President House: 45 लाख ईंट, 340 कमरे, देखें कितना खास है राष्ट्रपति भवन

राष्ट्रपति भवन के बारे में आप कितना जानते हैं, क्या आप जानते हैं कितने कमरे हैं, कैसी सुरक्षा व्यस्था है. आइये आपका परचिय राष्ट्रपति भवन से कराते हैं. देश की राजधानी दिल्ली में स्थित राष्ट्रपति भवन बाहर से देखने में जितना सुंदर लगता है, अंदर से वह उतना ही भव्य है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 21, 2022 5:18 PM

President House: 45 लाख ईंट, 340 कमरे, देखें कितना खास है राष्ट्रपति भवन

राष्ट्रपति भवन के बारे में आप कितना जानते हैं, क्या आप जानते हैं कितने कमरे हैं, कैसी सुरक्षा व्यस्था है. आइये आपका परचिय राष्ट्रपति भवन से कराते हैं. देश की राजधानी दिल्ली में स्थित राष्ट्रपति भवन बाहर से देखने में जितना सुंदर लगता है, अंदर से वह उतना ही भव्य है.

राष्ट्रपति भवन देखने में भव्य और सुंदर तो लगता ही है, लेकिन राष्ट्रपति भवन के अंदर भी बहुत सी खूबियां हैं. राष्ट्रपति भवन दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के राष्ट्रपति का निवास स्थान है. पहले यह ब्रिटिश वायसराय का आवास था. इसका निर्माण उस समय किया गया था, जब साल 1911 में यह तय हुआ था कि भारत की राजधानी को कलकत्ता से दिल्ली शिफ्ट किया जाएगा. तब इस आलीशान भवन के निर्माण में 17 साल लग गए थे. इसका निर्माण वर्ष 1912 से शुरू होकर 1929 में पूरा हुआ था. 26 जनवरी 1950 को इसे दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की स्थायी संस्था के रूप में बदल दिया गया.

राष्ट्रपति भवन का निर्माण वास्तुकार एडविन लैंडसीयर लुटियंस ने किया था. चार मंजिले राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति ऑफिस, अतिथि कक्ष, कर्मचारी कक्ष समेत कुल 340 कमरे हैं. इसके अलावा दरबार हॉल, ड्राइंग रूम भी है. नॉर्थ ड्राइंग रूम में राष्ट्रपति दूसरे देश के राष्ट्राध्यक्षों से मुलाकात करते हैं.

वहीं, बैंक्वेट हॉल में पूर्व राष्ट्रपतियों की तस्वीरें लगी हैं. राष्ट्रपति भवन बनाने के लिए लगभग 45 लाख ईंटें लगायी गई थीं. राष्ट्रपति भवन में इमारत के अलावा मुगल गार्डन और कर्मचारियों का भी आवास है. भवन को बनाने में लगभग 29 हजार लोगों ने काम किया था. इस आलीशान भवन के निर्माण में 17 साल लग गए थे. भारत का राष्ट्रपति भवन दुनिया के कुछ सबसे बड़े सरकारी भवनों में से एक है. राष्ट्रपति भवन का मुख्य गुंबद सांची के बौद्ध स्तूप के समान है. यह राष्ट्रपति भवन को और अधिक आकर्षक बनाता है.

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