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मुमकिन होगा मृत्यु का पूर्वानुमान!

मृत्यु का पुर्वानुमान लगाने के लिए शोधकर्ता लंबे अरसे से प्रयासरत हैं. हालांकि, असामयिक दुर्घटनाओं के कारण ऐसा अनुमान लगा पाना संभव नहीं हो सकता, लेकिन इस दिशा में प्रयास जारी है, ताकि संभावित बीमारियों के बारे में कम-से-कम पांच वर्ष पूर्व अनुमान लगाया जा सके. शोधकर्ता इसके लिए शरीर के अंगों की सीटी इमेजेज […]

मृत्यु का पुर्वानुमान लगाने के लिए शोधकर्ता लंबे अरसे से प्रयासरत हैं. हालांकि, असामयिक दुर्घटनाओं के कारण ऐसा अनुमान लगा पाना संभव नहीं हो सकता, लेकिन इस दिशा में प्रयास जारी है, ताकि संभावित बीमारियों के बारे में कम-से-कम पांच वर्ष पूर्व अनुमान लगाया जा सके.
शोधकर्ता इसके लिए शरीर के अंगों की सीटी इमेजेज का ज्यादा बारीकी से विश्लेषण करने में जुटे हैं. दूसरी ओर, चिकित्सा जगत में रोबोट की बढ़ती भूमिका के बीच अब शोधकार्यों में भी उनका सहयोग लिया जा रहा है. इससे भविष्य में बीमारियों की पहचान और उनका इलाज ज्यादा आसानी से होने की उम्मीद बढ़ी है. कैसे लगाया जायेगा पांच वर्ष पूर्व बीमारियों का अनुमान और चिकित्सा क्षेत्र में रोबोट की अहमियत को रेखांकित कर रहा है आज का मेडिकल हेल्थ पेज …
चिकित्सा क्षेत्र में कार्यरत शोधकर्ता ऐसे सिस्टम को विकसित करने में जुटे हैं, ताकि इनसान की मृत्यु के बारे में करीब पांच वर्ष पहले ही अनुमान लगा पाना मुमकिन हो सके. प्रसिद्ध पत्रिका ‘साइंटिफिक’ की एक रिपोर्ट के हवाले से ‘मेडिकल न्यूज टुडे’ में इस बारे में जानकारी दी गयी है.
इस रिपोर्ट के मुताबिक, शोधकर्ताओं ने मरीज के अंगों की सीटी इमेजेज का कंप्यूटर के जरिये विश्लेषण करते हुए इस प्रयोग को अंजाम दिया है. उनका दावा है कि इनसान की मृत्यु के बारे में पांच वर्ष पूर्व 70 फीसदी तक सटीक अनुमान लगाया जा सकता है.
ऑस्ट्रेलिया में यूनिवर्सिटी ऑफ एडिलेड के स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के विशेषज्ञ और इस शोध अध्ययन के मुख्य लेखक डॉक्टर ओकडेन-रेनर और उनके सहयोगियों का मानना है कि उनके द्वारा जाने गये इस नये तथ्य से प्रेसीशन मेडिसिन यानी दवाओं के असर की सुनिश्चितता को तय करने के के मामले में ज्यादा सुधार आ सकता है.
नेशनल इंस्टिट्यूट आॅफ हेल्थ ने प्रेसीशन मेडिसिन की व्याख्या की है- ‘बीमारी के इलाज और रोकथाम के लिए उभरता हुआ एक ऐसा दृष्टिकोण, जिसके तहत प्रत्येक व्यक्ति में व्यक्तिगत रूप से मौजूद जीन्स और उसके रहन-सहन के पर्यावरण संबंधी दशाओं व लाइफ-स्टाइल की विविधताओं का मूल्यांकन करना.’
बायोमार्कर्स की तलाश से बढ़ेगा भरोसा
शोध अध्ययन के मुताबिक, प्रेसीशन मेडिसिन बायोमार्कर्स की तलाश पर भरोसा करता है, जो किसी बीमारी के जोखिम, उपचार के दौरान हाेने वाली प्रतिक्रिया या रोग के निदान के बारे में सटीक सूचक होते हैं. उनका मानना है कि रेडियोलॉजी की इस क्षेत्र में बड़ी भूमिका है.
डॉक्टर ओकडेन-रेनर कहते हैं, ‘मेरा मानना है कि रूटीन रेडियोलाॅजिकल परीक्षणों से हासिल हुए इमेजेज से समुचित नतीजे हासिल करने की प्रक्रिया में प्रेसीशन मेडिसिन की प्रासंगिकता की अनदेखी की जाती है और रेडियोलॉजिकल इमेजेज पर अप्लाइ की जाने वाली पावरफुल नयी मशीन-लर्निंग तकनीक के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जाता है, जो हमारे लिए उपयोगी बायोमार्कर की खोज का आधार होते हैं.’
ओकडेन कहते हैं, ‘मेडिकल इमेज विश्लेषण के क्षेत्र में हालिया सुधारों में यह दर्शाया गया है कि मशीन से पहचानी जा सकनेवाली इमेज की खासियतों को बायोप्सी, माइक्रोस्कोपी और यहां तक कि डीएनए विश्लेषण के लिए कई पैथोलॉजिस्ट्स के पास भेज कर उससे व्यापक सूचनाएं हासिल की जा सकती हैं.’
70 फीसदी एक्युरेसी के साथ मरीज की मृत्यु का पूर्वानुमान
डॉक्टर ओकडेन-रेनर और उनके सहयोगियों द्वारा विकसित तरीके को जांचने के लिए इंफोर्मेशन इन कंप्यूटेड टोमोग्राफी स्कैन्स के जरिये कंप्यूटर को इसे ‘सीखने’ लायक बनाया जा सकेगा, ताकि किसी मरीज की मृत्यु का अनुमान पांच वर्ष पूर्व लगाया जा सके.
इस शोध अध्ययन को अंजाम देने के लिए शोधकर्ताओं ने 60 वर्ष और उससे ज्यादा उम्र के मरीजों के हार्ट व लंग टिस्सू समेत सात विविध टिस्सू के 15,000 से ज्यादा सीटी इमेजेज को एकत्रित किया. लॉजिस्टिक रिग्रेशन तकनीक का इस्तेमाल करते हुए शोधकर्ताओं ने ऐसी खासियतों से भरपूर अनेक इमेज की पहचान की, जिनका संबंध पांच वर्ष में मृत्यु होने से जुड़ा पाया गया.
इसके बाद, हासिल किये गये आंकड़ों को ‘डीप लर्निंग’ तकनीक से जोड़ा गया. डॉक्टर ओकडेन-रेनर का कहना है कि यही वह मैथॉड है, जिसके जरिये कंप्यूटर यह सीख और समझ सकते हैं कि इन इमेजेज का विश्लेषण कैसे करना है और अपेक्षित सूचनाएं कैसे हासिल करनी है.
वे कहते हैं, ‘रोग के निदान पर फोकस करने के बजाय यह ऑटोमेटेड सिस्टम एक तरीके से मेडिकल नतीजों का अनुमान लगा सकता है, जिस संबंध में डॉक्टरों को प्रशिक्षण मुहैया कराने की जरूरत है. दरअसल, इन परीक्षणों के दौरान व्यापक तादाद में आंकड़े निकल कर सामने आते हैं, जिनका विश्लेषण इच्छित नतीजों को जानने के लिए किया जासकता है. शोधकर्ताओं ने 60 वर्ष से अधिक उम्र के 48 मरीजों की सीटी चेस्ट इमेजेज का कंप्यूटर के जरिये विश्लेषण किया. इस दौरान उन्होंने पांच वर्ष पूर्व 69 फीसदी तक सटीक रूप से मुत्यु का पूर्वानुमान लगाने में कामयाबी हासिल की, जो हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स द्वारा लगाये गये संबंधित अनुमान के मुकाबले कहीं अधिक है.
उल्लेखनीय सुधार की उम्मीद
फिलहाल यह नतीजे भले ही कम तादाद में किये गये परीक्षण के जरिये प्राप्त किये गये हों, लेकिन शोधकर्ताओं ने उम्मीद जतायी है कि भविष्य में कंप्यूटर इस लिहाज से ज्यादा सक्षम हो सकते हैं और किसी बीमारी के जोखिम के तौर पर शरीर में उभर रहे जटिल इमेज की पहचान कर सकते हैं, जिसे व्यापक प्रशिक्षण प्राप्त डॉक्टर इच्छित नतीजे प्राप्त कर सकते हैं.
इस परीक्षण के अगले चरण के तहत ये शोधकर्ता हजारों मरीजों के सीटी इमेजेज का विश्लेषण करने के लिए कंप्यूटर तकनीक का इस्तेमाल करेंगे. उम्मीद जतायी जा रही है कि सीटी इमेजेज के कॉन्सेप्ट के बेहतर नतीजे मुहैया कराने की दशा में आने वाले समय में प्रेसीशन मेडिसिन में उल्लेखनीय रूप से सुधार आ सकता है.
शोधकार्यों में मदद कर रहे रोबोट
चिकित्सा जगत में आधुनिक तकनीकों के इस्तेमाल के बीच धीरे-धीरे रोबोट का पदार्पण हो चुका है. हालांकि, ऐसा एकदम से नहीं हुआ है, लिहाजा इसने ध्यान आकृष्ट नहीं किया, लेकिन मौजूदा समय में अग्रणी बायोसाइंस प्रयोगशालाओं में रोबोट का वर्चस्व कायम हो चुका है. इनकी मदद से महीनों या दिनों लगनेवाले कार्यों को महज कुछ घंटों में निबटाया जा रहा है.
‘मेडिकल न्यूज टूडे’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, नैनोटेक्नोलॉजीज, बायोमेडिक्स और एडवांस्ड एलगोरिथम के जरिये ऑटोमेशन को बढ़ावा देते हुए चिकित्सा जगत काफी पहले से ही शोधकार्यों में रोबोट का इस्तेमाल कर रहा है.
यूनाइटेड किंगडम की यूनिवर्सिटी ऑफ मैनचेस्टर के प्रोफेसर ऑफ मशीन इंटेलिजेंस रॉस किंग ने ‘रोबोट साइंटिस्ट्स : ऑटोमेशन बायोलॉजी एंड केमिस्ट्री’ नामक अपने रिसर्च पेपर में आज से एक दशक पूर्व ही इस बारे में अनुमान व्यक्ति किया था.
रोबोट साइंटिस्ट : एडम और इव
लंदन में ब्रुनेल यूनिवर्सिटी में रहते हुए कुछ वर्षों पूर्व प्रोफेसर किंग ने दो रोबोट साइंटिस्ट का निर्माण करते हुए उन्हें एडम और इव नाम दिया था. लेबोरेटरी में ऑटोमेशन उपकरणों के इस्तेमाल से यह दोनों रोबोट साइंटिस्ट अनेक प्रकार के परीक्षण कार्यों और विविध नतीजों का विश्लेषण करने में सक्षम रहे. इनमें से आदम को यीस्ट के फंक्शनल जीनोमिक्स की जांच करने के लिए विकसित किया गया था और यह रोबोट स्वायत्त तरीके से उन खास जीन्स की पहचान करने में सक्षम रहा था, जो यीस्ट में अनाथ एंजाइम्स के रूप में मौजूद थे.
जर्मनी के मेगडेबर्ग में फ्रॉनहॉफर इंस्टीट्यूट फॉर फैक्ट्री ऑपरेशन एंड ऑटोमेशन में एडम और इव जैसे या इनसे भी ज्यादा एडवांस्ड एनालिटिकल रोबोट विकसित किये जा रहे हैं. हालांकि, यहां की प्रयोगशाला को इस मामले में उन्नत माना जाता है, क्योंकि करीब तीन दशक पहले ही यहां इनका परीक्षण किया जा चुका है.
मेडिकल रिसर्च लैबोरेटरी में रोबोट
मेडिकल रिसर्च लैबोरेटरी में इन रोबोट की भूमिकाकितनी अहम होती जा रही है, इसे इस तथ्य से समझा जा सकता है कि ऐसे कार्यस्थल अधिकांश तौर पर मशीनीकृत होते हैं और इनका नियंत्रण कंप्यूटर के जरिये किया जाता है. प्रयोगशाला में रोबोटिक्स के प्रमुख कार्य इस प्रकार हैं :
लिक्विड हैंडलिंग : प्रयोगशाला में रोबोटिक्स के लिए यह सर्वाधिक मुख्य कार्य है. इनसानी शोधकर्ताओं के लिए यह कार्य कुछ हद तक मुश्किल समझा जाता है. ऐसे में रोबोटिक्स से यह काम थोड़ा आसान हो रहा है.
माइक्रोप्लेट हैंडलिंग : प्रयोगशाला में जरूरी चीजों को सभी उपकरणों से जुगारने के लिए इस रोबोट का इस्तेमाल किया जाता है. एडवांस माइक्रोप्लेट रोबोट एक सुनियोजित कार्य संरचना तैयार करने के लिए थर्ड-पार्टी इंस्ट्रूमेंट को एकीकृत करते हैं, ताकि स्वायत्त रूप से चल रहे कार्य में किसी भी स्तर पर काेई व्यवधान पैदा नहीं हो.
ऑटोमेटेड बायोलॉजिकल रिसर्च सिस्टम : ये रोबोट बायोलॉजिकल और बायोकेमिकल रिसर्च के विविध आयामों के लिए संबंधित चीजों को ऑटोमेटिक तरीके से नियंत्रित करते हैं. इसमें सेल कल्चर डेवलपमेंट, विविध तत्वों के निर्माण और उनकी साफ-सफाई जैसी खास मोलेकुलर बायोलॉजी संबंधी चीजें शामिल होती हैं.
ड्रग डिस्कवरी स्क्रिनिंग : मुख्यधारा के ज्यादातर आधुनिक रोबाटिक्स एप्लीकेशन के जरिये शोधकर्ताओं को कोशिकाओं और इंजाइम पर आधारित व्यापक चीजों की पड़ताल का मौका मुहैया कराती है. इससे संबंधित बीमारियों के लिए सटीक दवाएं बनाने में मदद मिलती है.

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