साइबर बुलिंग का शिकार हो रहे बच्चे

रिपोर्ट बताते हैं कि सोशल साइटों का प्रयोग करनेवाले बच्चों पर इंटरनेट का दुष्प्रभाव पड़ रहा है. भावनात्मक रूप से अपरिपक्व बच्चे कई बार साइबर बुलिंग के शिकार हो जाते हैं. फिर डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं. दूसरी ओर बच्चों की पोर्नोग्राफी तक पहुंच आसान होने से भी कई विकृतियां सामने आ रही हैं. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 16, 2013 1:41 PM

रिपोर्ट बताते हैं कि सोशल साइटों का प्रयोग करनेवाले बच्चों पर इंटरनेट का दुष्प्रभाव पड़ रहा है. भावनात्मक रूप से अपरिपक्व बच्चे कई बार साइबर बुलिंग के शिकार हो जाते हैं. फिर डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं. दूसरी ओर बच्चों की पोर्नोग्राफी तक पहुंच आसान होने से भी कई विकृतियां सामने आ रही हैं. सवाल है कि क्या यह बच्चों को यौन शिक्षा पर बहस का सही समय नहीं है?

।।उमर वनी।।
अब सोशल नेटवर्किग साइटों जैसे फेसबुक से आप पता कर सकते हैं कि स्कूल के बाहर आपके बच्चे क्या कर रहे हैं. यह छात्रों के लिए ऐसा अड्डा बन गया है, जहां वे सब कुछ शेयर करते हैं. निजी जिंदगी से लेकर देश-दुनिया के बारे में. सोशल साइटों में सकारात्मक चीजें हैं, पर उसके नकारात्मक प्रभाव भी कम नहीं हैं. इन्हीं में एक है साइबर बुलिंग.
साइबर बुलिंग की चर्चा जरूरी क्यों? हाल के दिनों में किशोरों द्वारा आत्महत्या या एक-दूसरे को मारने की घटनाएं सामने लगातार आयी हैं.

यह इसलिए कि सोशल साइटों पर उनके विरुद्ध आपत्तिजनक चीजें भेजी गयीं. उन्हें उकसाने की कोशिश की गयी. जो इसे ङोल गया, वह तो पार निकल जाता है. जो नहीं ङोल पाता, डिप्रेशन का शिकार हो जाता है. नतीजा, आत्महत्या या मरने-मारने पर उतारू. यह इंटरनेट युग का दुष्प्रभाव है. अब साइबर बुलिंग की परिभाषा समङों. जब कोई व्यक्ति इंटरनेट, सेल फोन या किसी दूसरे माध्यम से किसी को ऐसे टेक्स्ट, इमेज या आपत्तिजनक सामग्री भेजता है, जिससे किसी के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचती है, तो इसे साइबर बुलिंग कहते हैं.

कई बार साइबर बुलिंग ऐसी होती है, जो आपराधिक धाराओं के तहत आती हैं. यदि कोई नाबालिग साइबर बुलिंग में लिप्त होता है, तो वह भी जुवेनाइल अपराध की श्रेणी में आता है. साइबर बुलिंग का किशोरों के मन पर गहरा प्रभाव पड़ता है. इससे उनका आत्मविश्वास, स्वाभिमान डगमगा जाता है. असुरक्षा की भावना घर कर जाती है. पढ़ाई-लिखाई बाधित होती है. घर-परिवार से कटा हुआ महसूस करने लगता है.

कई बार हम यह सुनते हैं कि अमुक युवक ने इस वजह से आत्महत्या कर ली कि उस पर झूठा आरोप लगाया गया था. उसे वह बरदाश्त नहीं कर सका. माता-पिता इन बातों को इसलिए नहीं समझ पाते क्योंकि कई बातें ऑनलाइन होती हैं. हम-आप सभी उस युवक और उसके परिजनों की पीड़ा को समझ सकते हैं, जिन्होंने कोई आपत्तिजनक वीडियो या कुछ और टेक्स्ट देखे हैं. हालांकि अभिभावक अपने बच्चों की सुरक्षा करना चाहते हैं, पर फिर भी आत्महत्या जैसी घटनाएं हो रही हैं.

मेरा ऐसा मानना है कि सोशल मीडिया इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है. बच्चों द्वारा आत्महत्या करने से दुखद और क्या हो सकता है. अभिभावक भी सीधे-सीधे सोशल मीडिया को जिम्मेदार ठहरा देते हैं. पर सही मायनों में आज आप बच्चों को इंटरनेट से दूर नहीं रख सकते. जैसे आप बच्चों को सड़कों पर चलने या प्लेग्राउंड में जाने से नहीं रोक सकते, उसी तरह अब हमें ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों पर काम करने की जरूरत है.

अभिभावकों और शिक्षकों के ऊपर महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है, पर वे हर जगह नहीं हो सकते. किशोरों, युवकों को अपनी रक्षा करने के लिए खुद को तैयार करना होगा. यह बात जान लें कि जो साइबर बुलिंग करते हैं, चाहे वे युवा हों या वयस्क, दरअसल जीवन में हारे हुए लोग होते हैं और वे दूसरों पर बस अपनी भड़ास निकालना चाहते हैं. हमें अपने बच्चों को बताना होगा कि आप दुखी न हों. जो आपको चोट पहुंचा रहे हैं, वे कायर और निराश लोग हैं.

कई बार ऐसा होता है कि स्कूल प्रबंधन साइबर बुलिंग के मामलों में अनुशासन को सख्ती से लागू करना चाहते हैं. ऐसे में कई बार फ्रीडम ऑफ स्पीच का उल्लंघन होता है. स्कूल यदि चाहते हैं कि साइबर बुलिंग पर नियंत्रण हो, तो उन्हें अभिभावकों से बात करनी चाहिए. वे साइबर एथिक्स पर बच्चों को शिक्षित कर सकते हैं. कई सारे विकल्प हैं, जिससे छात्रों को साइबर बुलिंग से शिकार होने से बचाया जा सके. पर समस्या हल करने के लिए इंटरनेट पर प्रतिबंध लगाना सही नहीं होगा.
(लेखक लंदन विश्वविद्यालय के किंग्स कॉलेज में एमबीए फाइनेंस के छात्र हैं)

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