नयी दिल्लीः ग्लोबल वार्मिंग से दुनिया परेशान है. हर देश में इसका असर देखा जा रहा है. ग्लेशियर पिघल रहे हैं. मौसम बदल रहे हैं. ग्लोबल वार्मिंग की तरह डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिका की नीतियां भी बदल रही हैं. कल तक दुनिया को ग्लोबल वार्मिंग से बचाने की बात करनेवाला अमेरिका वर्ष 2015 में 195 देशों के साथ हुए समझौते से पीछे हट गया है.
ट्रंप के इस फैसले से ग्लोबल वार्मिंग से लड़ने की जो रूपरेखा तैयार हुई थी, उसको गहरा धक्का लगा है. दरअसल, विश्व समुदाय ने कई वर्षों की मेहनत के बाद पेरिस समझौता तैयार किया था. सभी 195 देश इस बात पर सहमत हुए थे कि विश्व का तापमान दो डिग्री सेंटीग्रेड से ज्यादा नहीं बढ़ने देंगे. इसका उद्देश्य ग्लोबल वार्मिंग के असर को कम करना था.
लेकिन, ट्रंप ने बेतुका तर्क देते हुए समझौते से अमेरिका के अलग होने की घोषणा कर दी. आश्चर्यजनक रूप से ट्रंप ने कहा कि भारत और चीन जैसे देश कोयला संयंत्र लगा रहे हैं. पेरिस समझौते के तहत वह 13 साल तक ऐसा कर पायेंगे. लेकिन, अमेरिका को यह छूट प्राप्त नहीं है. ट्रंप ने कहा कि भारत को विकसित देशों से अरबों और अरबों और अरबों डाॅलर के विदेशी मदद मिलेंगे.
ट्रंप ने अपने फैसले को उचित ठहराने के लिए चीन और भारत को दुनिया का सबसे बड़ा कार्बन उत्सर्जक देश बताया है. उन्होंने कहा कि पेरिस समझौते में जो शर्तें हैं, वह भारत और चीन को काफी छूट देती हैं. इससे अमेरिकी हितों को नुकसान पहुंच रहा है.
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अमेरिका के राष्ट्रपति ने व्हाइट हाउस के रोज गार्डेन में कहा कि डील के तहत भारत को कोयला संयंत्र लगाने की अनुमति दी गयी है, जबकि अमेरिका को इसकी छूट नहीं दी गयी है. उन्होंने कहा कि चीन को सैकड़ों कोल प्लांट लगाने की छूट होगी. लेकिन, अमेरिका में एक भी कोयला संयंत्र नहीं लग सकता.
ट्रंप ने कहा, ‘जरा सोचिए, भारत को वर्ष 2020 तक अपना कोयला उत्पादन दोगुना करने की छूट होगी, लेकिन अमेरिका को नहीं. यहां तक कि यूरोप को भी अपना कोयला संयंत्र चलाने की अनुमति होगी.’
विदेश नीति के जानकार मानते हैं कि ट्रंप भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आगामी अमेरिका यात्रा से ठीक पहले आया यह बयान दोनों देशों के संबंधों को प्रभावित करसकता है. ज्ञात हो कि पेरिस में तय किया गया 10 साल का ब्लूप्रिंट पिछले साल पेश किया गया था.
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इसके बाद भारत सरकार ने कहा था कि वह कार्बन उत्सर्जन में कटौती के मामले में लीडर की भूमिका निभायेगा. वह समझौते में तय लक्ष्य को तय समय से साढ़े तीन साल पहले ही हासिल कर लेगा.
सरकार ने हर घर तक बिजली पहुंचाने का लक्ष्य तय किया है. सरकार के इस कदम की विशेषज्ञों ने काफी सराहना की है. विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत सरकार ने जिस दिशा में कदम बढ़ाया है, वह पेरिस समझौते के अनुकूल है.