कमजोर जड़ों पर मजबूत नहीं होगी शिक्षा

टिप्पणी : शिक्षा के स्तर और सोच में बुनियादी सुधार की जरूरत डॉ रुक्मिणी बनर्जी सीइओ, प्रथम हर वर्ष असर की रिपोर्ट के माध्यम से हम देश में पहली से आठवीं कक्षा तक के बच्चों की बुनियादी दक्षताओं का आंकलन करते हैं. असर की रिपोर्ट को देखेंगे, तो उससे स्पष्ट है कि हमारी जड़ें ही […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 7, 2017 6:46 AM
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टिप्पणी : शिक्षा के स्तर और सोच में बुनियादी सुधार की जरूरत
डॉ रुक्मिणी बनर्जी
सीइओ, प्रथम
हर वर्ष असर की रिपोर्ट के माध्यम से हम देश में पहली से आठवीं कक्षा तक के बच्चों की बुनियादी दक्षताओं का आंकलन करते हैं. असर की रिपोर्ट को देखेंगे, तो उससे स्पष्ट है कि हमारी जड़ें ही कमजोर हैं. देखा गया है कि बच्चे आठवीं कक्षा तक पहुंच जाते हैं, लेकिन उन्हें बुनियादी ज्ञान नहीं होता. जाहिर है कि कमजोर नींव पर खड़ी गयी इमारत कमजोर होगी. हर साल परीक्षा परिणाम आने पर बहुत सारी चर्चाएं शुरू हो जाती हैं. जरूरत है कि समाज के हर तबके से आनेवाले बच्चों की स्थिति को पूरे साल परखा जाये. अगर परिस्थितियों में बदलाव लाना है, तो प्राथमिक कक्षाओं से ही बुनियादी चीजों पर ध्यान देना होगा.
शिक्षा की स्थिति को लेकर मीडिया में कई तरह की बातें आ रही हैं. पहले के बारे में ज्यादा कुछ नहीं कहा जा सकता है, लेकिन जिस प्रकार से परीक्षा परिणाम आ रहे हैं, उनसे लगता है कि कुछ बदलाव के प्रयास किये जा रहे हैं. बच्चे कहां से आ रहे हैं और उनकी क्या तैयारी है? पांचवीं या आठवीं में पहुंचते हैं, तो कितना तैयार होते हैं? इन बातों पर भी गौर करने की जरूरत है. दसवीं में आकर कौन पास हुआ और कौन फेल हुआ, इस पर विस्तार से जाने से पहले प्राथमिक स्तर पर स्थितियों का आकलन करना चाहिए. अगर हम असर की रिपोर्ट देखें, तो पूरे देश में शिक्षा में हर साल गिरावट दिख रही है.
बच्चों को जब प्राथमिक स्तर पर पढ़ने में दिक्कत होती है, तब उनके ऊपर की कक्षा में पहुंच जाने से समस्या का और बढ़ना स्वाभाविक ही है. बच्चे शुरू से ही पढ़ना सीखें, इस बात पर विशेष रूप से फोकस करने की जरूरत है. हम केवल किताबों से पढ़ाना पसंद करते हैं. बच्चे ने क्या सीखा, क्या नहीं, यह नहीं देखा जाता है.
परीक्षा पास करने के लिए लोग क्या-क्या जतन करेंगे, इस चुनौती से निपटने के लिए बुनियादी तौर पर शिक्षा में सुधार की जरूरत है. असर या सरकार के आंकड़े दिखाते है कि हमारी जड़ें ही कमजोर हैं.
शिक्षा व्यवस्था की जड़ों को मजबूत करने के लिए बड़े प्रयास की जरूरत है. यह प्रयास निचली कक्षाओं से ही शुरू कर देना चाहिए. इसकी जिम्मेवारी अभिभावकों, शिक्षा व्यवस्था और समाज सबकी है. बिहार-झारखंड में ज्यादातर बच्चों के माता-पिता ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं होते हैं. एेसे में वे बच्चों को स्कूल तो भेजते हैं, लेकिन बच्चों का शैक्षिक विकास किस तरह से हो रहा है, यह जानने की क्षमता उनमें नहीं होती है.
इसके लिए बुनियादी तौर पर मजबूत होने की जरूरत है, जिससे बच्चे ऊंची कक्षाओं के लिए तैयार हो सकें.
आठवीं तक बच्चों के लिए अनिवार्य शिक्षा का कानून है. उसके लिए बच्चों को हम कितना तैयार कर रहे हैं, यह भी देखना जरूरी है. अगर बच्चा आठवीं पास कर जाता है, तो बच्चा आगे 10वीं में बैठेगा ही. बच्चे को लगता है, वह आठवीं तो पास कर गया है, लेकिन क्या वह आठवीं के स्तर तक शिक्षा वास्तव में हासिल किया? यह देखने और इसके लिए प्रयास करने की जरूरत है.
मुझे लगता है कि यहां दो-तीन ठोस कदम उठाने की जरूरत है. तीसरी कक्षा तक बच्चे को एक-दो पैराग्राफ पढ़ना और बेसिक गणित आ जाना चाहिए. अगर ऐसा नहीं हो पाता है, तो पाठ्य पुस्तक को हटा कर इन बुनियादी क्षमताओं को बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए. उसी तरह पांचवीं कक्षा तक बच्चा क्या सीखा रहा है, उसका मूल्यांकन होना चाहिए. अगर ऐसा नहीं कर पाते हैं, तो स्कूल में बच्चों को पाठ्य पुस्तक रटा देने का कोई फायदा नहीं है. हमारे बच्चों में काबिलियत में कमी नहीं है, दिक्कत उनकी तैयारी में है. उनको तैयार किया जाये, इसके लिए यह तय करना होगा कि छठीं में ऐसा कोई बच्चा नहीं जायेगा, जिसके पास मूलभूत जानकारियां नहीं हैं.
शिक्षकों की क्षमताओं को बेहतर बनाने के लिए सरकार को प्रशिक्षण की व्यवस्था करनी चाहिए. हम बिहार-झारखंड के प्राथमिक शिक्षकों के साथ काम करते हैं. वहां पर हमने देखा है कि अगर कोई कार्यक्रम समुचित तरीके से शुरू किया जाता है, लोग उसमें अपनी सक्रिय भागीदारी निभाते हैं.
कार्यक्रमों के साथ-साथ उसका एक निर्धारित लक्ष्य होना चाहिए. कार्यक्रम को शुरू करने के साथ लोगों को साथ लेकर सालों-साल ऐसा शिक्षण-प्रशिक्षण जारी रखने की जरूरत है, तभी हम बेहतर परिणाम हासिल कर सकेंगे. शिक्षकों को बता दिया जाता है कि वह पाठ्यक्रम खत्म करें, इसी वजह से पाठ्यक्रम को खत्म करने पर उनका ध्यान तो होता है, लेकिन, बच्चे कितना सीख रहे हैं, यह बात नजरअंदाज कर दी जाती है.
(बातचीत : ब्रह्मानंद मिश्र)
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