साल 1982 में जब चंदा बाबू ने छपरा छोड़कर सीवान में बसने का फैसला किया था तब उन्हें कहां मालूम था कि यही शहर उनके खुशियों की कब्रगाह बन जायेगा. चंदा बाबू को ससुर की मदद से सीवान गल्ला पट्टी नया बाजार में एक दुकान मिली. 1996 में चंदा बाबू ने शहर में बड़हरिया स्टैंड के पास एक कट्ठा नौ धूर जमीन रजिस्ट्री करायी. जिसमें चंदा बाबू ने अपने एक और दुकान खोला और गोदाम भी बना लिया था. इस दुकान को छोटे बेटे गिरीश ने संभालना शुरू किया. वर्ष 2000 में दुकान का उद्घाटन हुआ, जिसमें शहाबुद्दीन और मंत्री अवध बिहारी चौधरी शामिल हुए. वर्ष 2004 में चंदा बाबू उस जमीन पर नये सिरे से निर्माण कराना चाहते थे, लेकिन नागेंद्र का कब्जा रास्ते का रोड़ा बन रहा था. इसके बाद शुरू हुए विवाद ने चंदा बाबू का सब कुछ उजाड़ दिया.
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बाहुबली शहाबुद्दीन से भिड़ने वाले चंदा बाबू का निधन, जानें सीवान तेजाब हत्याकांड की कहानी
सीवान तेजाब हत्याकांड के मुख्य आरोपी पूर्व सांसद शहाबुद्दीन एक बार फिर चर्चा में हैं. दिल्ली के तिहाड़ जेल में उम्रकैद की सजा काट रहे शहाबुद्दीन पेरोल पर बाहर आये थे. इस बार सीवान तेजाब हत्याकांड चर्चा में इसलिए है क्योंकि इस पूरे मामलेंं में शहाबुद्दीन को जेल की सलाखों तक भेजने वाले चंद्रकेश्वर प्रसाद उर्फ चंदा बाबू का निधन हो गया है. चंदा बाबू के दो बेटों को जिंदा जलाकर मार दिया गया था और बड़े बेटे राजीव की गोली मारकर हत्या कर दी गयी थी. आइये जानते हैं चंदा बाबू का संघर्ष और शहाबुद्दीन के जेल जाने की पूरी कहानी.
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