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रांची: छोटी सी बात नागवार गुजरी, कर दी पांच की हत्या

रांची: 02 जून 2003 की उस रात की घटना ने दूसरे दिन सुबह पूरे शहर को झकझोर कर रख दिया था. बरियातू रोड के गांधी विहार मुहल्ला स्थित वन संरक्षक धीरेंद्र कुमार की पत्नी, दो बेटे, एक रिश्तेदार और एक नौकर की मौत जल कर हो गयी थी. देर रात लगी उस आग की लपटें […]

रांची: 02 जून 2003 की उस रात की घटना ने दूसरे दिन सुबह पूरे शहर को झकझोर कर रख दिया था. बरियातू रोड के गांधी विहार मुहल्ला स्थित वन संरक्षक धीरेंद्र कुमार की पत्नी, दो बेटे, एक रिश्तेदार और एक नौकर की मौत जल कर हो गयी थी.

देर रात लगी उस आग की लपटें सुबह तक उठ रही थी. घर का नौकर अजय पाल घर के कुएं में बेहोशी की हालत में लटका हुआ मिला था. उसे पास के ही साईं अस्पताल में भरती कराया गया था. दूसरे दिन मलबा हटाने का काम शुरू हुआ, तब यह दुर्घटना सामूहिक हत्या में तब्दील होना शुरू हो गया.

शुरुआती जांच में तो पुलिस को अजय पाल पर शक नहीं हुआ, लेकिन दो बजते-बजते मामला साफ हो गया. पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया. अस्पताल में उससे पूछताछ शुरू हुई. कड़ाई से पूछे जाने के बाद जब पुलिस के समक्ष उसने एक-एक वाक्या का खुलासा किया, तब पुलिस सन्न रह गयी. दिल को दहला देनेवाली घटना को खुद अजय पाल ने अंजाम दिया था. पुलिस को शुरुआती दौर में उसका बयान काल्पनिक और अविश्वसनीय लगा, क्योंकि पुलिस को भी यह समझ में नहीं आ रहा था कि एक अकेला आदमी छोटी सी बात को लेकर ऐसी दर्दनाक घटना को कैसे अंजाम दे सकता है, लेकिन उसका कहा सच साबित हुआ.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में खुलासा
घटना के बाद जब पुलिस को पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिली. रिपोर्ट में यह साफ हुआ कि अमिता, आयन व अनमोल की मौत जलने और दम घुंटने से हुई, जबकि हर्षित और नौकर बिट्ट की मौत चोट लगने से हुई. फोरेंसिंक जांच रिपोर्ट से यह बात सामने आया था कि घर में आग लगाने के लिए उच्च श्रेणी की स्प्रीट का इस्तेमाल किया गया था.

पांच अप्रैल 2007 को हुआ था दोषी करार
पांच साल के ट्रायल के बाद पांच अप्रैल 2007 को अदालत ने उसे दोषी करार दिया था और नौ अप्रैल 2007 को रेयरेस्ट ऑफ रेयर केस मानते हुए अदालत ने उसे फांसी की सजा सुनाई.

घटनाक्रम

02 जून 2003 : वन संरक्षक धीरेंद्र कुमार की पत्नी, बच्चे व नौकर की हत्या.

03 जून 2003 : पुलिस ने कुएं में छिपे नौकर अजय पाल को बाहर निकाला. गिरफ्तार किया.

13 नवंबर 2003 : सरकार ने मामले की जांच सीबीआइ को सौंपने की अनुशंसा की.

30 नवंबर 2003 : मामले की जांच का जिम्मा सीबीआइ को सौंपा गया.

21 जनवरी 2004 : सीबीआइ ने जांच शुरू की.

अप्रैल 2004 : अजय पाल का ब्रेन इलेक्ट्रीकल एक्टीवेशन टेस्ट, फिंगर प्रिंट, लाई डिटेक्टर व नारको टेस्ट कराया गया.

04 मई 2005 : सीबीआइ की अदालत में अजय पाल के खिलाफ आरोप गठित.

05 अप्रैल 2007 : अदालत ने अजय को हत्या का दोषी करार दिया.

09 अप्रैल 2007 : अदालत ने अजय पाल को फांसी की सजा सुनायी.

.और रच दी हत्या की साजिश
अजय पाल नौ साल से वन संरक्षक के यहां नौकरी कर रहा था. वह घर में खाना बनाने का काम करता था. दो जून की रात उसने आलू की सब्जी बनायी थी. वन संरक्षक की पत्नी अमिता ने अजय से कहा था कि कल सुबह तुम अपने घर चले जाना. सिर्फ इतनी सी बात उस पर नागवार गुजरी और उसने पूरे परिवार की हत्या की साजिश रच डाली. रात लगभग तीन बजे वह सबसे पहले अमिता उर्फ रूबी के कमरे में गया. वह अपने बेटे आयन और रिश्तेदार अनमोल के साथ सोयी हुई थी. अजय पाल ने उस कमरे में रखे अखबार और कपड़ों में आग लगा दी. उसके बाद वह दूसरे कमरे में गया, जहां हर्षित सोया हुआ था. अजय पाल ने पहले हर्षित का गला दबाया और डंडे व किसी भारी सामान से उसके सीने पर वार किया. इस कारण हर्षित के मुंह से खून निकलने लगा और उसकी मौत हो गयी. हर्षित के मरने के बाद अजय पाल ने उसे आग में झोंक दिया. वन संरक्षक के परिवार के लोगों की हत्या करने के बाद अजय पाल को लगा कि वह पकड़ा जा सकता है, क्योंकि घर का दूसरा नौकर बिट्ट अभी जिंदा था. वह उसके कमरे में गया और डंडे से पीट कर उसे भी बेहोश कर दिया, फिर आग में झोंक दिया. हर्षित और बिट्ट को मारने के लिए अजय ने सांवल (खंती) का इस्तेमाल किया था.

बार-बार बयान बदल रहा था
अजय पाल को पुलिस ने कई बार रिमांड पर लिया. वह बार-बार अपना बयान बदल रहा था. एक बार तो उसने पुलिस को यह बता दिया था कि पांच लोगों की हत्या में उसके साथ दो और साथी शामिल थे. बाद में पुलिस ने उससे फिर पूछताछ की, तो उसने बताया कि जेल में कुछ लोगों ने उसे ऐसा कहने को कहा था. उसने बताया कि उसने अकेले ही पांचों की हत्या की और डर से कुएं छिप गया था. कुआं ग्रिल से बंद रहता था. पानी खींचने वाले स्थान से वह कुआं के ग्रिल का ताला खोल कर अंदर जाकर छिप गया था.

साढ़े नौ वर्ष से घर में काम कर रहा था अजय पाल
झालदा के बामनिया निवासी अजय पाल (वर्ष 2003 में उसकी उम्र 25 साल थी) पांचवी कक्षा पास है. 15 वर्ष की उम्र से ही वह वन अधिकारी धीरेंद्र कुमार के परिवार से जुड़ गया था. करीब छह माह कर उसने वन अधिकारी के ससुराल में सुखदेव प्रसाद के यहां काम किया था. उनका ससुराल रातू रोड में है. उसके बाद वह वन अधिकारी के घर काम करने लगा था. उसने पुलिस को बताया था कि घटना के दो दिन पहले उसका भाई तपन कुमार पाल व बहनोई विनय पाल उससे मिलने आये थे, लेकिन हत्या में उनका कोई हाथ नहीं था. उसने पुलिस को बताया था कि अच्छा भोजन बनाने के बाद भी उसे हमेशा प्रताड़ित किया जाता था. इस वजह से वह मानसिक रूप से प्रताड़ित था. उसने बताया था कि उसके भगीना का पैर का ऑपरेशन कराने के लिए वन अधिकारी की पत्नी अमिता उर्फ रूबी देवी से दो हजार रुपये की मांग की थी, लेकिन नहीं मिला था. इस कारण भी वह परेशान था.

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