दीपावली विशेष: रामायण से जुड़ा है दीया व आकाशदीप का इतिहास

!!केशव कुमार!!दीपावली के मौके पर सामान्य तौर पर दीप जला कर घरों को रोशन करने की परंपरा है. साथ ही इस मौके पर आकाशदीप का भी विशेष महत्व बताया गया है. कहते हैं कि यह आकाशदीप माता लक्ष्मी और भगवान गणेश को आमंत्रित करने के लिए जलाया जाता है. इसका इतिहास रामायण काल से ठीक […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 29, 2016 1:06 AM

!!केशव कुमार!!
दीपावली के मौके पर सामान्य तौर पर दीप जला कर घरों को रोशन करने की परंपरा है. साथ ही इस मौके पर आकाशदीप का भी विशेष महत्व बताया गया है. कहते हैं कि यह आकाशदीप माता लक्ष्मी और भगवान गणेश को आमंत्रित करने के लिए जलाया जाता है. इसका इतिहास रामायण काल से ठीक उसी प्रकार जुड़ा है, जैसे दीपावली पर दीये जलाने का है. लेकिन आधुनिकता के इस दौर में अब यह परंपरा विलुप्त होती जा रही है. वहीं जहां आकाशदीप जलाये जाते हैं, वहां भी यह केवल स्टेटस सिंबल बन कर रह गया है. आकाशदीप पर भी आधुनिकता ने गहरा प्रभाव डाला है. आलम यह है कि इस परंपरा में भी चीन व चाइनीज आइटम ने अपनी गहरी पैठ बना ली है. वहीं देश में चाइनीज सामानों के बढ़ते विरोध के मद्देनजर अब कई आधुनिक मॉडल के आकाशदीप भी मेड इन इंडिया का टैग लगा कर बेचे जा रहे हैं और ग्राहक उसमें दिलचस्पी भी ले रहे हैं.

पहले बना स्टेटस सिंबल, अब मिट रहा है आकाशदीप का चलन
बदलते वक्त के साथ आकाशदीप भी मॉडर्न होते चले गये. धीरे-धीरे यह स्टेटस सिंबल बनता गया और सबसे ऊंची व आकर्षक आकाशदीप की होड़ सी मच गयी. इस बीच चाइनीज आइटम ने भी आकाशदीप में अपनी दस्तक दे दी. वहीं इसके साथ ही आकाशदीप के इस पौराणिक परंपरा का क्षरण भी शुरू हो गया. सर्वप्रथम आकाशदीप शहरों से गायब होने लगे और अब आलम यह है कि ग्रामीण इलाकों में भी आकाशदीप बिरले ही नजर आते हैं. वही जहां आकाशदीप जलाया जाता है, वहां भी इस पर परंपरा की जगह आधुनिकता भारी पड़ती ही नजर आती है. पंडित पंकज झा बताते हैं कि दीपावली मूल रूप से प्रकृति की पूजा पर आधारित होती है. इसमें दीप और आकाशदीप दोनों में प्राकृतिक चीजों का प्रयोग विशेष फलदायी बताया गया है. बताया कि आकाशदीप में बांस के अलावा कागज, मिट्टी के दीये व नारियल रस्सी का प्रयोग करना श्रेयष्कर है.

देसी के नाम पर बिक रहे हैं आधुनिक आकाशदीप
दीपावली के मौके पर आकाशदीप का विशेष महत्व है. यही कारण है कि इस महत्व को जानने वाला हर व्यक्ति आकाशदीप अनिवार्य रूप से जलाता है. वही इसके कारण कई आधुनिक मॉडल के आकाशदीप भी बाजार में उपलब्ध हैं. इसमें से कई मॉडल चाइनीज भी हैं, जो 100 से 500 रुपये की कीमत तक उपलब्ध हैं. लेकिन धड़ल्ले से इन्हें मेड इन इंडिया कह कर दुकानदारों द्वारा बेचा जा रहा है. इसकी मूल वजह यह है कि पाकिस्तान प्रकरण में चीन द्वारा अप्रत्यक्ष समर्थन से उत्पन्न जन जागृति के कारण आम लोगों ने चाइनीज आइटम का विरोध करना आरंभ कर दिया है. लिहाजा दुकानदारों की परेशानी यह है कि उन्हें किसी भी प्रकार अपना स्टॉक खाली करना है.

रामायण से जुड़ा है दीया व आकाशदीप का इतिहास

दीपावली का इतिहास रामायण काल से जुड़ा है. साथ ही इस मौके पर प्रयुक्त होने वाले दीप और आकाशदीप भी इससे जुड़े हुए हैं. कहते हैं कि दीपावली की शुरुआत रामायण काल में ही हुई थी. 11 वर्षों के वनवास के उपरांत भगवान राम दीपावली के दिन ही अयोध्या लौटे थे. तब अपने प्रिय भगवान श्री राम के स्वागत में अयोध्यावासियों ने पूरे नगर को रोशन किया था. खुशी को दर्शाने के लिए लोगों ने दीप के माध्यम से घरों को जगमग किया. साथ ही भगवान को रात्रि काल में राजमहल तक जाने में कोई समस्या न हो इसके लिए सड़कों पर भी दीये जलाये गये. इसके अलावा आसपास के अन्य नगरों को भी अपनी खुशी दर्शाने तथा भगवान को नगर की झलक दूर से दिखाने के लिए आकाशदीप का प्रयोग किया गया था. इसके लिए बांस के खूंटे लगा कर प्राकृतिक चीजों से ही झोपड़नुमा आकृति तैयार की गयी और उसमें दीप प्रज्वलित कर, बांस के सहारे ऊपर लटका दिया गया. तब से ही इस आयोजन को हर वर्ष उत्सव की तरह मनाया जाने लगा और दीपावली पर दीप और आकाशदीप जलाने की परंपरा स्थापित हो गयी.

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