लहरा रहा है. गोंदली गोड्डा पक गये हैं. मड़ुआ गदरा रहा है. नदी-नाले भर गये हैं.

अखरा में जोड़ा मांदर बजने लगा है. बहन ससुराल में अकबका रही है. पिछले साल ही उसका विवाह हुआ है. करम पहुंच गया है. मायके में नवविवाहिता पहुंच कर सखी-सहेलियों, छोटी-बड़ी बहनों अौर अपनी करम डाइर से मिलने, झूमर खेलने को व्याकुल हो रही है. कहीं कोइल नदी तो भर नहीं गयी, जिससे भाई न आ पा रहा हो? एको गो मोर बहिन कोइल पार दिया लोक….

भाई करम के अवसर पर बहन को लाने कैसे न जाये. भरी कोयल नदी पार कर भाई पहुंचता है. बहन के लिए नीले रंग की साड़ी ले जाता है. करम के लिए बहन को उसकी ससुराल से विदा करा लाता है. मायके पहुंचते ही उसकी करम डाइर (सहेली विशेष) सखी सहेली अौर बहनें जमा हो जाती हैं. करम की योजना बनाती है. भादो का एकादशी शुक्ल पक्ष को करम का त्योहार है. भाई-बहन के स्नेह का त्योहार है. भाई के लिए बहन करम करने आयी है. भाई की सुख समृद्धि के लिए पूजा करने आयी है. सात दिन बच गये हैं. जावा उठाना है. नयी टोकरी, नदी का नया बालू, सात प्रकार के अन्न (धान, गेंहू, जौ, उड़द, मकई, उरद, कुलथी) तैयार है.

गांव भर की बहनें उपवास कर नदी नहाने जाती हैं. नयी टोकरी में नदी का स्वच्छ महीन बालू भर लाती हैं. घर व आंगन को लीप पोत कर उसके मध्य पीढ़ा सजाती है. उस पर बालू भरी टोकरी स्थापित करती हैं. सातों प्रकार के अन्न के दानों को बालू में मिला कर हल्दी पानी से सींचा जाता है. चारों अोर बहनें गोलाकार जुड़ कर जावा जगाने का गीत गाती व नृत्य करती है. जावा मोय जगालो किया किया जावा… सात दिन इसी तरह प्रात: संध्या बहनें मिल कर जावा जगाती हैं. सातों दिन बहनें शुद्ध सादा भोजन करती हैं.

आज एकादशी है. पर्व करने वाली सभी पार्वतीन बहनें जावा देखती हैं. वे सोने से पीले चमकदार उग आये हैं. साग, मांस मछली, तेल, घी सबका जो पूर्ण/ परहेज कर रखी थी. संध्या के समय गांव की सभी बहनें नदी स्नान करने जाती हैं. घर आकर नयी साड़ी अौर पूर्ण आभूषणों से अपने को सजाती है. गांव के कुछ भाई लोग दिन भर उपवास रख जंगल से करम की तीन डालियां काटने जाते हैं. एक भाई करम की खूबसूरत डाली एक वार से काटता है. नीचे का भाई उसे लोकता है. इसके बाद बड़े आदर सत्कार के साथ उसे घर आंगन लाया जाता है. आंगन में सभी बहनें करम झूर (डाली) के चारों अोर पूजन सामग्री के साथ बैठ गयी हैं. गांव का बूढ़ा पाहन करम की कथा सुनाता जाता है. कथा की समाप्ति के साथ पूजा समाप्त होती है.

पार्वतीन बहनें फलाहार कर करम झूर के चारों अोर अंगनई झूमर का समां बांध देती हैं. सुरीले मधुर गूंजने लगते हैं अौर भाइयों का दल मांदर लेकर आंगन में उतर जाता है. मांदर धींग धातुंग तांग तांग की लय ताल पर गुंजायमान होने लगता है. भादो कर एकादशी करम गड़ालों सखी…गीत गूंजने लगते हैं.

जावा डलिया को पुष्पहार से अदभुत सजा दिया जाता है. रात भर करम गीत, नृत्य व संगीत से पूरा गांव मधुर संगीत से झूमता रहता है. गांव के अखरा का तो कहना ही नहीं, जैसे घर का अंगना, वैसे गांव का अखरा. मांदर के साथ हेचका, करताल, घुंघरू बजते हैं. रात की हर बेला में अलग-अलग रात में गीत गूंजते हैं. सुबह होती है़ करम राजा, करम गोसाई, करम देव को अब विदा करना है. जावा पूजा के बाद बंट चुका है. महिलाएं अपने जूड़े पर पुरुष अपने कानों पर जावा सजा चुके हैं. बचे हुए जावा डाली अौर करम डालियों को उपवासी बहनें उखाड़ लाती हैं. उसे द्वार-द्वार ले जाकर नाचती गाती करम देव को विदाई देती हैं.

आइझ तो रे करम राजा घरे दुवारे काइल तो रे करम राजा कास नदी तीरे..अौर करम गोसांई को नदी में जावा डाली के साथ विसर्जित कर दिया जाता है.

रोम में भी छाता है करम का उल्लास

मनोज लकड़ा

रांची : झारखंड की धरती से हजारों मील दूर रोम में भी करम का उल्लास छाता है. करम के गीत, आधुनिक नागपुरी गीत, ढमकच व अन्य पारंपरिक आदिवासी नृत्यों का समां बंधता है. वेटिकन रेडियो में हिंदी विभाग के प्रभारी के रूप में आठ साल काम कर चुके फादर जस्टिन ने बताया कि वहां झारखंड, ओड़िशा, मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ के आदिवासी मसीही विद्यार्थियों की संस्था, अखिल भारतीय आदिवासी समुदाय (आभास) द्वारा हर साल यह आयोजन किया जाता है़

पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग, जलपाईगुड़ी व अन्य जगहों के कुछ विद्यार्थी भी इसमें शामिल होते है़ं ज्यादातर विद्यार्थी मसीही धर्म शिक्षा केंद्र पोंटिफिकल यूनिवर्सिटी ऑफ ग्रेगोरियाना, उरबानियाना यूनिवर्सिटी व अन्य शिक्षण संस्थानों में पढ़ते है़ं अभी सदस्यों की संख्या 60 है़ इस वार्षिक आयोजन की शुरुआत 1980 के दशक में हुई और तब से यह सिलसिला लगातार जारी है़

अपनी धरती, अपनी संस्कृति से जुड़े रहने की ललक

फादर जस्टिन ने कहा कि यह वहां पढ़ाई कर रहे विद्यार्थियों की अपनी धरती व अपनी संस्कृति से जुड़े की स्वत:स्फूर्त पहल है़ जब देश से बाहर रहते हैं, तो यह जुड़ाव और गहरा होता है़ वहां इस तरह के आयोजनों के अवसर नहीं मिलते हैं, इसलिए इस दिन की प्रतीक्षा सभी बेसब्री से करते है़ं अक्तूबर में विश्वविद्यालयों में नये सत्र की शुरुआत होती है, इसलिए यह नये विद्यार्थियों के स्वागत व पुराने विद्यार्थियों की विदाई का अवसर भी बन जाता है. इस दिन सभी एक साथ नाचते-गाते हैं और प्रार्थना करते हैं. दूसरों को संदेश देते हैं कि हमारा जीवन एकाकी नहीं, बल्कि ईश्वर, प्रकृति और एक-दूसरे से जुड़ा है़

समन्वय स्थापित करने का संदेश देता है करमा

प्रवीण मुंडा

रांची : करमा को झारखंड का बड़ा लोकपर्व कहा जा सकता है. इसकी एक वजह यह है कि इस पर्व को आदिवासी अौर मूलवासी (सदान) दोनों ही वर्ग श्रद्धा अौर उल्लास से मनाते हैं. दूसरी वजह इसका विस्तार है. डॉ रामदयाल मुंडा अौर रतन सिंह मानकी की पुस्तक आदि धरम में जिक्र है कि इसका विस्तार पूर्व में असम से लेकर पश्चिम में राजस्थान तक अौर उत्तर में नेपाल से लेकर दक्षिण में छत्तीसगढ़ तक है. यानी इन क्षेत्रों में किसी न किसी रूप में करमा पर्व को लोग मनाते हैं. यह भी प्रकृति से जुड़ा पर्व है.

सरहुल में अच्छी बारिश के लिए पूजा की जाती है. वहीं करमा में बीज अच्छी तरह अंकुरित हो, उनमें कीड़े न लगें अौर अच्छी फसल हो, इसके लिए पूजा की जाती है. करमा पर्व भाई-बहन के स्नेह का भी पर्व है. बहनें अपने भाइयों की सुख समृद्धि के लिए करम देव की पूजा करती हैं. यह पर्व कर्म अौर धर्म के बीच में समन्वय स्थापित कर चलने का संदेश देता है.

कुछ दशक पहले तक करमा पर्व सादगी से मनाया जाता था, पर पिछले कुछ वर्षों में करमा पर्व धूमधाम अौर रौनक के साथ मनाया जाने लगा है. विभिन्न सरना समिति अौर मोहल्लों में होनेवाली पूजा के दौरान पूजा स्थल की सजावट में क्रिएटिविटी भी देखने को मिल रही है.

पूजा स्थलों के आसपास विद्युत साज-सज्जा की जाती है. पूजा स्थल के पास आकर्षक गेट बनाये जाने लगे हैं. पूजा स्थल को फूलों, पत्तियों, रंगीन झंडियों, बैलून आदि चीजों से सजाया जाने लगा है. कई पूजा समितियां करमा के अवसर पर पूजा स्थल के पास आकर्षक कलाकृतियां बनाती हैं. हालांकि पर्व के मूल अर्थात पूजन पद्धति में कोई बदलाव नहीं आया है. यह पूरी तरह से पारंपरिक तरीके अौर रीति-रिवाजों के साथ ही मनायी जाती है. पूजा करने वाले युवा करम डाल को खुद काट कर लाते हैं, पर आजकल बाजारों में भी करम की डाली बिकने लगी है.

पूरा विश्व ईश्वर का रूप है

करमा पर्व के आदि

से अंत के नियम की

अोर अगर हम गौर

करें, तो ये नियम सर्वशक्तिमान भगवान की ही याद दिलाते हैं. यह पर्व कर्म ज्ञान को मानव समाज में युग युगांतर तक अटूट रखने का भी स्मरण कराता है. इस पर्व में

प्रतीक स्वरूप एक डाला

होता है़ उपासकों द्वारा उस पर पवित्रता के साथ नौ तरह के अनाज के बीजों काे मिट्टी बालू देकर बोया जाता है. उन

बीजों को सूर्य देव को अर्पित कर देने का नियम है. सूर्य के साथ पवन, आकाश, पानी अौर मिट्टी को पंचभूत के रूप में अर्पित करने का नियम प्रकृति रूपी ईश्वर की याद दिलाता है. इस प्रकृति रूपी ईश्वर को जानने के लिए तसवीर, प्रतिमा, नाम, मंदिर की जरूरत नहीं पड़ती. इस नियम के द्वारा यही समझा जाता है कि सीधा प्रकृति का जो रूप हमें देखने को मिलता है, वही ईश्वर का सही रूप है. यह पर्व हमें यह भी याद दिलाता है कि पूरा विश्व ईश्वर का रूप है.

डॉ राजा राम महतो, राष्ट्रीय अध्यक्ष, कुरमाली भाषा परिषद

कई राज्यों में मनता है करमा

झारखंड राज्य की संस्कृति अौर प्रकृति की सुंदरता पूरे देश में एक अलग स्थान रखती है. पहाड़, पर्वत, जंगल, झाड़, गाछ, वृक्ष, नदी, नाले व झरने मन को मंत्रमुग्ध कर देते हैं. यहां पर बसने वाले आदिवासी, गैर आदिवासी एवं सदानों में उच्च विचार व अच्छे संस्कार देखने को मिलते हैं. करमा पर्व भादो एकादशी के दिन हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. इस पर्व को मनाये जाने का मुख्य उद्देश्य है बहनों द्वारा भाइयों के सुख व समृद्धि की कामना करना. सह हमारी संस्कृति और परंपरा को दर्शता है. यह पर्व झारखंड प्रदेश के अलावा पिश्चम बंगाल, असम, ओड़िशा तथा छत्तीसगढ़ में भी धूमधाम से मनाया जाता है.

डॉ मंजय प्रमाणिक

उत्साहित हैं बच्चे और युवा

पूरे साल रहता है

करमा का इंतजार

करमा पर्व का पूरे साल इंतजार रहता है. इसे हमलोग काफी हर्षोल्लास से मनाते हैं. यह भाई-बहन का पर्व है. बहनें, भाई की सुख-समृद्धि के लिए पूजा करती हैं. भाइयों का भी दायित्व होता है कि वे बहनों का ख्याल रखे अौर उनकी रक्षा करे. हम भी करम देव से मनाते हैं कि बहनों की मनोकामना पूरी हो, वे भी सुखी संपन्न रहे. हमारी बस्ती के युवा काफी पहले से ही इसकी तैयारी में जुटे थे.

मोनू उरांव

दीदी से सीख रही हूं करमा के गीत

करमा पर्व में काफी मजा आता है. मैं पिछले कई दिनों से अभी अपनी दीदी के साथ करमा के गीत सीख रही हूं. मैंने नृत्य के भी कुछ स्टेप सीखे हैं. पर्व के दिन मैं भी नृत्य करूंगी. मेरे लिए नये कपड़े की खरीदारी की गयी है. मैं भी पूजा में शामिल होकर करम देव से प्रार्थना करूंगी. पर्व में नृत्य करना अौर पकवान खाना अच्छा लगता है.

अपेक्षा खलखो

पर्व को लेकर बस्ती में उत्साह

एक महीने पहले से ही करमा की तैयारी शुरू हो जाती है. हमारी बस्ती

में काफी उत्साह

है. हमलोगों ने

जैसा पिछली बार करमा का पर्व मनाया था, इस बार उससे भी अच्छा मनाने की कोशिश रहेगी. हमें अपने पर्व-त्योहारों में इसलिए मजा आता है क्योंकि यह हमारी संस्कृित और परंपरा को प्रदर्शित करता है. इसमें बच्चे, बड़े, महिला, पुरुष सभी की सहभागिता हाेेने से इसका मजा दोगुना हो जाता है.

सुनील गाड़ी

जावा फूल सींचने में लगी हूं

पर्व की तैयारी तो काफी पहले से चल रही थी. पर चार सितंबर से जावा फूल उगाने के लिए टोकरी में रखे बालू में जौ, गेंहू, मक्का, रसून, धान, मड़ुआ के बीज बोये गये थे. हर रोज सुबह अौर शाम को हल्दी पानी से सींचने में भी अपनी सहेलियों के साथ शामिल हूं. यह पर्व हमारे जीवन में विशेष स्थान रखता है.

सुगन कच्छप

नया उत्साह भर देता है करम पर्व

भादो का महीना आते ही घर-आंगन की साफ-सफाई शुरू हो गयी थी. जावा जगाने में भी पूरी श्रद्धा अौर उल्लास के साथ शामिल हो रही हूं. पूजा में बैठना अौर करमा की कथा सुनना सभी कुछ अच्छा लगता है. टोला-मोहल्ला में लगाने के लिए सजावटी झंडी बनाने में भी जुटी थी. यह पर्व हमारे अंदर नया उत्साह भर देता है.

सुनीता कच्छप

गीत-संगीत का कर रहे हैं अभ्यास

इस बार पूजा के लिए यूथ कमेटी का भी गठन हुआ है. चंदा एकत्र करने, करमा के रीति-नियमों को सीख रहे हैं. गाने अौर बजाने का भी अभ्यास चल रहा है. हमारी तैयारी काफी अच्छी है. हमलोग धूमधाम से करमा पर्व मनायेंगे. साथ ही समाज अौर परिवार में खुशहाली के लिए प्रार्थना करेंगे.

शनि संतोष तिग्गा

पूजा में लाल पाड़ की साड़ी पहन कर जाऊंगी

पर्व की तैयारियां तो काफी पहले से कर रही हूं. यह पर्व हमारे जीवन में नये उत्साह अौर खुशी का संचार करता है. मैं भी पूजा में शामिल होती हूं. लाल पाड़ की साड़ी पहन कर पूजा स्थल में जाऊंगी. नौ दिनों तक जावा जगाने के दौरान गीत गाकर अौर प्रार्थना करना सुखद एहसास है.

आशा कच्छप

नये कपड़े की हो चुकी है खरीदारी

करमा पर्व को लेकर तैयारियां हो गयी है. साफ-सफाई भी कर ली गयी है. नये कपड़े की खरीदारी भी हो चुकी है. इस पर्व के लिए विशेष पकवान बनाती हूं. चावल का अरसा, अरवा चावल की रोटी, निमकी आदि बनाती हूं. पूजा में शामिल होना, उसके बाद सामूहिक नृत्य अौर सहेलियों से मिलना-जुलना काफी अच्छा लगता है.

रीमा तिग्गा

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