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यूपी चुनाव: गड़वाघाट में शीश नवा मोदी ने दिया बड़ा संदेश

!!वाराणसी से अंजनी कुमार सिंह!! काशी नगरी की गंगा के तट पर गड़वाघाट नामक एक पवित्र स्थान है, जिसका प्रभाव सियासत में भी है. अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी में तीन दिवसीय चुनाव प्रचार के तीसरे दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी सोमवार को इस आश्रम में आशीर्वाद ग्रहण करने पहुंचे. आश्रम में प्रधानमंत्री को सुनने के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 7, 2017 7:35 AM

!!वाराणसी से अंजनी कुमार सिंह!!

काशी नगरी की गंगा के तट पर गड़वाघाट नामक एक पवित्र स्थान है, जिसका प्रभाव सियासत में भी है. अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी में तीन दिवसीय चुनाव प्रचार के तीसरे दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी सोमवार को इस आश्रम में आशीर्वाद ग्रहण करने पहुंचे.

आश्रम में प्रधानमंत्री को सुनने के लिए भक्तों और आसपास के लोगों का हुजूम जुटा. आश्रम के अंदर एक स्टेज बनाया गया था. उम्मीद की जा रही थी कि मोदी यहां से अपना संदेश देंगे. लेकिन, वे आश्रम में कुछ नहीं बोले. लोगों को प्रणाम किया ओर बिना बोले ही वहां से बाबा का आशीर्वाद लेकर प्रस्थान कर गये. लोग यह मानते हैं कि चूंकि यह मठ आध्यात्मिक केंद्र हैं, जहां पर सभी दल के लोग आते हैं, इसलिए प्रधानमंत्री ने वहां के मंच पर से कुछ न बोलना बाजिव समझा. हालांकि बनारस में दो दिनों बाद ही चुनाव है, इसलिए इसके राजनीतिक अर्थ निकाले जा रहे हैं. लोग बता रहे हैं कि आश्रम में आने के बाद बाबा के भक्तों में यह संदेश तो गया ही है कि मोदी ने आश्रम में आकर मठ का सम्मान बढ़ाया है. प्रधानमंत्री के आने से आश्रम के प्रमुख सदगुरु सरनानंद महाराज खुश दिखे. वह कहते हैं, भारत मोदीजी के नेतृत्व में विश्वगुरु बने, यही मेरा आशीर्वाद है.

आश्रम प्रमुख मोदीजी के बारे में कहते हैं- ‘आपकी यह विश्वजीत पहचान विवेकानंद का प्रतिनिधित्व बने, यही मेरी मंगलकामना है.’ बनारस में राजनीति और धर्म साथ-साथ चले बिना नहीं रह सकते. जो भी नेता यहां आते हैं, वे बाबा विश्वनाथ का दर्शन किये बिना नहीं लौटते. यहां कई आश्रम और मठ है, जो राजनीति पर अपनी अच्छी पकड़ रखते हैं. ऐसे में अगर मोदी के इस आश्रम दर्शन को भी लोग राजनीतिक समझ रहे हैं, तो इसमें कोई हैरत की बात नहीं है. यदुवंशियों के इस आध्यात्मिक पीठ व आश्रम में मोदी के आने से लोग यह मान रहे हैं कि उन्होंने पिछड़े वर्गों का दिल जीतने का काम किया है. यही वजह है कि इसे राजनीति के नजरिये से देखा जा रहा है.

दूसरी बात यह भी है कि गड़वाघाट आश्रम आस्था के साथ राजनीतिक गतिविधियों का भी केंद्र रहा है. भाजपा नेताओं का यहां अक्सर आना-जाना रहा है. साल 1994-95 में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक भी यहां हो चुकी है. अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी समेत भाजपा के अन्य बड़े नेता भी इस आश्रम में आ चुके हैं. लेकिन, बाद के वर्षों में सपा नेताओं की आवाजाही ज्यादा तेज हो गयी. यह बताया जाता है कि शिवपाल यादव और मुलायम सिंह यादव परिवार सहित साल में कई बार यहां आते-जाते रहते हैं.

बनारस के वर्तमान परिदृश्य में इस आश्रम का सामाजिक और राजनीतिक महत्व माना जाता है. आश्रम का आकार बहुत बड़ा है, जिसमें दो-तीन सौ गायों का पालन-पोषण होता है. रोजाना चार से पांच सौ लोग इस आश्रम में भोजन ग्रहण करते हैं. इसका खर्च खुद आश्रम ही वहन करता है, क्योंकि राज्य के कई जिलों में इसकी अपनी खेतिहर जमीन है, जहां आश्रम के लिए अन्न उपजाया जाता है. सोनभद्र, मिर्जापुर के साथ ही बिहार के कुछ जिलों में भी इसकी शाखा है. यह आश्रम कई गौशालाओं, अस्पतालों और स्कूलों का भी संचालन करता है. इन सब चीजों के चलते ही काशी में इस आश्रम का एक अपना प्रभाव है, जो स्थानीय सामाज और राजनीति को प्रभावित करता है. सामाजिक स्तर पर इसका प्रभाव इसलिए है, क्योंकि आश्रम की विशेषता मितव्ययिता और सेवा भावना के चलते समाज के पिछड़े वर्गों के लिए अपने द्वार को खोलना है.

यदुवंशियों के लिए यह आश्रम एक आध्यात्मिक पीठ है. सिर्फ उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल के लिए ही नहीं, बल्कि अन्य राज्यों के यादवों के लिए भी यह आश्रम आस्था का सबसे बड़ा केंद्र बिंदु है. इस आस्था का विस्तार मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड तक है. हर वर्ष गुरु पूर्णिमा के अवसर पर यहां लगनेवाले मेले में तीन से चार लाख लोग शामिल होते हैं. सोनभद्र, मिर्जापुर, चंदौली आदि जिलों में यादवों की संख्या काफी है. पिछले विधानसभा चुनाव में जहां भाजपा इन जगहों पर पीछे रही, वहीं लोकसभा चुनाव में आगे. एक कारण यह भी रहा है कि मोदी ने आश्रम में आकर बाबा के अनुयायियों के बीच यह संदेश देने का काम किया है कि बाबा के प्रति वह भी उतना ही श्रद्धावान है, जितना यदुवंशी लोग.

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