तैयारी एक लंबी साहसिक यात्रा की

अनुदीप फाउंडेशन के जरिये गरीबों को हुनर सिखाती हैं राधा रामास्वामी कैलिफोर्निया के अपने घर से हजारों मील दूर, तपती गरमी में, ऊर्जा और स्फूर्ति से भरपूर राधा रामास्वामी एक साथ कई काम करते नजर आती हैं. 2006 में अपने पति के साथ मिल कर उन्होंने नॉनप्रॉफिट संस्था अनुदीप फाउंडेशन की नींव रखी. इस फाउंडेशन […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 25, 2014 10:01 AM

अनुदीप फाउंडेशन के जरिये गरीबों को हुनर सिखाती हैं राधा रामास्वामी

कैलिफोर्निया के अपने घर से हजारों मील दूर, तपती गरमी में, ऊर्जा और स्फूर्ति से भरपूर राधा रामास्वामी एक साथ कई काम करते नजर आती हैं. 2006 में अपने पति के साथ मिल कर उन्होंने नॉनप्रॉफिट संस्था अनुदीप फाउंडेशन की नींव रखी. इस फाउंडेशन का लक्ष्य पश्चिम बंगाल के गरीब ग्रामीणों को काम और उद्यमिता का प्रशिक्षण उपलब्ध कराना है.

अनुदीप की स्थापना के पीछे हमारा मुख्य लक्ष्य था कि हम अपने कौशल का उपयोग सुदूर देहात के उन लोगों को प्रशिक्षित करने के लिए करें, जो अक्सर ही आजीविका की तलाश में बड़े शहरों में भटकते रहते हैं. 1973 में राधा ने लॉस एंजिलिस स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ सदर्न कैलिफोर्निया से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग और कंप्यूटर साइंस में स्नातकोत्तर किया.

पढ़ाई के बाद 1989 में उन्हें ह्यूलैट-पैकर्ड के इंटरनेशनल सॉफ्टवेयर ऑर्गेनाइजेशन की जनरल मैनेजर के तौर पर नियुक्त किया गया. जहां वे संसार के अलग-अलग भागों में स्थित आठ सॉफ्टवेयर केंद्रों का काम देख रही थीं. उससे पहले वह भारत में कंपनी के कार्यालय की स्थापना करके अपने काम और उद्यमिता के लिए वाहवाही लूट चुकी थीं.

स्थिति में बदलाव

राधा कहती हैं, जब मैं अमेरिका पहुंची तो मेरे पास खाना खाने पर खर्च करने के लिए भी पैसे नहीं होते थे. मैंने यूनिवर्सिटी के बुलेटिनों को देखना शुरू किया और पाया कि रोज ही किसी न किसी विभाग में कोई ऐसा कार्यक्र म हो रहा होता है, जिसमें खाना भी परोसा जाता है, तो मैंने ऐसे कार्यक्र मों की सूची बना ली- खाना तो मिला ही, मेरा परिचय भी बहुत से लोगों से हुआ और मेरी लोगों से संपर्क की क्षमता भी बहुत सुधरी.’ बाद में जब मैंने एक छात्र नेता के तौर पर अपना यह अनुभव छात्र समुदाय के बुलेटिन में लिखा, तो बहुत से छात्रों की निगाह में मेरा कद और ऊंचा हो गया. बस यहीं से हुई मेरी सफर की असली शुरुआत. काफी साहस दिखाते हुए मैंने अपनी सुविधा भरी, ऊंची तनख्वाह वाली नौकरी छोड़ कर अपनी खुद की कंपनी सपोर्ट सॉफ्ट शुरू की, जो ऑटोमेशन सॉफ्टवेयर तैयार करती है. अब यह कंपनी सपोर्ट.कॉम के नाम से जानी जाती है.

संस्था का विस्तार

भारत की सूचना प्रौद्योगिकी क्रांति के लाभ ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों तक पहुंचाने के उद्देश्य से अनुदीप स्थानीय स्त्री-पुरु षों को विकसित और सफल व्यवसायियों के तौर पर प्रशिक्षित करता है. उनके कुछ शुरु आती प्रशिक्षु आज वेब डिजाइनर बन चुके हैं और विदेशी ग्राहकों के लिए काम करते हैं. अनुदीप ने कड़ी जांच प्रक्रि या के बाद गैर-सरकारी संगठनों के साथ गठबंधन करके पश्चिम बंगाल में 22 केंद्र स्थापित किये हैं. राधा बताती हैं कि मैं साल के करीब चार महीने भारत में गुजारती हूं; अब अनुदीप का काम बढ़ रहा है और अगले कुछ बरसों में मैं साल में छह महीने यहां बिताऊंगी. इसके अलावा राधा अमेरिका में घरेलू हिंसा की शिकार दक्षिण एशियाई स्त्रियों की मदद करनेवाली संस्था मैत्री की सहसंस्थापक भी हैं. वह गैर-सरकारी संगठनों इंटरप्लास्ट और सीइओ वुमेन के बोर्डो की सदस्य हैं. फिलहाल राधा का सपना अनुदीप मॉडल को अधिक बड़े क्षेत्र में विस्तार देना है.

कुछ अलग करने की चाह

फिर एक दिन मुझे लगा कि उन गरीब, परेशानहाल लोगों के लिए भी कुछ किया जाना जरूरी है, जिन्हें अक्सर कुछ भी नहीं मिल पाता. भारत यात्रा के दौरान मुझे भारवाहक शेरपाओं को करीब से देखने-समझने का मौका मिला. ये लोग बहुत धैर्यवान होते हैं! तमाम परेशानियों के बीच भी उनके चेहरे पर मुस्कुराहट रहती है और वह सदा दूसरों की मदद को तैयार रहते हैं. इन्हें देखकर मुझे लगा कि मैं अपनी सुविधाजनक नौकरी से आगे भी जाकर कुछ कर सकती हूं. पश्चिम बंगाल के ग्रामीण क्षेत्रों के लोग सबसे ज्यादा बेरोजगारी के कारण परेशान हैं. हमने एक सर्वेक्षण किया और पाया कि उन्हें सबसे ज्यादा चाहत काम और अपने पैरों पर खड़े होने की थी. बस फिर क्या था अपने लक्ष्य की ओर मैं निकल पड़ी.

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