वाशिंगटन : चीन के अगंडे के बाद इस साल भारत को परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह (एनएसजी) की सदस्यता नहीं मिल पायी, जबकि अमेरिका ने काफी प्रयास किया था. वहीं अब अपने कार्यकाल के अंतिम महीने में बराक ओबामा कुछ ऐसा उपाय कर सकते हैं जिससे भारत एनएसजी का स्थायी सदस्य बन सकता है. हालांकि बहुत कुछ अमेरिका के नये राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पर निर्भर करता है. एनएसजी के सदस्य देशों के बीच इस महीने की शुरुआत में बांटे गये नये मसौदा प्रस्ताव से भारत के इस विशिष्ठ समूह का सदस्य बनने का मार्ग प्रशस्त हो सकता है, लेकिन अगले महीने ओबामा प्रशासन का कार्यकाल पूरा होने तक ऐसा होने की संभावना नहीं है.
भारत को एनएसजी का पूर्ण सदस्य बनाने के अमेरिकी प्रयास को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी अब ट्रंप प्रशासन की होगी क्योंकि ओबामा प्रशासन मोदी सरकार से किया गया अपना वादा 20 जनवरी तक शायद ही पूरा कर पाए. परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर नहीं करने वाले भारत और पाकिस्तान जैसे देशों को एनएसजी सदस्यता के लिए मसौदा एनएसजी के पूर्व प्रमुख राफेल मारियानो ग्रोसी की ओर से सौंपा गया, जिन्होंने दक्षिण कोरिया की ओर से रिपोर्ट तैयार की. दक्षिण कोरिया फिलहाल एनएसजी का अध्यक्ष है.
वाशिंगटन स्थित थिंक टैंक ‘आर्म्स कंट्रोल एसोसिएशन’ (एसीए) के अनुसार दो पृष्ठों के मसौदे में ऐसी नौ प्रतिबद्धताओं की पेशकश की गयी है, जिनको भारत और पाकिस्तान देशों को पूरी सदस्यता हासिल करने के क्रम में जताने की जरुरत होगी. अमेरिकी सरकार के सूत्रों ने बताया कि मौजूदा ‘समयसीमा’ में यह सुनिश्चित नहीं है कि भारत को ओबामा प्रशासन के तहत सदस्यता मिलेगी.
प्रस्ताव में कहा गया है कि एनएसजी समूह में शामिल होने के लिए आवेदन करने वाले गैर परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) वाले देश एक दूसरे की सदस्यता को लेकर आपत्ति नहीं उठा सकते. ऐसे में पाकिस्तान भारत के खिलाफ किसी भी प्रकार की आपत्ति दर्ज नहीं करा सकता है.