पेइचिंग : भारत के सीमावर्ती क्षेत्र अरुणाचल प्रदेश के तवांग में अवैध तरीके से अपना कब्जा जमाने वाले चीन ने अब भारत के सामने आदान-प्रदान करने का फॉर्मूला पेश कर सकता है. इस फॉमूले के पेश करते हुए चीन ने भारत के सामने तवांग के बदले अपने हिस्से के अक्साई चिन को देने का प्रस्ताव रखा है. मीडिया को दिये एक साक्षात्कार में चीन के पूर्व वरिष्ठ राजनयिक दाई बिंगुओ ने इस बात के संकेत दिये हैं. उनके इस साक्षात्कार के बाद यह माना जा रहा है कि उनका इशारा तवांग के बदले अक्साई चिन के आदान-प्रदान की तरफ है. गौरतलब है कि तवांग भारत-चीन सीमा के पूर्वी सेक्टर का सामरिक और राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण और संवेदनशील इलाका है.
भारत के साथ सीमा विवाद पर चीन के पूर्व वार्ताकार और वरिष्ठ कम्युनिस्ट नेता दाई बिंगुओ ने पेइचिंग के एक प्रकाशन को दिये साक्षात्कार में यह सुझाव दिया. 2013 में सेवानिवृत्त होने से पहले दाई बिंगुओ ने एक दशक से भी अधिक समय तक भारत के साथ चीन की विशेष प्रतिनिधि वार्ता का नेतृत्व किया था. हालांकि, तवांग का आदान-प्रदान भारत सरकार के लिए आसान नहीं होगा, क्योंकि यहां पर स्थित तवांग मठ तिब्बत और भारत के बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए विशेष महत्व रखता है. बावजूद इसके दाई की टिप्पणी महत्वपूर्ण है, क्योंकि माना जाता है कि बिना किसी तरह की आधिकारिक स्वीकृति के वह इस तरह के बयान नहीं दे सकते.
सूत्रों का कहना है कि दाई को अभी भी चीनी सरकार के करीब माना जाता है और राजनयिक समुदाय में उन्हें काफी गंभीरता से लिया जाता है. कम्युनिस्ट पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की सहमति के बिना किसी साक्षात्कार में वह इस तरह के बयान नहीं दे सकते. दाई ने साक्षात्कार में कहा कि सीमा को लेकर विवाद अभी तक जारी रहने का बड़ा कारण यह है कि चीन की वाजिब मांगों को अभी तक पूरा नहीं किया गया. उन्होंने आगे कहा कि अगर पूर्वी क्षेत्र में भारत चीन का ख्याल रखेगा तो चीन भी उसी तरह से किसी अन्य क्षेत्र (अक्साई चिन) में भारत के लिए सोचेगा.
दाई बिंगुओ ने कुछ इसी तरह की बातें बीते साल आई अपनी एक किताब में कही थी. चीन संबंधित मामलों के जानकार श्रीकांत कोंडापल्ली ने बताया कि भारत के पूर्वी क्षेत्र में चीन का रुझान 2005 के बाद से बढ़ा है. इसी साल दोनों देशों के बीच सीमा विवाद के हल के लिए निर्देशक सिद्धांत और राजनीतिक मानदंड तय किये गये थे. तवांग पर चीन की नजर है और वह इसे दक्षिणी तिब्बत कहता है, क्योंकि 15वीं शताब्दी के दलाई लामा का यहां जन्म हुआ था.