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मिस्र : एक पत्रकार ने 1124 घंटे जेल में अकेले रहने की यातना झेली

बहार मोहम्मद पेशे से पत्रकार हैं. मिडिल इस्ट और अफ्रीका के उत्तरी इलाकों में उन्होंने काम किया है. वर्ष 2013 में मिस्र में अल जजीरा के सात पत्रकारों पर विरोध प्रदर्शनों को लेकर गलत समाचार दिखाने का आरोप लगा. इनमें बहार मोहम्मद भी शामिल थे. 29 दिसंबर, 2013 को रविवार का दिन था. बहार उस […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 23, 2017 9:30 AM

बहार मोहम्मद पेशे से पत्रकार हैं. मिडिल इस्ट और अफ्रीका के उत्तरी इलाकों में उन्होंने काम किया है. वर्ष 2013 में मिस्र में अल जजीरा के सात पत्रकारों पर विरोध प्रदर्शनों को लेकर गलत समाचार दिखाने का आरोप लगा. इनमें बहार मोहम्मद भी शामिल थे. 29 दिसंबर, 2013 को रविवार का दिन था. बहार उस दिन गिरफ्तार कर लिये गये. उन्हाेंने जेल में 437 दिन गुजारे. सितंबर, 2015 में उन्हें रिहा किया गया. उन्हें जेल के अंदर सेल में ज्यादातर वक्त अकेले ही रखा गया.

जेल से निकलने के बाद उन्होंने जेल में बिताये वक्त पर एक लंबा आलेख लिखा. इसमें जेल के दिनों के अनुभव के अलावा एक पत्रकार की दृष्टि से चीजों का विश्लेषण भी है. एक पत्रकार को कैसे यातनापूर्ण जीवन जीना पढ़ा, वह इसमें व्यक्त हुआ है. उनके इस आलेख को अल जजीरा ने ही छापा. पेश है आलेख का संपादित अंश.

हम चाहते हैं कि तुम जमकर मर जाओ

दिन भर लंबी पूछताछ करने के बाद, जो व्यक्ति मुझसे सवाल कर रहा था, उसने अपने चेहरे पर दिखावटी मुस्कान लाते हुए कहा – तुम्हें पता है, मुझे विश्वास है कि तुमने कुछ गलत नहीं किया है. मैं तुम्हें आराम करने के लिए एक खूबसूरत जगह भेजूंगा.

इतना कह कर वह चला जाता है. फिर दूसरे गार्ड आते हैं. वह मेरे हाथों में हथकड़ी डालते हैं और घसीट कर एक पिकअप ट्रक में डाल देते हैं. मैं उनसे बार-बार पूछता हूं, आप मुझे कहा लेकर जा रहे हैं? हथकड़ी क्यों नहीं खोल रहे हैं? लेकिन, मुझे कोई जवाब नहीं मिलता है.

करीब 45 मिनट के सफर के बाद पिकअप ट्रक रुकता है. मैं अपने आप को एक बड़े से कॉम्पलेक्स के भीतर पाता हूं. मेरे सामने एक बहुत बड़ा लोहे का गेट है. करीब पांच मिनट बाद एक व्यक्ति गेट को खोलने के लिए चाबी लेकर आता है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि गेट अंदर से नहीं खुल सकता है. वहां कई अधिकारी पहले से मेरा इंतजार कर रहे थे. उनमें से एक मुझ पर चिल्लाता है-तुरंत अपने कपड़े उतारो.

मैं पूछता हूं-क्यो? इस समय मैं कहां हूं? दूसरा अधिकारी मुस्कुराते हुए कहता है – तुम इस समय सबसे सुरक्षित जेल ‘स्कारपियोन’ में हो. इसके बाद पहले वाला फिर चिल्लाता है -मैं कहा रहा हूं कि तुम अपने कपड़े उतारो और मैं तुम्हारी आवाज भी नहीं सुनना चाहता हूं. मैं अपने कपड़े उतारता हूं. इसके बाद वह मुझे पोलिएस्टर की एक गंदी यूनिफार्म देते हैं. इसके साथ वह दो गंदे ब्लैंकेट भी देते हैं. ठंड बहुत ज्यादा थी. इसलिए मैने उनसे अपना कोट अपने पास रखने की इजाजत मांगी. उन्होंने कहा – हम चाहते हैं कि तुम जम कर मर जाओ.

दो अधिकारी और तीन गार्ड मुझे मेरे सेल तक ले गये. वहां मुझे धक्का देकर अंदर किया गया. इसके बाद गार्ड ने दरवाजा बंद कर दिया. दो वर्ग मीटर के कमरे में मैं अपने को अकेला पाता हूं. मेरी बायीं ओर टूटा संडास और बदबूदार सिंक था. सोने के लिए कुछ नहीं था. हर तरफ कीडों और काकरोचों का राज था. मैं ठंड से कांप रहा था, लेकिन ब्लैंकेट का इस्तेमाल नहीं कर सकता था. मैं अपने जूतों का तकिया बना कर लेट जाता हूं. मुझे इस सेल में 1124 घंटे रखा गया. मेरे परिवार के लोगों और मेरे वकील को भी मुझसे मिलने की इजाजत नहीं थी. इस दौरान मैंने सूर्य की रोशनी तक नहीं देखी. मुझे सिर्फ पूछताछ के लिए ही बाहर निकाला जाता.

खूद को समझाया आैर मजबूत किया

मैं अक्सर रोता रहता. करीब-करीब हर रात खराब सपने मुझे जगा देते. मैं खूब रोया, क्योंकि मैंने सपने में देखा था कि मेरे पिता का इंतकाल हो गया है और मैं उन्हें दोबारा नहीं देख पाउंगा. एक बार मैं रातभर रोता रहा, क्योंकि एक अधिकारी ने मुझे धमकी दी थी कि अगर मैं उनके द्वारा तैयार बयान पर दस्तखत नहीं करूंगा, तो वह मेरे सामने ही मेरी पत्नी और मां के साथ बलात्कार करेगा.कई बार ऐसा समय भी आया जब मुझे लगा कि कोई होता, जिससे मैं अपनी बात कह पाता. यह ‘कोई’ विल्सन है. विल्सन एक प्याज है. उससे मुझे बहुत मदद मिली, क्योंकि वह मेरी हर बात सुनता.

मैं अपने आप से पूछता कि मैं यहां क्यों हूं? मैंने कुछ गलत नहीं किया है. मैं तो सिर्फ अपना काम कर रहा था. इससे मुझे अहसास हुआ कि जेल में मैं किसी बड़े काम के लिए हूं. मैं जेल में प्रेस की आजादी के लिए हूं. मुझे अपने आप को मजबूत बनाना होगा. इसके बाद मैंने गांधी और मंडेला जैसे लोगों के बारे में सोचने लगा, जो बड़े कार्य को अंजाम तक पहुंचाने के लिए हमेशा मजबूती से खड़े रहे. वह भी हमारी तरह मनुष्य ही थे. इसी दौरान मैंने मन बनाया कि अपने सिद्धांतों के लिए मैं मजबूती से खड़ा रहूंगा. मुझे पता है कि यह लड़ाई आसान नहीं है. मुझे पता था कि जेल में वर्षों रहना पड़ सकता है, लेकिन दिल के किसी कोने में यह विश्वास भी था कि अच्छाई हमेशा जीतेगी.मैंने विल्सन की देखभाल शुरू की. मैं नियम से उसका पानी बदलता. अपने सेल में ही रोज एक घंटा सुबह और एक घंटा शाम मैंंने कसरत करना शुरू किया.

विदेशी पत्रकारों के साथ था इसलिये रिहा हो सका

14 फरवरी को मुझे दूसरी जेल में भेजा गया. यह पहले से अच्छा था. मुझे लगता है कि मेरे सहयोगियों और मुझे इस जेल में भेजने के पीछे दो वजह हो सकती है. पहला, हमें रिहा करने के लिए बड़े पैमाने पर मुहिम चलाया जा रहा था. दूसरा, मेरे सहयोगी पीटर ग्रेस्ट का आस्ट्रेलिया और मोहम्मद फहमी का कनाडा का होना हो सकता है. मेरे कहने का मतलब है, उनका विदेशी होना अच्छे जेल में भेजने की वजह हो सकती है. मैं भी जेल से इसी वजह से रिहा हो पाया, क्योकि मैं विदेशी पत्रकारों के साथ था. पीटर और मोहम्मद से मेरी अच्छे दोस्ती हैं, लेकिन यह सोच कर दुख होता है कि मेरा देश मिस्र अपने लोगों से ज्यादा विदेशियों का ख्याल रखता है.

अपनी बात को सही साबित करने के लिए मैं दो घटनाओं का जिक्र करूंगा. पहला, पीटर के रिहा होने की सूचना जेल के वार्डन ने मुझे नहीं दी. दूसरी घटना मेरे रिहा होने के बाद की है. इटली के पीएचडी छात्र गुलिओ रिगिने की सुरक्षा कर्मियों ने अपहरण के बाद हत्या कर दी गयी थी. इटली की मीडिया ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा था – उसे ऐसे मारा गया,, जैसे कि वह एक इजिप्शियन है.

पत्रकारों के लिए कुछ नहीं कर पाने का है अफसोस

मुझे इस बात का बहुत अफसोस हो रहा है कि जेल में बंद पत्रकारों के लिए मैं कुछ नहीं कर पा रहा हूं. बदकिस्मती से, मिस्र की जेलों में बंद पत्रकारों के लिए कोई बड़ा मुहीम नहीं चल रही है. मैं सोचता हूं कि लिखने से ज्यादा उनके लिए कुछ कर पाता, लेकिन मुझे यह पता नहीं चल पा रहा है कि मैं कहां से शुरू करूं.

अगर मैं जेल में चिट्ठी भेज सकता तो उन्हें लिखता …

जेल में बंद पत्रकारों…

आपको हम भूले नहीं हैं. आप लोगों के दिमाग में बसे हैं. आप हमें माफ कीजियेगा, क्योंकि आपको रिहा कराने के लिए कोई कैंपेन नहीं चल रहा है. मैं आपकी कहानियों को दुनिया के सामने लाउंगा. मैं अपने बच्चों को आपके बारे में बताउंगा. मेरा बेटा इब्राहिम आपकी तरह बनना चाहता है. मेरी बेटी फोटोजर्नलिस्ट बनना चाहती है. मुझे पता नहीं कि यह सही है या गलत, लेकिन जो मेरे और आपके साथ हुआ है, उससे मेरे बच्चे पुलिस से नफरत करने लगे हैं.आप सबको गर्व करना चाहिए. यह विश्वास रखना चाहिए कि सच्चाई की जीत होगी.

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