अरब में तनातनी : खाड़ी देशों के आपसी तनाव के हो सकते हैं व्यापक असर

कतर तथा सऊदी अरब, बहरीन, संयुक्त अरब अमीरात और मिस्र के बीच कूटनीतिक संबंध समाप्त होने की घटना आतंकवाद के विरुद्ध संघर्ष और वैश्विक अर्थव्यवस्था की गति को नुकसान पहुंचा सकती है. हालांकि इस विवाद के तार क्षेत्रीय टकरावों से जुड़े हैं, पर अमेरिका, रूस और तुर्की के हितों से संबंधित होने के कारण इसका […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 7, 2017 6:20 AM
कतर तथा सऊदी अरब, बहरीन, संयुक्त अरब अमीरात और मिस्र के बीच कूटनीतिक संबंध समाप्त होने की घटना आतंकवाद के विरुद्ध संघर्ष और वैश्विक अर्थव्यवस्था की गति को नुकसान पहुंचा सकती है. हालांकि इस विवाद के तार क्षेत्रीय टकरावों से जुड़े हैं, पर अमेरिका, रूस और तुर्की के हितों से संबंधित होने के कारण इसका महत्व बहुत बढ़ जाता है. मौजूदा खाड़ी संकट के विविध आयामों के विश्लेषण के साथ प्रस्तुत है आज का इन-डेप्थ….
ओमैर अनस
िटप्पणीकार
पांच जून की सुबह रमजान की सहरी के बाद खाड़ी में देशों में हलचल मच गयी. सबसे पहले बहरीन ने कतर पर उसके मुल्क में आतंकवाद को हवा देने का इल्जाम लगाकर राजनयिक रिश्ते खत्म करने का ऐलान किया. थोड़ी देर बाद सऊदी अरब, फिर संयुक्त अरब अमीरात और उसके बाद मिस्र ने एक के बाद एक रिश्ते तोड़ने की घोषणा कर दी. कुछ देर बाद हवाई और जमीनी रास्तों को बंद करने और कतर एयरवेज पर रोक समेत कई सख्त पाबंदियों की घोषणा भी कर दी गयी. सऊदी अरब और कतर के बीच सीमा विवाद समेत कई सारे मसले रहे हैं, लेकिन कभी इस हद तक बात नही गयी थी.
यह बात तय है कि कतर की प्रमुख अरब देशों द्वारा घेरेबंदी पूर्व-नियोजित है.मई की 28 तारीख को रियाद में अमरीकी राष्ट्रपति के साथ खड़ी देशों के नेताओं की महत्वपूर्ण बैठक में कतर आमंत्रित तो था, लेकिन उसके तुरंत बाद कतर की सरकारी न्यूज एजेंसी पर ईरान समर्थक खबरें छपने से खाड़ी देशों ने कतर पर खाड़ी की सुरक्षा को खतरे में डालने तथा ईरान और आतंकवाद के विरुद्ध अरब देशों की कथित एकता को तोड़ने का आरोप लगाया. हालांकि कतर ने ईरान समर्थक बयानों के छपने को वेबसाइट हैक करने वालों की करतूत बताया, लेकिन तब तक बात बहुत दूर निकल चुकी थी. पांच जून को राजनयिक रिश्ते खत्म करने और कई सारी पाबंदिया लगाने के बाद कतर के खिलाफ सैन्य करवाई की भी संभावनाओं पर भी बहस हो रही है.
कतर एक विशाल प्राकृतिक गैस भंडार से संपन्न एक छोटा सा देश है. कतर के अलथानी राजपरिवार ने इसे दुबई और सिंगापुर के बराबर खड़ा कर दिया है. मीडिया, निर्माण, आइटी, उड्डयन समेत सभी बड़े क्षेत्रों में कतर ने अपनी पहचान सऊदी अरब और अमीरात से अलग बना ली है. लेकिन असल समस्या इसके बाद की है.
कतर छोटा देश होने के बावजूद क्षेत्रीय राजनीति में एक बड़ी भूमिका हासिल कर ली है. इसके पीछे तीन मुख्य कूटनीतिक कदम हैं जो कतर को बाकी देशों से अलग और आगे रखते हैं. पहला ईरान है, जहां खुमैनी की क्रांति के बाद से ही सुन्नी देशों से रिश्तों में कड़वाहट शुरू हो गयी थी. सऊदी अरब समेत ज्यादातर खाड़ी देश ईरान को शक की निगाह से देखते हैं. गल्फ कोऑपरेशन कौंसिल नामक छह देशों का संगठन बुनियादी तौर पर ईरान को रोकने के लिए बना था. लेकिन कतर और ईरान के रिश्ते अलग तरह से बनते गये. ईरान, कतर और रूस दुनियाभर में गैस आपूर्ति के लिए एक दुसरे से सहयोग करते हैं.
ऐसे वक्त में जबकि ईरान पर सीरिया और ईराक में सुन्नी आबादी के दमन करने का आरोप लग रहा है, पूरे क्षेत्र में ईरानी दबदबा बढ़ रहा है. जब डोनाल्ड ट्रंप ने मई में खाड़ी देशों की चोटी कांफ्रेंस की, तो उन्होंने ईरान के खिलाफ अमरीकी सहयोग बहाल करने का वादा किया. कांफ्रेंस के ठीक दो दिन के बाद कतर के अमीर और विदेश मंत्री की तरफ से ऐसे बयानों की खबरें सरकारी एजेंसियों से आने लगीं जिसमें कतर ईरान में सुरक्षा सहयोग की बात की गयी थी. खुद कतर के अमीर का ईरान के राष्ट्रपति हसन रोहानी से फोन बातचीत का हवाला था. इस खबर पर सारे खाड़ी देशों से तीव्र प्रतिक्रिया हुई थी. कतर ने कहा कि उसकी न्यूज एजेंसी की वेबसाइट को हैक करके उसमें गलत बयान डाले गये हैं.
कतर बहुत दिनों से ही अरब देशों के इस्लामी राजनीतिक दलों से करीबी संबंध बनाये हुए है. क्योंकि अरब देशों में इस्लामी राजनीतिक दलों का बहुत भीषण दमन हुआ है, कतर में उन्हें एक सहारा नजर आता है. इस्लामी दलों का हमेशा से आरोप रहा है कि अरब देशों के राजपरिवार और सेनाएं खुफिया तौर पर इजराइल से संबंध रखती हैं और फिलीस्तीन में एक आजाद मुल्क बनने में सहयोग नहीं कर रही हैं, इसलिए फिलीस्तीन के इस्लामी दलों, खास कर हमास का कतर की तरफ आकर्षण रहा है. सीरिया में गृहयुद्ध के बाद हमास का राजनीतिक कार्यालय दमिश्क से हटाना पड़ा तो कतर ने पनाह दी. यह बात अरब देशों के सेक्युलर समूह को कभी पसंद नहीं आयी.
अरब की राजनीति पर निगाह रखनेवाले जानते हैं कि यहां मुख्य विपक्षी आवाज सेक्युलर नहीं, बल्कि इस्लामी दलों की है. ऐसे में कतर द्वारा 1999 में अलजजीरा नामक टीवी न्यूज चैनल खोला गया, तो उसने जल्द ही सभी विपक्षी आवाजों को जगह देना शुरू कर दिया. अलजजीरा सभी सरकारी मीडिया के मुकाबले में ज्यादा मुखर और जन-मानस के मन की बात कर रहा था जिसके चलते उसे बड़ी लोकप्रियता मिली. दिसंबर, 2010 में जब ट्यूनिस और काहिरा में सरकार विरोधी प्रदर्शन अचानक उभर पड़े, तो अलजजीरा अकेला चैनल था जिसने सभी प्रर्दशनों का सीधा प्रसारण किया.
वर्ष 2013 में मिस्री जनरल अब्देल फतह अलसीसी द्वारा राष्ट्रपति मोहम्मद मोर्सी के खिलाफ तख्ता पलट हुआ तो अलजजीरा ने तख्तापलट विरोधियों को खास कवरेज दिया था. कतर को छोड़ कर खाड़ी के सभी देश अलसीसी के समर्थन में थे जिसके बाद से ही मिस्र और कतर में रिश्ते तनावपूर्ण हैं.
वर्ष 2014 में सऊदी अरब, अमीरात और मिस्र द्वारा कतर से राजनयिक संबंध तोड़ लिये गये थे. समझौते के बाद अलजजीरा को मिस्र के अलसीसी विरोधी कवरेज और सऊदी विरोधी बयानों को रोकना था तथा ईरान से संबंध सीमित करने की बात थी.
सीरिया में सऊदी अरब और कतर द्वारा असद विरोधियों को
सैन्य सहायता दिये जाने के बाद भी असद मजबूती से टिके हुए
हैं. अलेप्पो जैसा शहर भी असद विरोधी विपक्षी गुटों के हाथ से निकल चुका है. सऊदी अरब इन सब के पीछे ईरान का हाथ देखता है. वहीं यमन में सऊदी अरब का टकराव ईरान-समर्थित हुथी विद्रोहियों से है.
बहरीन में सुन्नी शासक के खिलाफ शिया आबादी का विरोध भी ईरान से जोड़ कर देखा जाता है. ऐसे में सऊदी अरब ने अमरीकी राष्ट्रपति के साथ सभी अरब देशों का सम्मलेन कर अमरीकी सैन्य सहयोग सुनिश्चित किया है.
इस पृष्ठभूमि में यह बात भी दिलचस्प है कि संयुक्त अरब अमीरात सऊदी अरब की मर्जी के खिलाफ यमन में अपना अलग देश बनाने की तैयारी कर रहा है. लीबिया में मिस्र की मदद से अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त सरकार को तोड़ने के लिए जनरल हफ्तार को हथियार दिये जा रहे हैं.
अमीरात और मिस्र के क्षेत्रीय वर्चस्व के खेल में इस्लामी दलों का और कतर का विरोध लगातार बढ़ रहा है. वर्ष 2015 में जब शाह सलमान सऊदी राजा बने, तो उन्होंने मिस्र और अमीरात से करीबी सभी मुख्य अधिकारियों को हटा दिया था. इससे मुस्लिम ब्रदरहुड और हमास को शाह सलमान के साथ मिस्र में समझौता होने की उम्मीद बढ़ी थी. जिसके चलते अलसीसी ने भी गत वर्ष कई सऊदी विरोधी कदम उठा कर अपनी नाराजगी जताने का कोई मौका नहीं छोड़ा है. यमन में सऊदी अरब को मिस्र से कोई खास मदद नहीं मिली है. हाल में मिस्र ने बशर अल असद से संपर्क स्थापित किया है, बल्कि ईरान से भी रिश्ते बनाये हैं. और मिस्र की कूटनीति में अरब अमीरात का पूरा सहयोग है.
फिलहाल कतर के अमीर की सत्ता तो खतरे में नहीं है, लेकिन जब वे इस संकट से निकल जायेंगे तो एक ऐसी नीति की तरफ सोंचेंगे जिसमें क्षेत्रीय देश कतर पर इतना दबाव न बना पायें. यहां तक की हवाई और जमीनी रास्तों और और खाद्य सामग्री की आपूर्ति भी प्रभावित हो गयी है. कतर इस दुःस्वप्न से निकलने के लिए कोई भी भारी कीमत देने को तैयार हो सकता है, लेकिन कीमत देने से हृदय परिवर्तन होगा, यह संभव नहीं है. इस संकट के बाद क्षेत्र में एक नये सुरक्षा ढांचे की पहल हो सकती है.
खाड़ी में तनातनी
राजनयिक दरार उत्पन्न होने के कारण
इस आग के भड़कने का कारण कतर की राज्य-संचालित एक समाचार एजेंसी द्वारा वहां के शासक शेख तमीम बिन हमद अलथानी की ईरान विरोधी भावनाओं की आलोचना करने वाली टिप्पणियां थीं. कतर के अधिकारियों ने तुरंत इस टिप्पणी को हटाया, हैकरों पर इसका दोष मढ़ा और लोगों से शांति की अपील की.
क्या यह सुन्नी-शिया के बीच तनाव का मामला है
कुछ हद तक ऐसा कह सकते हैं. शिया नेतृत्व वाला इस्लामी गणराज्य ईरान, सुन्नी नेतृत्व वाला सऊदी अरब का मुख्य क्षेत्रीय
प्रतिद्वंद्वी है.
अब क्यों हो रहा है विवाद
डोनाल्ड ट्रंप की सऊदी यात्रा के बाद यहां के माहौल में काफी सरगर्मी व्याप्त है. जिस दिन ट्रंप और सउदी बादशाह सलमान बिन अब्दुल अजीज ने आतंकवाद का प्रायोजक मानते हुए ईरान को अलग-थलग किया, उसके अगले ही दिन सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात ने ईरान से पृथक होने के प्रयासों को कमजोर करने के लिए कतर को दोषी ठहराया.
क्या कहते हैं विश्लेषक
अमेरिका के साथ करीबी संबंध होने से उत्साहित सऊदी और संयुक्त अरब अमीरात पश्चिम एशिया में ईरानी प्रभाव के खिलाफ संयुक्त मोर्चे को कमजोर करने वाले किसी भी विरोधी को कुचलने का प्रयास कर सकते हैं.
क्या कतर के साथ इस असहमति में कुछ नया है
कतर हमास के निर्वासित नेतृत्व के साथ-साथ तालिबानी अधिकारियों को अपना मेहमान बनाता है. विश्लेषकों का इस संबंध में कहना है कि सऊदी अरब और उसके सहयोगी कतर की कूटनीति पर दबाव बनाना चाहते हैं.
बाजार पर इसका प्रभाव क्या होगा
इस क्षेत्र में किसी भी तरह का विवाद तेल बाजार को कमजोर करेगा. खाड़ी देशों के बीच का आंतरिक विवाद विदेशी निवेशकों के आकर्षण को सीमित कर देगा.
खाड़ी-संकट पर दुनिया की प्रतिक्रिया
खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी) के तीन देशों- सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन- द्वारा मिस्र के साथ कतर से कूटनीतिक संबंध तोड़ने की घटना ने अरब की राजनीति को अजीब मोड़ पर ला खड़ा कर दिया है. कतरी विदेश मंत्रालय ने इस कार्रवाई को ‘अनुचित निर्णय’ करार दिया है. अमेरिकी विदेश सचिव रेक्स टिलरसन ने खाड़ी देशों से अपने मतभेद सुलझाने का निवेदन किया है. इन सभी देशों के साथ अमेरिका के गहरे आर्थिक और राजनीतिक संबंध है. उसका इस क्षेत्र में सबसे बड़ा सैन्य ठिकाना कतर में ही है. टिलरसन ने कहा है कि ‘खाड़ी देशों का एकजुट रहना बहुत महत्वपूर्ण है.’ उन्हें उम्मीद है कि आतंक के खिलाफ चल रहे संयुक्त संघर्ष पर मौजूदा मतभेदों का असन नहीं होगा. पिछले दिनों अरब-इस्लामिक-अमेरिकी शिखर सम्मेलन में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान को आतंकवाद को आर्थिक मदद देनेवाला सबसे बड़ा देश बताया था. उस बयान के हवाले से टिलरसन ने कहा है कि खाड़ी देश आतंक और इस्लामिक स्टेट के विरुद्ध लड़ाई में मिल जुल कर हिस्सा लेते रहे हैं.
ईरान ने बयान दिया है कि खाड़ी के मौजूदा संकट से जुड़े देशों को एक-दूसरे की संप्रभुता का आदर करना चाहिए और बातचीत से आगे का रास्ता निकालने की कोशिश करनी चाहिए. विदेश मंत्री मोहम्मद जावेद जरीफ ने कहा है कि रमजान के इस पवित्र महीने में बातचीत जरूरी है. रिपोर्टों के अनुसार, जरीफ ने कतर के साथ-साथ अलजीरिया, इंडोनेशिया, इराक, लेबनान, मलेशिया, ओमान, ट्यूनिशिया और तुर्की के विदेश मंत्रियों से ताजा घटनाक्रम पर बातचीत की है.
इजरायले के रक्षा मंत्री एविग्डोर लिबरमैन ने कहा है कि खाड़ी में इस विभाजन से निःसंदेह आतंक के विरुद्ध संघर्ष में सहयोग की संभावनाएं बेहतर हुई हैं क्योंकि यह सूचक है कि अरब राज्य भी समझते हैं कि खतरा जायोनिज्म नहीं, बल्कि आतंकवाद है. तुर्की के विदेश मंत्री मेवलुत कावुसोग्लू ने भी अफसोस जताते हुए संवाद के जरिये समाधान निकालने की वकालत की है. उन्होंने कहा कि तुर्की खाड़ी क्षेत्र में स्थायित्व को अपनी एकता और समर्थन मानता है.
रूसी सरकार के प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोव ने आशा व्यक्त की है कि कूटनीतिक तनाव से आतंक के विरुद्ध लड़ाई पर नकारात्मक असर नहीं होगा. भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने कहा है कि कतर के खिलाफ की गयी कार्रवाई का दोनों देशों के आपसी संबंधों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा.
उन्होंने इसे उन देशों का आपसी मामला बताया है. पाकिस्तान ने भी स्पष्ट किया है कि कतर से कूटनीतिक संबंध तोड़ने का उसका कोई इरादा नहीं है. वर्ष 2022 के फुटबॉल विश्व कप का आयोजन कतर में होना है. अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल संगठन फीफा के अधिकारियों ने बताया है कि वे तैयारियों को लेकर लगातार कतर के संपर्क में हैं.

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