बचपन में जब आंखें रंग पहचानना शुरू करती हैं, उनकी आंखों की रोशनी जाती रही. तब उनके पिता ने उनकी जिंदगी को संगीत से रोशन करने का फैसला किया. पांच साल की उम्र से वह संगीत सीखने लगे.
सरगम सीखते हुए, सरगम को जीने भी लगे. एक दिन ऐसा आया, जब उनके सुर में कई और सुर मिले और अनगिन यादगार गीत श्रोताओं तक पहुंचे. फिल्मी गीत ही नहीं, भक्ति संगीत ने भी हर घर में लोगों को उनका मुरीद बना दिया. जी हां, बात हो रही है गीतकार, गायक और संगीतकार रवींद्र जैन की, जिन्होंने ‘सुन साहिबा सुन’,‘गोरी तेरा गांव बड़ा प्यारा’,‘जब दीप जले आना’ ‘तू जो मेरे सुर में सुर मिला ले’, ‘अंखियों के झरोखों से’,‘जाते हुए ये पल छिन’ जैसे गीत यादगार गीत लिखे और उनकी धुन भी बनायी. ऐसा कम होता है कि गीत, संगीत और गायन, तीनों कलाओं की प्रतिभा एक ही व्यक्ति में हो.
लेकिन रवींद्र जैन को ये तीनों भूमिकाएं निभा ले जाने में महारथ हासिल है. सत्तर के दशक में दिल्ली में एक मित्र के यहां अनौपचारिक कार्यक्रम में राज कूपर ने रवींद्र जैन को ‘एक राधा एक मीरा, दोनों ने श्याम को चाहा’ गीत गाते सुना और तुरंत बोल पड़े ‘ये गीत मेरा हो गया.’ बाद में यह गीत ‘राम तेरी गंगा मैली’ फिल्म का आधार बना. रवींद्र जैन ने न सिर्फ इस फिल्म का संगीत तैयार किया, सारे गीत भी लिखे. अमिताभ और नूतन अभिनीत ‘सौदागर’ से शुरू हुए रवींद्र जैन के गीत-संगीत के पूरे सफर को देखें, तो उनके मुरीदों में बड़े पैमाने पर भोजपुरी सुननेवाले श्रोता भी शामिल हैं. ‘नदिया के पार’ के ‘कौने दिशा में ले के चला रे बटोहिया’ सहित लगभग सभी गीत और ‘दुल्हन वही जो पिया मन भाये’ के ‘अंचरा में फुलवा लई के, आये रे हम तोरे द्वार’ गीत रवींद्र जैन के संगीत के पिटारे से निकले हैं.
उन्होंने हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं की तकरीबन 150 फिल्मों में संगीत दिया है और अधिकतर के गीत भी लिखे हैं. मोहम्मद रफी, मुकेश और लता मंगेशकर, किशोर कुमार और मन्ना डे तक लगभग सभी शीर्ष गायकों ने रवींद्र की बनायी धुनों को अपनी आवाज दी है. यसुदास, सुरेश वाडकर, हेमलता, जसपाल सिंह, चंद्राणी मुखर्जी जैसे गायकों की आवाज से श्रोताओं को रूबरू कराने में रवींद्र जैन की बड़ी भूमिका रही है. भारतीय टेलीविजन के इतिहास के सबसे लोकप्रिय धारावाहिक ‘रामायण’ सहित ‘श्री कृष्णा’,‘जय गंगा मैया’साईं बाबा’ ‘अलिफ लैला’ जैसे कई धारावाहिकों का संगीत भी उन्होंने तैयार किया. उनके बनाये और गाये ‘मंगल भवन, अमंगल हारी’ और ‘श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी’ भजन घरों से लेकर मंदिरों तक हर जगह सुने जा सकते हैं.
अलीगढ़ से नागपुर, कलकत्ता और फिर बंबई पहुंचे रवींद्र जैन फिलहाल जिंदगी के सत्तरवें साल से गुजर रहे हैं. अपने संगीत के सबसे सुनहरे समय से वह बहुत आगे निकल आये हैं, लेकिन उम्र के इस पड़ाव में भी गीत-संगीत के क्षेत्र में उनकी सक्रियता चकित करनेवाली है. 2008 में उन्होंने ‘एक विवाह ऐसा भी’ का संगीत दिया था. इसके बाद वह कई फिल्मों के लिए संगीत तैयार कर चुके, हालांकि न इन फिल्मों का, न ही इनके गीतों का कहीं जिक्र सुना गया. लेकिन इस बात से बेपरवाह वह अपने काम में आज भी लगे हुए हैं. ‘सुनहरे पल’ किताब के जरिये रवींद्र जैन के जीवन और संगीत को उनके ही शब्दों में बारीकी से जाना जा सकता है.
त्नप्रीति सिंह परिहार