नोटबंदी से बंद तो नहीं होगी ‘बीजेपी की दुकान’
Issaac Mumena BBC Africa, Kampala उत्तर प्रदेश में जहां नई सरकार के गठन के लिए सात चरणों में चुनाव हो रहे हैं. लेकिन क्या हाल में हुई नोटबंदी वहाँ वोटरों के लिए चुनावी मुद्दा है? पिछले साल नवंबर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ये एलान कर देश को चौंका दिया कि 500 और 1,000 रूपये […]
उत्तर प्रदेश में जहां नई सरकार के गठन के लिए सात चरणों में चुनाव हो रहे हैं. लेकिन क्या हाल में हुई नोटबंदी वहाँ वोटरों के लिए चुनावी मुद्दा है?
पिछले साल नवंबर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ये एलान कर देश को चौंका दिया कि 500 और 1,000 रूपये के नोट कूड़े के बराबर हैं.
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उनके इस आग्रह के बावजूद कि नोटबंदी कालेधन और चरमपंथियों पर नकेल कसने के लिए किया गया था, कई विश्लेषकों ने कहा कि ये राजनीति से प्रेरित था ना कि अर्थव्यवस्था से और ये उत्तर प्रदेश चुनावों को ध्यान में रखकर किया गया है.
नोटबंदी का पूरा हिसाब क्यों नहीं देते मोदी
1990 के दशक के आख़िर में क्षेत्रीय समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के उदय के बाद से भारत की राष्ट्रीय पार्टियां – कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) आमतौर पर राज्य में तीसरे और चौथे स्थान पर सिमट गईं हैं.
इस बार कांग्रेस सत्ताधारी सपा के साथ एक कनिष्ठ सहयोगी के रूप में गठबंधन में शामिल हुई है और भाजपा राज्य में फिर से जीतने के लिए जी जान से कोशिश कर रही है.
पिछले कुछ दिनों में मैंने राज्य के कई ज़िलों की यात्रा लोगों से ये पूछने के लिए की कि क्या नोटबंदी एक चुनावी मुद्दा है?
उत्तर प्रदेश क्यों अहम है?
- यूपी देश का सबसे ज़्यादा आबादी वाला राज्य है जहां 21.7 करोड़ से ज़्यादा लोग रहते हैं. अगर ये एक अलग देश होता तो दुनिया में चीन, भारत, अमरीका और इंडोनेशिया के बाद पांचवा सबसे बड़ा देश होता.
- यहां से भारत की संसद में सबसे ज़्यादा 80 सांसद भेजे जाते हैं.
- उत्तर प्रदेश ने भारत को कई प्रधानमंत्री दिए.
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 के आम चुनाव में अपनी संसदीय पारी की शुरूआत के लिए इसी राज्य के वाराणसी शहर को चुना.
मैंने किसानों, व्यापारियों और कारीगरों, उद्यमियों और कारोबारियों, सड़क किनारे खोमचे वालों, गृहणियों और विद्यार्थियों और विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के नेताओं से मुलाकात की.
नोटबंदी से पहले से ज्यादा टैक्स वसूली
बेशक़ नोटबंदी का असर बड़े शहरों, छोटे शहरों और छोटे गांवों में हर किसी की ज़िंदगी पर पड़ा है. हर कोई ख़ुद की झेली गई समस्याओं के बारे में बात करता है.
लेकिन क्या इससे लोगों के मतदान के तरीक़े पर फ़र्क़ पड़ेगा?
खजांची नाथ बढ़ाएगा अखिलेश का वोट बैंक
लखनऊ के नज़दीक बारांबकी के मुख्य बाज़ार में व्यापारी वर्ग "भाजपा के विश्वासघात" में उबल रहा है.
व्यापारियों ने परंपरागत रूप से भाजपा का समर्थन किया है, बीते समय में उन्होंने पार्टी फंड में दिल खोलकर चंदा दिया है, लेकिन इस बार हालात अलग हैं.
संतोष कुमार गुप्ता अपने भाइयों के साथ मिलकर हार्डवेयर की पुश्तैनी दुकान चलाते हैं. वे कहते हैं, "यहां नोटबंदी सबसे बड़ा मुद्दा है. लोगों को वाकई परेशानी हुई है. सरकार ने निकासी की सीमा तय कर दी थी और वो ज़रा सी रकम भी नहीं मिल पा रही थी क्योंकि बैंकों में पैसे नहीं थे."
गुप्ता कहते हैं कि अपने प्रसारण में प्रधानमंत्री ने कहा कि सरकार छह महीनों से इसके लिए योजना बना रही थी और लोगों को मामूली समस्याओं का सामना करना होगा.
वो गुस्से में पूछते हैं, "लेकिन बहुत सारी समस्याएं थीं. उन्हें झूठ बोलने पर शर्म नहीं आती है?"
वो कहते हैं, "अपने मेहनत की कमाई को वापस लेने के लिए कतार में इंतज़ार कर रहे लोगों की पुलिस ने डंडे से पिटाई की. बाराबंकी में सभी छोटी निर्माण इकाइयां हफ़्तों बंद रही. हज़ारों लोग बेरोज़गार हो गए."
गुप्ता ने बताया, "हमारी दुकान से कुछ ही मीटर की दूरी पर एक मज़दूरों की मंडी है. हर सुबह आसपास के गांवों से क़रीब 500 दिहाड़ी मज़दूर काम की तलाश में यहां इकट्ठा होते हैं, लेकिन पहली बार हमने देखा कि उनके लिए कोई काम नहीं था."
उनके भाई मनोज कुमार जायसवाल का कहना है, "व्यापारी मोदी से बहुत नाराज़ हैं. पहले उन्होंने कहा कि ये कालेधन पर नकेल कसने के लिए किया गया है. उसके बाद उन्होंने कहा कि ये डिजिटल अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित करने के लिए किया गया.”
आप क्रेडिट कार्ड और पेटीएम का इस्तेमाल दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों में कर सकते हैं, बाराबंकी में नहीं. यहां लोग अनपढ़ हैं, बहुत से लोगों के पास बैंक अकाउंट या क्रेडिट कार्ड नहीं है."
गुप्ता परिवार में 10 वोटर हैं और उनमें से एक भी वोट बीजेपी को नहीं जाएगा.
लखनऊ के बाहरी इलाक़े गोसाईंगंज में मैं एक चाय की दुकान में जमा लोगों से बात करने के लिए रूक गई.
यहां, पैसों की कमी की वजह से टल गई शादियों, ज़्यादा ब्याज दरों पर उधार देने वाले सूदखोरों, नौकरियों के नुक़सान और परिवार का पेट भरने में हो रही परेशानियों के बारे में बात हो रही थी.
राजा राम रावत 60 साल के हैं. उनकी पत्नी का निधन हो चुका है. वे अपने दो बेटों और चार पोते-पोतियों के साथ रहते हैं. उनके पास छोटी से ज़मीन है, जो पूरे परिवार को पालने के लिए काफ़ी नहीं है. परिवार की आय बढ़ाने के लिए उनके बेटे दिहाड़ी मज़दूरी करते हैं.
वो बताते हैं, "आठ नबंवर के बाद से उन्हें एक दिन भी काम नहीं मिला." मैंने उनसे पूछा कि फिर वे कैसे काम चला रहे हैं? वे कहते हैं, "पहले हम दो किलो सब्ज़ियां ख़रीदते थे, अब हम सिर्फ़ एक किलो लेते हैं. इस तरह हम काम चला रहे हैं."
चाय पीनेवालों में मौजूद एक किसान कल्लू प्रसाद ने अपने समुदाय के लोगों के लिए नोटबंदी की तुलना "जहर" से की. वे कहते हैं कि नोटबंदी ऐसे समय में हुई जब धान की फसल काटी गई थी. गेहूं, सरसों और आलू के बुआई का सीजन शुरू हुआ था.
वो कहते हैं, "आमतौर पर हम एक किलो धान 14 रूपए में बेचते हैं, लेकिन इस बार हमें इसे 8 से 9 रूपये में बेचना पड़ा. हम समय पर बीज और कीटनाशक नहीं ख़रीद सके. जिन किसानों ने सब्जियां उगाईं थीं वे बुरी तरह प्रभावित हुए. चूंकि लोगों के पास सब्ज़ी ख़रीदने के लिए पैसे नहीं थे, इसलिए उन्हें आख़िरकार इसे फेंकना पड़ा."
धार्मिक शहर वाराणसी के लल्लनपुरा इलाक़े की संकरी गलियों में घूमते हुए, जहां घर एक दूसरे से एकदम सटे हुए हैं. वहां कोई करघे के शोर से नहीं बच सकता.
यहां हर घर एक छोटा सा कारख़ाना है, जहां बुनकर आधी-अधूरे रोशन कमरों में काम करते हैं. वो रंग-बिरंगे रेशमी धागों से सुंदर डिज़ाइन बनाते हैं.
वाराणसी हाथ से बने हुए रेशमी और सूती कपड़ों के लिए मशहूर है. क़रीब 10 लाख लोगों का घर इसी कुटीर उद्योग से चलता है.
फैक्टरी मालिक सरदार मोहम्मद हासिम मोदी की घोषणा के लम्हे को याद कर कहते हैं कि जैसे उन पर बिजली गिर गई हो.
हासिम 30 हज़ार बुनकरों का प्रतिनिधित्व करते हैं. वो कहते हैं कि शुरूआत में 90 फ़ीसदी कारोबार प्रभावित हुआ क्योंकि सारा लेनदेन नकद होता है.
उन्होंने बताया, "हमारे पास कच्चा माल ख़रीदने के लिए नकद पैसे नहीं थे, मज़दूरों की दिहाड़ी के भुगतान के लिए कोई नकद था. लगभग तीन महीनों बाद अभी भी मेरे सभी 24 करघे बंद पड़े हैं. मेरे यहां काम करने वाले ज़्यादातर बुनकर अपना घर चलाने के लिए दूसरे काम कर रहे हैं."
वाराणसी में आठ विधानसभा क्षेत्र हैं. हासिम का मानना है कि भाजपा एक भी नहीं जीत पाएगी. वे सवाल करते हैं, "अब मोदी को कोई क्यों वोट देगा?."
राजन बहल एक व्यापारी हैं. वो व्यापारियों, बुनकरों और विक्रेताओं का प्रतिनिधित्व करने वाले संगठन के नेता हैं. वो नोटबंदी को एक "बड़ी आपदा" बताते हैं.
इस उद्योग का सालाना कारोबार 70 अरब रुपए होने का अनुमान है और नुक़सान क़रीब 10 अरब रुपए होने का अनुमान है.
लंबे समय से बीजेपी समर्थक रहे बहल यह तो नहीं बताते हैं कि इस बार चुनाव कौन जीतेगा. लेकिन ये भविष्यवाणी करते हैं कि मोदी "राज्य में सरकार बनाने लायक पर्याप्त सीटें नहीं जीत पाएंगे."
इस अनुमान को राज्य में बीजेपी के वरिष्ठ नेता विजय पाठक चुनौती देते हैं और पार्टी की 101 फ़ीसदी जीत की ताल ठोंकते हैं.
वे मानते हैं पुराने नोटों पर प्रतिबंध लगाने के कार्यान्वयन में दिक्कतें हुईं हैं. लेकिन वे ज़ोर देकर कहते हैं कि वे मतदाताओं को समझाने में सफल रहे हैं कि यह देश के हित में किया गया था.
पाठक कहते हैं, "हमने 403 सीटों में से 265+ जीतने के साथ अपना अभियान शुरू किया था. अब हमें यक़ीन है कि हम 300 सीटें का आंकड़ा पार कर जाएंगे."
वो कहते हैं कि ये इसलिए होगा क्योंकि लोगों को उस व्यक्ति पर यक़ीन है जो फ़ैसले ले रहा है यानी प्रधानमंत्री.
इस बारे में वे सही हैं – मोदी की व्यक्तिगत प्रतिष्ठा बनी हुई है, ख़ासकर युवाओं में.
अमेठी ज़िले की तिलोई विधानसभा क्षेत्र के कुखा रामपुर गांव की निवासी 21 साल की तनु मौर्य कहती हैं कि वे मोदी के लिए वोट करेंगी क्योंकि वो अच्छा काम कर रहे हैं और नोटबंदी एक अच्छा निर्णय था भले ही इससे थोड़े समय के लिए परेशानियां हुईं हों."
पड़ोस के भुलैया पूर्वा गांव की नई नवेली दुल्हन 19 साल की प्रमिला चौरसिया और उनके परिवार के ज़्यादातर लोग और गांव वाले भी यही करेंगे.
2014 के आम चुनाव में भारी जीत के बाद राज्यों में मोदी की क़िस्मत कुछ ख़ास नहीं रही है. वे हारने वाली उस छवि को बदलना चाहते हैं.
राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश में जीत मोदी और उनकी पार्टी के लिए एक बड़ी छलांग होगी. लेकिन क्या नोटबंदी से इसमें मदद मिलेगी या वे म़ौका गंवा देंगे?
11 मार्च को जब वोटों की गिनती की जाएगी, तब हमें पता चलेगा कि क्या यह एक मास्टरस्ट्रोक था या एक ग़लत अनुमान.
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