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चीन ने दक्षिण चीन सागर को लेकर अमेरिका के साथ ‘‘बड़े युद्ध”” की चेतावनी दी

बीजिंग : चीन की आधिकारिक मीडिया ने आज चेतावनी दी है कि यदि अमेरिका दक्षिण चीन सागर में बीजिंग द्वारा बनाये गये कृत्रिम द्वीपों तक पहुंचने से उसे रोकता है तो ‘‘बड़ा युद्ध” हो सकता है. एक दिन पहले ही अमेरिका में विदेश मंत्री पद के लिए नामित रेक्स टिलरसन ने कहा था कि वाशिंगटन […]

बीजिंग : चीन की आधिकारिक मीडिया ने आज चेतावनी दी है कि यदि अमेरिका दक्षिण चीन सागर में बीजिंग द्वारा बनाये गये कृत्रिम द्वीपों तक पहुंचने से उसे रोकता है तो ‘‘बड़ा युद्ध” हो सकता है. एक दिन पहले ही अमेरिका में विदेश मंत्री पद के लिए नामित रेक्स टिलरसन ने कहा था कि वाशिंगटन को चाहिए कि वह बीजिंग को द्वीपों तक पहुंचने से रोके.

सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने ‘‘क्या टिलरसन की धमकी सिर्फ सीनेट के लिए धोखा है?” शीर्षक के तहत लिखे गये अपने तीखे संपादकीय में कहा है कि उनकी टिप्पणियों का लक्ष्य ‘‘सीनेट सदस्यों का समर्थन जुटाना और जानबूझकर चीन की ओर कठोर रुख दिखाकर नियुक्ति की मंजूरी पाने की संभावनाएं बढ़ाना था.”

विदेश मंत्री के पद पर नियुक्ति की मंजूरी के लिए सुनवायी के दौरान रेक्स टिलरसन ने सीनेट से कहा था कि दक्षिण चीन सागर में चीन द्वारा द्वीपों का निर्माण ‘‘रूस का क्रीमिया पर नियंत्रण करने के समान है.” खबरों के अनुसार, उन्होंंने कहा था कि अमेरिका की नयी सरकार चीन को स्पष्ट संदेश भेजेगी कि ‘‘पहली बात द्वीपों का निर्माण बंद होगा और दूसरा उन द्वीपों तक आपकों पहुंचने की अनुमति नहीं होगी.”

संपादकीय में कहा गया है, ‘‘यह स्पष्ट नहीं है कि उन्होंंने जितने बिंदू उठाये हैं उनमें से किसे प्रमुखता देंगे. लेकिन उनकी टिप्पणियों पर ध्यान देना जरूरी है कि चीन को इन द्वीपों तक पहुंच नहीं दी जानी चाहिए, क्योंकि अमेरिका की ओर से अभी तक यह सबसे कट्टर प्रतिक्रिया है.”

एक अन्य सरकारी अखबार ‘चाइना डेली’ का कहना है, ‘‘यह सवाल अभी बना हुआ है कि क्या एक्सॉन मोबिल कार्प के पूर्व चेयरमैन और मुख्य कार्यकारी टिलरसन को विदेश मंत्री के रूप में सीनेट की मंजूरी मिलेगी.” उसने लिखा है, ‘‘यदि उनकी नियुक्ति होती है, तो यह देखने लायक होगा कि चीन के विरुद्ध उनके विचार किस हद तक अमेरिकी विदेशी नीतियों का रूप लेते हैं. आखिरकार, अमेरिकी सीनेट के विदेश मामलों की समिति के समक्ष बुधवार को नियुक्ति सुनवायी के दौरान हमने जो कुछ भी सुना वह मुख्य रूप से उनकी व्यक्तिगत नीतिगत झुकाव हैं.”

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