आजमगढ़: क्यों खामोश है राहुल व कैफी आजमी का शहर
!!अंजनी कुमार सिंह!! आजमगढ़ : तमसा नदी के तट पर स्थित आजमगढ़ साहित्य, कला, संस्कृति और गंगा-जमुनी तहजीब के लिए विख्यात रहा है. इस शहर की पहचान राहुल सांकृत्यायन, कैफी आजमी, ऋषि दुर्वासा, दत्तात्रेय, ऋषि चंद्रमा, हरिऔध, शिवली नोमानी जैसे महापुरुषों के नाम से होती है. अंबिकापुरी, जहां राजा जनमेजय ने यज्ञ किया था, वह […]
!!अंजनी कुमार सिंह!!
आजमगढ़ : तमसा नदी के तट पर स्थित आजमगढ़ साहित्य, कला, संस्कृति और गंगा-जमुनी तहजीब के लिए विख्यात रहा है. इस शहर की पहचान राहुल सांकृत्यायन, कैफी आजमी, ऋषि दुर्वासा, दत्तात्रेय, ऋषि चंद्रमा, हरिऔध, शिवली नोमानी जैसे महापुरुषों के नाम से होती है. अंबिकापुरी, जहां राजा जनमेजय ने यज्ञ किया था, वह भी इसी शहर में है. लेकिन, अब आजमगढ़ की पहचान दूसरे रूप में भी होने लगी है. सिमी और माफिया सरगनाओं के कारण भी आजमगढ़ का नाम कुख्यात हुआ है. लेकिन, इसके लिए पूरे शहर को बदनाम करना कहां से उचित है? मदरसा-तुल-इस्लाह के डॉ जुबैर अहमद सिद्दिकी कहते हैं, आजमगढ़ को किसी की नजर लग गयी है. इस कारण से भी आजमगढ़ खामोश है. आजमगढ़ के नकारात्मक पक्ष को बढा-चढ़ा कर पेश किया जाता है, जबकि सकारात्मक पक्ष पर चुप्पी साध ली जाती है. यहां चौक-चौराहों पर लोग बिहार की तरह चौकड़ी लगा कर चुनावी चरचा में मशगूल नहीं दिखते.इसकी वजह भी है. खेती का सीजन है. किस पार्टी का जनाधार अच्छा और कौन चुनाव जीत रहा है, इस पर नेता या कार्यकर्ता छोड़ कर आम आदमी खुल कर बोलने से परहेज करता है.
आजमगढ़ से लगभग 40 किमी दूर पवई विधानसभा के खोरासांन रेलवे स्टेशन चौक पर चाय की दुकान पर बैठे अब्दुल बताते हैं कि बसपा के अबुल कैस का पलड़ा भारी है, जबकि दुबइट्ठा के प्रदीप राय बताते हैं कि एसपी के श्याम बहादुर यादव के मुकाबले रमाकांत यादव के पुत्र का चांस ज्यादा दिख रहा है. इसका एक कारण यह भी है कि पिछले विधानसभा चुनाव में भी सपा प्रत्याशी मामूली अंतर से चुनाव जीत पाये थे. वहां से सटे मेंजवा, जो कैफी आजमी का घर है, वहां किसी दल को लेकर कोई भी एक राय देने को तैयार नहीं है. लेकिन, लोगों का साफ तौर पर मानना है कि कैफी साहब के कारण इस गांव का ही नहीं, बल्कि इस पूरे क्षेत्र का विकास हुआ है.
गली चौराहों पर चुनाव का शोर भले ही कम सुनाई दे, पर यह भी एक सच्चाई है कि जाति या धर्म के बीच मतदाता सिमटते दिख रहे हैं. मतदाताओं के बीच ध्रुवीकरण कराने की फिराक में भी दल लगे हैं, लेकिन वैसा बाहर दिख नहीं रहा है. कुछ लोग इसे अंडरकरेंट बता रहे हैं, जो बाहर दिख नहीं रहा है, लेकिन यह कहना अभी जल्दबाजी होगी.
आजमगढ़ जिले के 10 विधानसभा सीटों में से नौ पर सपा का कब्जा है. एक सीट बसपा की झोली में है. भाजपा अपने लिए सीट झटकने की जुगत में लगी है. भाजपा के नेता व कार्यकर्ता आश्वस्त है कि उन्हें सीट मिलेगी. इसका कारण भी है. लोग समाजवादी पार्टी के बनिस्पत उनके उम्मीदवार से ज्यादा दुखी हैं. सरकार विराधी लहर भी बता रहे हैं. निजामाबाद क्षेत्र के वर्तमान विधायक आलमबदी से क्षेत्र के मतदाता नाराज दिख रहे हैं. बीनापारा के अब्दुल रहमान बताते हैं कि सपा इसकी जगह पर किसी को भी टिकट दे दी होती, तो वह जीत जाता. लेकिन, आलमबदी की जीत में संदेह है. पूरे पांच साल में आज तक किसी ने उन्हें क्षेत्र में नहीं देखा है. वे बसपा प्रत्याशी चंद्रदेव राम यादव करैली के जीत का दावा करते हैं, जबकि बीनापारा के ही बदरे आलम इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते. वह सपा सरकार के काम की तारीफ करते हैं. लालगंज क्षेत्र में भी सपा से ज्यादा वर्तमान विधायक बेचई सरोज से जनता नाराज दिख रही है.
पेशे से शिक्षक गिरिश चंद्र बताते हैं कि सरकार से ज्यादा विधायक से लोग नाराज हैं. यदि दूसरा प्रत्याशी होता, तो जीत 100 प्रतिशत पक्की मानी जाती. लेकिन, भाजपा का चांस दिख रहा है. आजमगढ़ सदर से दुर्गा प्रसाद यादव 20 वर्षों से विधायक हैं. इस बार भी उनकी संभावना अन्य प्रत्याशियों के मुकाबले ज्यादा बतायी जा रही है. अखिलेश मिश्र भाजपा से और मुन्ना सिंह बसपा से अपनी किस्मत आजमा रहे हैं. रेलवे स्टेशन से लेकर रोडवेज तक दुकानदारों का रूझान बंटा हुआ है, इससे साफ दिखता है कि दलों के बीच मुकाबला कड़ा है. जीत- हार जिसकी भी हो, लेकिन मार्जिन बहुत ही कम रहेगा.
खुरासन रोड, मेंजवा, फुलपुर, निजामाबाद, दुबइट्ठा, परसादी पट्टी, निआउज, बीनापारे, सरायमीर, सरायरानी, आजमगढ़ के इलाकों में जाने के बाद मुकाबला त्रिकोणीय दिख रहा है. सरकार में इस जिले की भागीदारी होने के बाद भी जिले में गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी है. कल-कारखाने नहीं हैं. फिर भी यह चुनावी मुद्दा नहीं है. अपने आपमें महत्वपूर्ण होने के बाद भी यह शहर उपेक्षा का शिकार रहा है. इसका बड़ा कारण जाति और धर्म को लेकर आपसी बंटवारा है.
मुसलिम, यादव व दलित फैक्टर अहम
आजमगढ़ जिले में 32 लाख वोटर हैं. इसमें 18 प्रतिशत मुसलिम, 22 फीसदी यादव, 22 फीसदी दलित, 24 प्रतिशत ओबीसी तथा 8 प्रतिशत के लगभग सवर्ण है. सपा की पूरी कोशिश है कि 2007 के जीत को दोहराया जाये, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और दिख रही है. केंद्र और राज्य सरकार के कामों की चरचा हो रही है, लेकिन काम के आधार पर और विकास की बुनियाद पर प्रत्याशियों को वोट मिले, ऐसा दिख नहीं रहा है. मोदी मैजिक से लेकर काम बोलता है कि चर्चा जरूर है लेकिन मतदाताओं के नब्ज को टटोल कर किसी निष्कर्ष पर पहुंचना जल्दबाजी होगी.