एक बार भाजपा को आजमायें : नजमा

रांची: राज्यसभा की पूर्व डिप्टी स्पीकर नजमा हेपतुल्लाह ने बुधवार को राजधानी रांची में मुसलिम बुद्धिजीवियों के साथ खुले मंच पर बात की. उनकी बातें सुनीं और उनके सवालों के जवाब भी दिये. लोकसभा चुनाव में जनहित मुद्दा तय करने को लेकर फोरम फॉर गुड गव्रेनेंस (एफजीजी) की ओर से आयोजित गोष्ठी में बुधवार को […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 20, 2014 11:56 AM

रांची: राज्यसभा की पूर्व डिप्टी स्पीकर नजमा हेपतुल्लाह ने बुधवार को राजधानी रांची में मुसलिम बुद्धिजीवियों के साथ खुले मंच पर बात की. उनकी बातें सुनीं और उनके सवालों के जवाब भी दिये. लोकसभा चुनाव में जनहित मुद्दा तय करने को लेकर फोरम फॉर गुड गव्रेनेंस (एफजीजी) की ओर से आयोजित गोष्ठी में बुधवार को उन्होंने मुसलिम बुद्धिजीवियों को संबोधित किया.

गुजरात में दंगों से संबंधित सवालों पर नरेंद्र मोदी का बचाव भी किया. उन्होंने कहा कि देश में 60 हजार से अधिक दंगे हुए हैं, लेकिन केवल नरेंद्र मोदी का नाम ही जोड़ा जाता है. यह आखिरी चुनाव नहीं है, भाजपा को एक बार मौका देकर देखें. किसी तरह की शिकायत का मौका नहीं दिया जायेगा. कांग्रेस सच्चर कमेटी की रिपोर्ट लागू करने से कतराती है.

पूर्व विधानसभा अध्यक्ष सीपी सिंह ने कहा कि मैं पिछले 18 साल से यहां का विधायक हूं. आरएसएस से भी जुड़ा हूं. आज तक एक भी मुसलिम पर अंगुली नहीं उठायी. गोष्ठी में राष्ट्रीय संयोजक दुर्गानंद झा, प्रदेश संयोजक सुमित मित्तल, मौलाना तहजिबुल हसन, कमाल खां, तारिक इमाम, मो काजिम, एस अली, प्रो जुबैर, रिजवान खां, मो एजाज, प्रो जुबैर, अरुण कुमार, विमल कुमार, सचिन कुमार समेत कई लोग उपस्थित थे.

अभी भी आम लोगों का नजरिया है कि भाजपा पूंजीपतियों की पार्टी है, पूरे देश की नहीं. सेक्यूलर के नाम पर कांग्रेस ने मुसलमानों पर राज किया. एनडीए के साथ बजरंग दल, आरएसएस और शिव सेना जैसे दल जुड़े है.
कारी जान मोहम्मद

झारखंड में जान-माल की हिफाजत सबसे अहम मुद्दा है. राज्य के आधे से अधिक हिस्सों पर नक्सलियों का कब्जा है. आजादी के बाद 35 हजार से अधिक दंगे हो चुके हैं. गुजरात में अभी भी रिफ्यूजी कैंप में रह रहे लोगों की स्थिति दयनीय है. इस पर भाजपा को पुनर्विचार करना चाहिए. सांप्रदायिक हिंसा बिल को पास करना जरूरी है. झारखंड में मुसलमानों के लिए अब तक कुछ नहीं किया गया है. अब तक न तो मदरसा बोर्ड का गठन हुआ और न ही उर्दू एकेडमी बनी.
प्रोफेसर सज्जाद

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