वाराणसी : काशी में अस्सी घाट की जिन सीढि़यों पर खाली कटोरा लेकर बच्चे-महिलाएं दानदाताओं की राह देखते थे, वहां अब उनकी दुकानें सज गयी हैं. हाथ फैलाने की उनकी इस आदत में परिवर्तन लाने का श्रेय अर्जेंटीना की दो बहनों साइकी और जैसिमी को जाता है. साल भर पहले वाराणसी घूमने आयीं दोनों विदेशी बहनों ने भीख मांगने की अपमानजनक जिंदगी से उन्हें निकाल कर कढ़ाई, पेंटिंग और डिजाइनर बैग बनाना सिखा कर उन्हें आत्मनिर्भर बना दिया है.
* आकर्षण का केंद्र
ये दुकानें देश-विदेश से वहां आनेवाले हर पर्यटक के लिए आकर्षण का केंद्र बनी हुई हैं. एक तरफ जहां परिवार के सदस्य अपने हाथों से बनी पेंटिंग और मोती की माला, डिजाइनर बैग की दुकानें लगाते हैं, वहीं उनके बच्चे पढ़ाई की ओर रु ख करने लगे हैं. इनके बच्चों को पढ़ाने-लिखाने का भी बीड़ा इन बहनों ने ही उठाया है.
* बदली सभी की जिंदगी
खानाबदोशों का यह करीब तीन सौ लोगों का कुनबा पड़ोसी जिला सोनभद्र के रॉबर्ट्सगंज ब्लॉक स्थित बैरिहवा टोला का रहनेवाला है और पिछले छह साल से घाट पर भीख मांग कर गुजारा कर रहा था. कागजों पर घाट और गंगा की पेंटिंग उकेर कर कमाई करन वाले इस कुनबे की एक महिला नगीना का कहना है कि पहले उन्हें जीने का कोई जरिया समझ में नहीं आ रहा था, तब वे भीख मांग कर गुजारा कर रहे थे, लेकिन अब सब कुछ बदल
गया है. अब वह अन्य महिलाओं के साथ उसी घाट पर ऊन और अन्य धागों से जिंदगी की नयी छांव बुन रही हैं. रंग-बिरंगे धागों से तैयार किये गये इनके पर्स भी लोगों को खूब भा रहे हैं.
* ऐसे लायी जीवन में बदलाव
साइकी ने बताया कि जब हम भारत आये तो घाट पर भीख मांगनेवालों को देख कर बहुत अफसोस हुआ. धीरे-धीरे इन परिवारों से टूटी-फूटी हिंदी में हमने संवाद शुरू किया. कुछ दिनों तक तो हमें बहुत दिक्कत हुई क्योंकि वे लोग न हमारी बातों को ठीक से समझ पाते थे और न ही हमारी बातों में दिलचस्पी रखते थे.
धीरे-धीरे हमने उन्हें समझाया और बहुत मुश्किल से उन्हें भीख न मांगने के लिए मनाया. शुरुआत में महिलाओं को दिक्कते हुईं लेकिन जैसे-जैसे वे धागे से अच्छी-अच्छी चीजें बनाने में महिर होने लगी उनका रुचि बढ़ने लगा. हम बहनें उन्हें रंग, ऊन, धागे, मोती के अलावा ब्रश भी मुहैया कराते हैं. बच्चों के लिए गंगा नाम से एक स्कूल भी इसी घाट पर चलाया जा रहा है.