हम दरिया हैं… जिस ओर चल पड़ेंगे, रास्ता बन जायेगा
पटना : हमें भी पढ़ाओ. हम भी पढ़ेंगे. कुछ करेंगे. आगे बढ़ेंगे. हम बिटिया हैं तो क्या, हमारे अंदर भी जज्बात हैं. हम करेंगे आपका नाम रोशन. हम ऊंचा करेंगे अपने सूबे, अपने देश का नाम. कुछ इसी सोच के साथ मुसलिम समुदाय की बेटियां आगे बढ़ रही हैं. पटना की चार बेटियों यासमिन, कौसर, […]
पटना : हमें भी पढ़ाओ. हम भी पढ़ेंगे. कुछ करेंगे. आगे बढ़ेंगे. हम बिटिया हैं तो क्या, हमारे अंदर भी जज्बात हैं. हम करेंगे आपका नाम रोशन. हम ऊंचा करेंगे अपने सूबे, अपने देश का नाम. कुछ इसी सोच के साथ मुसलिम समुदाय की बेटियां आगे बढ़ रही हैं. पटना की चार बेटियों यासमिन, कौसर, बुलबुल व आलिया ने बड़ी मुश्किल से पढ़ाई की और अब गरीब बच्चों को नि:शुल्क पढ़ा रही हैं. उन्होंने साबित कर दिखाया है – हम दरिया हैं, हमें अपना हुनर मालूम है. जिस ओर चल पड़ेंगे, रास्ता बन जायेगा. इन बेटियों के जज्बे को बयां करती अनुपम कुमारी की रिपोर्ट.
* नहीं रुकीं कौसर
शाहगंज की 22 वर्षीय कौसर जहां भी पढ़ना चाहती थीं, लेकिन बड़ी मुश्किल से वह मैट्रिक तक ही पढ़ पायीं. इसके बावजूद वह रुकी नहीं. पिछले चार वर्षों से अपने जैसी अन्य लड़कियों को पढ़ाने में लगी हैं. वह इजाद द्वारा संचालित शाहगंज सेंटर में लगभग 20 लड़कियों को पढ़ा रही हैं.
* उर्दू व फारसी पढ़ा रहीं बुलबुल
बुलबुल परवीन की भी कहानी कुछ ऐसी ही है. उन्होंने किसी तरह से 10वीं तक की पढ़ाई की है. उसने बताया कि वह आगे की पढ़ाई करना चाहती हैं, लेकिन पैसे व सामाजिक माहौल के अभाव में पढ़ नहीं पायी. दूसरों के घरों में काम कर उर्दू और अरबी पढ़ना सीखा. इससे अब वे दूसरों को उर्दू व अरबी पढ़ाती हैं. उससे जो पैसे मिलते हैं, उन पैसों से खुद की पढ़ाई करती हैं. साथ ही मिरशीकार टोली में 30 बच्चियों को पढ़ा रही हैं.
* क्लास वन में आलिया
आलिया की उम्र 18 वर्ष है, लेकिन क्लास वन में पढ़ रही हैं. उन्हें पढ़ाई के लिए 18 साल इंतजार करना पड़ा. वह कहती हैं, मेरे अम्मी व अब्बू मुझे लड़की समझ पढ़ने नहीं दे रहे थे, लेकिन मैं पढ़ना चाहती हूं. इसलिए मैं इजाद द्वारा चलाये जा रहे सेंटर में रोजाना पढ़ने जा रही हूं.
* नि:शुल्क शिक्षा दे रही हैं यासमिन
आलम गंज की यासमिन अंजीम बचपन से ही पढ़ना चाहती थीं, लेकिन उनके पिता व मां उसे लड़की होने के कारण पढ़ाना नहीं चाहते थे. उन्हें केवल घर का काम-काज करने को कहा जाता था. लेकिन, अंजीम घर में बिना अब्बू अम्मी को बताये चोरी-छुपे पढ़ाई करने लगी. जो उन्हें समझ नहीं आता, वह निजी कोचिंग संचालकों से पढ़ाने को कहती थीं. इसके बदले वे स्टूडेंट लाने व कोचिंग के लिये काम करने की बात कहती थीं. इससे कोचिंगवाले उनकी मदद कर देते थे. आज अंजीम एमकॉम कर रही हैं. साथ ही वह अपने जैसी अन्य मुसलिम लड़कियों को नि:शुल्क शिक्षा दे रही हैं.