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#Bihar Budget/महागठबंधन सरकार का दूसरा बजट : 51 प्रतिशत विकास के नाम

बिहार में नीतीश सरकार ने वर्ष 2017-18 के अपने बजट में आधारभूत संरचना, ग्रामीण और सामाजिक विकास पर फोकस किया है. 1.60 लाख करोड़ के इस बजट की आधी से अधिक राशि विकास के लिए समर्पित की गयी है. खास बात यह है कि राज्य सरकार ने शराबबंदी और केंद्रीय फंड आवंटन के पैटर्न में […]

बिहार में नीतीश सरकार ने वर्ष 2017-18 के अपने बजट में आधारभूत संरचना, ग्रामीण और सामाजिक विकास पर फोकस किया है. 1.60 लाख करोड़ के इस बजट की आधी से अधिक राशि विकास के लिए समर्पित की गयी है. खास बात यह है कि राज्य सरकार ने शराबबंदी और केंद्रीय फंड आवंटन के पैटर्न में बदलाव के बावजूद न केवल विकास की रफ्तार को बनाये रखा, बल्कि राजकोषीय घाटे को भी 3प्रतिशत से कम रखा है.

पटना :
वित्त मंत्री अब्दुल बारी सिद्दीकी ने सोमवार को बिहार विधानमंडल के दोनों सदनों में वर्ष 2017-18 के लिए एक लाख 60 हजार 85 करोड़ का बजट पेश किया. यह बजट आकार वर्ष 2016-17 के एक लाख 44 हजार करोड़ के बजट से करीब 10प्रतिशत बड़ा है. महागंठबंधन सरकार के दूसरे बजट में 51प्रतिशत से अधिक राशि विकास को समर्पित की गयी है. इसमें सात निश्चय समेत अन्य सभी विकास योजनाओं को पूरा करने का संकल्प साफ तौर पर दिखता है. बजट में न तो किसी तरह का कोई नया टैक्स लगाया गया है और न ही कोई बड़ी घोषणा की गयी है.
इसमें योजनाओं के लिए पूंजीगत व्यय के रूप में 80 हजार 891 करोड़ और स्थापना व प्रतिबद्ध व्यय के रूप में 78 हजार 818 करोड़ रुपये निर्धारित किये गये हैं. चूंकि इस बजट से योजना और गैर योजना मद के अंतर को समाप्त कर दिया गया है, इसलिए अब योजना आकार को पूंजीगत व्यय और गैर योजना आकार को स्थापना और प्रतिबद्ध व्यय के रूप में देखा जायेगा. पूंजीगत व्यय को प्रतिबद्ध व्यय से बड़ा रखा गया है, जिससे कि विकास योजनाओं के लिए ज्यादा-से-ज्यादा रुपये एकत्र किये जा सके.

प्रस्तावित बजट में तीन बातों को मुख्य रूप से फोकस किया गया है- बेहतर वित्तीय प्रबंधन, विकास योजनाओं पर विशेष खर्च और राजकोषीय घाटा को नियंत्रण रखना. शिक्षा पर सबसे ज्यादा खर्च करने का प्रावधान है. इसके बाद ग्रामीण विकास, ग्रामीण कार्य, ऊर्जा, समाज कल्याण समेत 10 विभागों की योजनाओं पर बजट की करीब 78प्रतिशत राशि खर्च की जायेगी. शेष 30 विभागों की योजनाओं के लिए करीब 22प्रतिशत रुपये खर्च किये जायेंगे.

चुनिंदा सभी विभागों में खासतौर से जन कल्याणकारी योजनाओं के क्रियान्वयन का विशेष प्रावधान किया गया है. वित्तीय वर्ष 2017-18 के दौरान राजकोषीय घाटा 18 हजार 112 करोड़ रुपये होने का अनुमान रखा गया है, जो राज्य के सकल घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) छह लाख 32 हजार 180 करोड़ का 2.87प्रतिशत है. इस बार भी पिछले बजट की तरह ही 14 हजार 555 करोड़ के रेवेन्यू सरप्लस (राजस्व बचत) का बजट पेश किया गया है. यह जीएसडीपी का 2.30प्रतिशत है. वित्त मंत्री अब्दुल बारी सिद्दीकी ने कहा कि रिटेल, उत्पादन संबंधित अन्य सेक्टर में बूम आने के कारण राज्य को टैक्स के रूप में अतिरिक्त राजस्व प्राप्त होने की प्रबल संभावना है. इसका सीधा फायदा राजस्व कलेक्शन पर पड़ेगा.
केंद्र की प्रतिकूल नीतियों, विशेष दर्जा नहीं देने, फंड शेयरिंग पैटर्न बदल देने और नोटबंदी के झंझावात के बावजूद हमारे अजम और हौसले का दीया जलता रहा है और जलता रहेगा. हम चांद और सूरज की बात नहीं करते हैं, दीये की बात करते हैं, यह आम आदमी के जुझारूपन का प्रतीक है. अब्दुल बारी सिद्दीकी, वित्त मंत्री, बिहार सरकार
योजनाओं में सबसे ज्यादा इन 10 विभागों पर खर्च
विभाग प्रतिशत
शिक्षा 17.58
ग्रामीण विकास 12.02
ग्रामीण कार्य 10.53
ऊर्जा 8.40
समाज कल्याण 7.35
सड़क निर्माण 7.05
स्वास्थ्य 4.41
जल संसाधन 3.50
आवास 3.38
पंचायती राज 3.20
अन्य विभाग22.57
कुल 100
बजट में राज्य सरकार के सात निश्चय, विकास, गरीबी उन्मूलन व स्थायित्व पर विशेष ध्यान दिया गया है. साथ ही अनुसूचित जाति, अनुसूचित जन–जाति, अन्य पिछड़ा वर्ग अल्पसंख्यकों के विकास पर भी विशेष ध्यान दिया गया है. शिक्षा विभाग के बजट में 25,251.39 करोड़ का आवंटन स्वागतयोग्य है. अशोक चौधरी, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष व शिक्षा मंत्री
बिहार सरकार का इस वर्ष का बजट प्रतिक्रिया देने लायक भी नहीं है. पूरा बजट भाषण 15 मिनट में पूरा हो गया. बजट में न विजन है, न ही नयी योजना और न कोई नीति. इस बजट में विकास दर का भी जिक्र नहीं है. वह इस कारण कि प्रदेश की विकास दर सात प्रतिशत पर आ गयी है, जो औसतन 10प्रतिशत सालाना हुआ करती थी. सुशील माेदी, विपक्ष के नेता व पूर्व वित्त मंत्री
7 साल : तीन गुना बजट आकार
वर्ष बजट आकार
2010-11 51,000 करोड़
2011-12 60,000 करोड़
2012-13 70,000 करोड़
2013-14 92,000 करोड़
2014-15 1,16,000 करोड़
2015-16 1,20,000 करोड़
2016-17 1,44,000 करोड़
2017-18 1,60,000 करोड़
तीन सेक्टरों में पिछले बार से ज्यादा खर्च
प्रक्षेत्र 2016-17 2017-18
सामाजिक 36.54% 37.34%
आर्थिक 31.07% 33.69%
सामान्य 25.77% 28.09%

2017 के बजट की बड़ी बातें
– बजट में न कोई बड़ी घोषणा और न ही कोई नया टैक्स लगाने का प्रस्ताव
– इस बार के बजट में योजना और गैर-योजना का अंतर समाप्त

तीन मुख्य बातों पर फोकस
1. बेहतर वित्ती य प्रबंधन
2. विकास पर सबसे ज्यादा खर्च
3. राजकोषीय घाटे को कम करना

सात निश्चय और मौजूदा सभी योजनाओं को पूरा करने पर खास तौर से फोकस
बजट 2017-18
15,389 करोड़ रुपये ज्या दा का बजट आकार, वर्ष 2016-17 (1.44 लाख करोड़) की तुलना में करीब 10 फीसदी
की बढ़ोतरी

80,891 करोड़ रुपये राज्य में योजनाओं पर पूंजीगत व्यय के रूप में और स्थापना व प्रतिबद्ध व्यय के रूप में 78,818 करोड़ रुपये खर्च का अनुमान

लक्ष्य और अनुमान
राजकोषीय घाटा : 18,112 करोड़ रुपये होने का अनुमान रखा गया है, जो जीएसडीपी का 2.87% है
राजस्व अधिशेष : 14,555 करोड़, जो जीएसडीपी का 2.30%
केंद्र प्रायोजित योजनाएं : इस बार दो हजार 813 करोड़ रुपये ज्यादा अनुदान और सहायता मिलने का अनुमान

राज्य का कर राजस्व : राज्य के अपने कर राजस्व का लक्ष्य इस बार 2270 करोड़ ज्यादा, वहीं गैर कर राजस्व में 516 करोड़ वृिद्ध का अनुमान
केंद्रीय टैक्स में हिस्सा : राज्य को इस बार करीब सात हजार करोड़ ज्यादा शेयर मिलने का अनुमान
पूंजीगत व्यय : अनुमान 37482 करोड़ है, जो 2016-17 से 2727 करोड़ अधिक है.

उम्मीदों को हकीकत में बदलने वाला बजट : अर्थशास्त्री शैवाल गुप्ता
यह बजट काफी यथार्थवादी है. जब हम यथार्थ की बात करते हैं, तो इसका मतलब आंतरिक संसाधनों, केंद्रीय सहायता, हिस्सेदारी और अनुदान की हिस्सेदारी से होता है. एक तरफ शराबबंदी के बाद राजस्व नुकसान की भरपाई करनी थी, तो दूसरी ओर केंद्रीय सहायता में फंड शेयरिंग का पैटर्न बदल देने के बावजूद विकास की रफ्तार को बनाये रखने की चुनौती थी. इस तथ्य के आईने में हम पाते हैं कि 12 साल पहले बिहार का कुल बजट जहां 30 हजार करोड़ का हुआ करता था, अब वह छलांग लगाते हुए एक लाख 60 हजार करोड़ से अधिक पर पहुंच गया है.
यह अर्थव्यवस्था के प्रबंधन का संकेत है और सकारात्मक है. अच्छी बात यह है कि सरकार ने आधारभूत संरचना, ग्रामीण विकास बिजली जैसे सेक्टर से खुद को ओझल नहीं होने दिया है. बजट प्रावधानों से जाहिर है कि ये क्षेत्र उसकी प्राथमिकता में हैं. शिक्षा से जुड़ी योजनाओं के लिए वर्ष 2017-18 में 14,217 करोड़ खर्च का प्रस्ताव है. मुझे लगता है कि इस खर्च को तर्कसंगत बनाया गया है. वैसे, शिक्षा विभाग पर कुल 25,251 करोड़ खर्च होंगे.
सरकार ने कुल बजट का 70.63% विकास संबंधी कार्यों पर और 29.37% गैर विकास वाले काम पर खर्च करने का प्रस्ताव दिया है. इसमें देखा जाये, तो विकास से जुड़े काम पर सबसे अधिक पैसे खर्च होंगे. ग्रामीण विकास पर 9725 करोड़, ग्रामीण कार्य पर 8516 करोड़ और बिजली पर 6795 करोड़ अगले वित्तीय वर्ष में इन विभागों की योजनाओं पर खर्च होंगे. इसी तरह हम पाते हैं कि परिसंपत्तियों के सृजन और उसे मजबूत करने पर 32195 करोड़ रुपये खर्च किये जायेंगे. इस मद में वर्ष 2016-17 के दौरान 30,107 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है.
दक्षिण भारत के केरल-कर्नाटक जैसे राज्यों के बाद हम पाते हैं कि बिहार में सोशल सेक्टर पर खर्च क्रमिक रूप से बढ़ा है. इसका मतलब हुआ कि राज्य सरकार बड़ी आबादी तक अपनी योजनाओं को ले जाना चाहती है, ताकि उनका समग्र विकास हो. ग्रामीण और शहरी इलाकों की इस आबादी तक इन योजनाओं की पहुंच होने से समावेशी विकास का फलक और मजबूत होगा. सरकार ने सड़क संपर्क पर अपना तवज्जो बनाये रखा है. अगले वित्तीय वर्ष में इस पर 16,153 करोड़ रुपये खर्च का अनुमान है. इसमें सड़कों के रख-रखाव व मरम्मत पर 1475 करोड़ रुपये खर्च होंगे. आप जानते हैं कि किसी भी राज्य की आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाने में सड़कों की बड़ी भूमिका होती है. इससे आंतरिक अर्थव्यवस्था को गति मिलती है.
हमें यह जानना चाहिए कि सरकार जो उधार लेती है, उसकी अदायगी के ब्याज का प्रतिशत कितना रहा? इसी तरह सरकार पर जो देनदारियां हैं, वह सकल घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) का कितना प्रतिशत है?
बजट संबंधी दस्तावेजों के मुताबिक कर्ज पर ब्याज भुगतान 7.38% रहा, जो 14वें वित्त आयोग की सिफारिशों के आलोक में 10% से कम है. इसी तरह 14वें वित्त आयोग ने अनुशंसा की है कि लोक ऋण व दूसरी जवाबदेही जीएसडीपी का 25% से ज्यादा नहीं होनी चाहिए. वर्ष 2015-16 में यह 23.92% रहा. अगले वित्तीय वर्ष के दौरान राजकोषीय घाटा के 2.87% रहने का अनुमान है, जो तीन फीसदी की सीमा के भीतर है. यह इस बात का संकेत है कि वित्तीय प्रबंधन को ठोस आधार मिला है.

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