अनासक्त निष्काम कर्मयोगी पंडित दीन दयाल उपाध्याय

।। सत्येंद्र कुमार मल्लिक ।। – पं दीनदयाल राजनीति में संत थे. आर्थिक शक्तियों के विकेंद्रीकरण में विश्वास करते थे – आर्थिक प्रजातंत्र के पक्षधर थे. प्रखर साहित्यकार व श्रेष्ठ पत्रकार भी थे. उनकी प्रथम कृति सम्राट चंद्रगुप्त बहुत लोकप्रिय हुई, भारतीय राजनीति के धरातल पर महान विभूतियों की आकाशगंगा में एक दैदीप्यमान सूर्य पंडित […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 11, 2014 6:32 AM

।। सत्येंद्र कुमार मल्लिक ।।

– पं दीनदयाल राजनीति में संत थे. आर्थिक शक्तियों के विकेंद्रीकरण में विश्वास करते थे

– आर्थिक प्रजातंत्र के पक्षधर थे. प्रखर साहित्यकार व श्रेष्ठ पत्रकार भी थे. उनकी प्रथम कृति सम्राट चंद्रगुप्त बहुत लोकप्रिय हुई,

भारतीय राजनीति के धरातल पर महान विभूतियों की आकाशगंगा में एक दैदीप्यमान सूर्य पंडित दीन दयाल उपाध्याय को हम आधुनिक राजनीति में शुचिता एवं शुद्धता का प्रतिरूप देनेवाले नि:स्वार्थ एवं एकनिष्ठ भाव से राष्ट्र को समर्पित पुरुषार्थ के रूप में दीप्तमान मानते हैं. उनका एक ही लक्ष्य था भारत को राजनीतिक दृष्टि से सुदृढ़,सामाजिक दृष्टि से उन्नत व आर्थिक दृष्टिकोण से समृद्ध राष्ट्र के रूप में स्थापित करना. पंडित जी अपने विचार से ही नहीं बल्कि कर्म से महान थे. वे अनासक्त निष्काम कर्मयोगी थे.

उनके पिता का नाम भगवती प्रसाद व माता का नाम रामप्यारी था. उनका जन्म 25 सितंबर 1916 को राजस्थान के धनकिया में हुआ, पिता व नाना पंडित चुन्नीलाल शुक्ल स्टेशन मास्टर थे, पितामाह पंडित हरिराम मथुरा जिला के ग्राम नगला चंद्रभान के प्रसिद्ध ज्योतिषी थे.

पं दीनदयाल जी राजनीति में संत थे. वे आर्थिक शक्तियों के विकेंद्रीकरण में विश्वास करते थे. वे आर्थिक प्रजातंत्र के पक्षधर थे. एक प्रखर साहित्यकार व श्रेष्ठ पत्रकार भी थे. उनकी प्रथम कृति सम्राट चंद्रगुप्त बहुत लोकप्रिय हुई, इसका कई भाषाओं में अनुवाद हुआ.

डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नेतृत्व में जब अखिल भारतीय जनसंघ के निर्माण पर विचार हो रहा था तो उसके प्रथम प्रणोता बने उपाध्याय जी और 21 सितंबर 1951 को लखनऊ में प्रादेशिक सम्मेलन आयोजित कर जनसंघ की स्थापना कर दृढ़ निश्चयी के परिचायक बने. 1952 में जनसंघ का प्रथम अखिल भारतीय अधिवेशन कानपुर में हुआ जिसमें उन्हें महामंत्री पद सौंपा गया और बाद में 1962 में वे इसके अध्यक्ष निर्वाचित हुए. 11 फरवरी 1968 को उनकी आकस्मिक मृत्यु पर अटल बिहारी वाजपेयी के शब्द – दीप बुझ गया, हमें अपने जीवन-दीप जला कर अंधकार से लड़ना होगा. सूरज छिप गया, हमें तारों की छाया में अपना मार्ग ढूंढ़ना होगा. उनकीआदर्शवादिता को अंगीकार करना ही उनकी मंगलकामना होगी.

लेखक जेपी विचार मंच के अध्यक्ष हैं.

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