गुमला जिले के घाघरा प्रखंड में झलकापाठ गांव है. जंगल व पहाड़ों के बीच स्थित इस गांव में 15 परिवार कोरवा जनजाति के रहते हैं. यह जनजाति विलुप्त प्राय: है. इस जनजाति को बचाने के लिए सरकार कई प्रकार की योजना चला रही है.
परंतु झलकापाठ गांव की व्यस्था देखकर यह कहा जा सकता है कि इस दिशा में अबतक विशेष ध्यान नहीं दिया गया. जिस जाति के लिए सरकार ने करोड़ों रुपये गुमला जिला को दिया है. उस जाति को मूलभूत सुविधा नहीं मिल रही है. आज भी ये आदिम युग में जी रहे हैं. झलकापाठ गांव के हर एक परिवार के युवक युवती काम करने के लिए दूसरे राज्य पलायन कर गये हैं.
इसमें कुछ युवती लापता हैं तो कुछ लोग साल-दो साल में घर आते हैं. पलायन करने की वजह, गांव में काम नहीं है. गरीबी व लाचारी में लोग जी रहे हैं. पेट की खातिर व जिंदा रहने के लिए युवा वर्ग पढ़ाई लिखाई छोड़ पैसा कमाने गांव से निकल गये हैं. गांव में तालाब, कुआं व चापानल नहीं है. इसलिए गांव के लोग पहाड़ के खोह में जमा पानी से प्यास बुझाते हैं.
अगर एक पहाड़ की खोह में पानी सूख जाता है तो दूसरे खोह में पानी की तलाश करते हैं. गांव से पहाड़ की दूरी डेढ़ से दो किमी है. हर दिन लोग पानी के लिए पगडंडी व पहाड़ से होकर पानी खोजते हैं और पीते हैं. गांव तक पहुंचने के लिए सड़क नहीं है.
पैदल जाना पड़ता है. गाड़ी गांव तक नहीं पहुंच पाती. गांव के किसी के घर में शौचालय नहीं है. लोग खुले में शौच करने जाते हैं. जबकि गुमला के पीएचईडी विभाग का दावा है कि हर घर में शौचालय बन गया है. परंतु इस गांव के किसी के घर में शौचालय नहीं है. पुरुषों के अलावा महिला व युवतियां भी खुले में शौच करने जाती हैं.