संयुक्त राष्ट्र : पाकिस्तान को निशाने पर लेते हुए भारत ने कहा है कि परमाणु प्रसार की जारी गतिविधियों पर पाकिस्तान की ‘‘स्पष्ट छाप” है और राज्य तथा राज्येतर तत्वों के गठजोड के तहत विखंडनीय सामग्री का ‘बेलगाम’ विस्तार अमन के लिए सबसे बडा खतरा है.
जिनेवा में ‘निशस्त्रीकरण पर सम्मेलन’ के काउंसलर सिद्धार्थ नाथ ने कहा, ‘‘राज्य इकाइयों और राज्येतर तत्वों के बीच गहरी पैठ बनाए और बेहद परेशान कर देने वाले गठजोड के तहत विखंडनीय सामग्री उत्पादन और परमाणु हथियारों की आपूर्ति प्रणाली का बेरोकटोक विस्तार और आतंकवाद को सक्रिय रुप से बढावा शांति और स्थिरता की राह में सबसे बडा खतरा है.” निरस्त्रीकरण और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित ‘संरा प्रथम समिति’ के 10 अक्तूबर को हुए सत्र में पाकिस्तान द्वारा उठाए गए कश्मीर मुद्दे पर जवाब देने के भारत के अधिकार का इस्तेमाल करते हुए नाथ ने यह टिप्पणी की.
नाथ ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय बिरादरी को उनके खिलाफ एकजुट हो जाना चाहिए जिनके लगातार उल्लंघन से परमाणु खतरा और प्रसार का जोखिम बढ गया है.उन्होंने कहा, ‘‘परमाणु प्रसार की मौजूदा सक्रिय गतिविधियों पर पाकिस्तान की स्पष्ट छाप है.” निरस्त्रीकरण सम्मेलन में पाकिस्तान की स्थायी प्रतिनिधि तहमीना जंजुआ ने कहा था कि पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने पिछले महीने संरा महासभा में अपने संबोधन में पाकिस्तान और भारत के बीच परमाणु परीक्षण पर प्रतिबंध लगाने की द्विपक्षीय व्यवस्था पर सहमति जताने की इच्छा जताइ. .
उन्होंने कहा, ‘‘उस प्रस्ताव पर जवाब का हम अभी भी इंतजार कर रहे हैं.” जंजुआ ने कहा है कि दक्षिण एशिया में शांति और स्थिरता तब तक कायम नहीं हो सकती है जब तक जारी विवाद हल नहीं किए जाते जिसमें ‘‘जम्मू-कश्मीर का विवाद, परमाणु और मिसाइल के इस्तेमाल पर संयम और पारंपरिक बलों का संतुलन स्थापित करना शामिल है.”
नाथ ने जवाब देने के अधिकार के तहत कहा कि, ‘‘यह हास्यास्पद है कि एक ऐसा देश जिसके अप्रसार का रिकार्ड अवरोधवाद से रेखांकित है वह अपना हित साधने वाले अपने प्रस्तावों पर अंतरराष्ट्रीय बिरादरी को रजामंद करना चाह रहा है.” उन्होंने कहा, ‘‘यह रिकार्ड का विषय है कि अंतरराष्ट्रीय निरस्त्रीकरण एजेंडे और निरस्त्रीकरण सम्मेलन को बाधित करने के लिए पाकिस्तान अकेले ही जिम्मेदार है.” जंजुआ ने भी जवाब देने का अधिकार इस्तेमाल करते हुए सवाल उठाया है कि भारत ने परमाणु परीक्षण पर पाबंदी की द्विपक्षीय व्यवस्था के उनकी सरकार के प्रस्ताव का अभी तक जवाब क्यों नहीं दिया.
पाकिस्तानी प्रतिनिधि ने आरोप लगाया कि भारत ने अपना पहला परीक्षण 1974 में किया था जिसमें उसने उस परमाणु संयंत्र के संसाधनों का इस्तेमाल किया था जिसकी आपूर्ति शांतिपूर्ण इस्तेमाल के लिए की गई थी और दक्षिण एशिया को परमाणु हथियारों से मुक्त करने के पाकिस्तान के अनेक प्रस्तावों के बावजूद भारत लगातार ऐसे हथियारों का निर्माण करता रहा था. उन्होंने परमाणु परीक्षण पर द्विपक्षीय प्रतिबंध के प्रस्ताव पर भारत से जवाब की मांग की.