जन्म से थी ऐसी बीमारी कि ट्रेन में रख दिया बम, कोर्ट ने नहीं माना आतंकी

यह घटना 20 अक्तूबर, 2016 की है. 19 साल का डेमोन स्मिथ लंदन के जुबली लाइन ट्रेन में एक बैग पैक रख देता है. एक पैसेंजर की नजर उस पर पड़ती है. वह ट्रेन के ड्राइव को इसकी सूचना देता है. बैग पैक को देख कर ड्राइवर को लगता है कि किसी का सामान गलती […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 11, 2017 8:04 AM
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यह घटना 20 अक्तूबर, 2016 की है. 19 साल का डेमोन स्मिथ लंदन के जुबली लाइन ट्रेन में एक बैग पैक रख देता है. एक पैसेंजर की नजर उस पर पड़ती है. वह ट्रेन के ड्राइव को इसकी सूचना देता है. बैग पैक को देख कर ड्राइवर को लगता है कि किसी का सामान गलती से छूट गया है. वह उसे अपने केबिन में ले जाता है. लेकिन, कुछ दूर चलने के बाद ड्राइवर ने उस बैग को खोल कर देखा तो डर गया. उसमें बम था. अगले स्टेशन पर पहुंचने से पहले ट्रेन को खाली करा लिया गया. डेमोन ने ट्रेन में इस बैग को रखते समय अपना चेहरा नहीं ढका था और उसने अपने ही डिसएबल्ड पर्सन रेलरोड कार्ड का इस्तेमाल किया था. अगले ही दिन पुलिस उसे गिरफ्तार करने में कामयाब हो गयी. जब पुलिस ने उसके घर की तलाशी ली तो उन्हें वहां आतंकियों की तसवीर मिली.
इसमें वर्ष 2015 में पेरिस हमलों के सूत्रधारों की तसवीर भी थी. पुलिस को उसके आइ पैड पर बम बनाने के सामान का लिस्ट भी मिला. जिस बम को डेमोन ने बैग पैक में रखकर ट्रेन में छोड़ा था, उसे उसने अल कायदा के ऑनलाइन मैगजीन की मदद से बनाया था. उसमें एक आर्टिकल था – हाउ टू बिल्ड बॉम्ब इन योर मॉम्स किचेन. जज के सामने जब डेमोन को पेश किया गया तब उन्होंने कहा – लोग भाग्यशाली थे कि बम के टाइमर ने काम नहीं किया. अगर टाइमर काम कर गया होता तो कितने लोग मारे जाते और कितने घायल हो, इस समय इसकी कल्पना करना मुश्किल है.
तीन मई, 2017 को डेमोन को घर में बने बम को ट्रेन में रखने का दोषी पाया जाता है. 26 मई, शुक्रवार को डेमोन को सजा सुनायी गयी. मैनचेस्टर में एरियाना ग्रैंड के कार्यक्रम के बाद हुए आतंकी हमले के ठीक चार दिन बाद. सजा सुनाये जाने से पहले कोर्ट के बाहर डेमोन की मां एंटोनित्जा बेटे का इंतजार कर रही थी. वह अपने बेटे के भविष्य को लेकर चिंतित थी. उनके वकीलों ने पहले ही बता दिया था कि कोई चमत्कार ही डेमोन को दस साल से कम की सजा दिलवा सकता है. वह वहां खड़े एक सहयोगी से कह रही थीं – उसे जेल नहीं मदद की जरूरत है. इसके बाद वह अतीत में खो जाती है. डेमोन जब नौ साल का था, तभी पता चला था कि वह एस्परजर सिंड्रोम नाम की बीमारी से पीड़ित है. उस समय मां-बेटे इंगलैंड के छोटे से शहर में रहते थे. तब डेमन को इलाज में सरकार की तरफ से मदद मिलती थी. उसके 18 साल का होने के बाद से सरकार की तरफ से मदद बंद हो गयी. मां का मानना है कि जब उसे सबसे अधिक मदद की जरूरत पड़ी उसी समय वह बंद हो गयी.
छोटी उम्र से ही डेमोन कम्प्यूटर का दीवाना हो गया था. घंटों स्क्रीन पर आंख गड़ाये बैठे रहता. कम उम्र में ही हथियारों की तरफ भी उसका आकर्षण बढ़ा था. सात साल की उम्र में उसने पहली बार बम बनाने की कोशिश की थी. उसके पास एक सेल्फ लोडिंग पिस्टल था. डेमन ने अपने मस्टंग नाइफ के साथ यू – ट्यूब पर एक वीडियो भी अपलोड किया था.
डेमोन की आवाज आम बच्चों की तरह नहीं थी. इस वजह से उसके दोस्त न के बराबर हैं, लेकिन पढ़ने में वह शुरू से तेज रहा है. सेकेंडरी स्कूल में उसे अच्छे अंक आये थे. कोर्ट के बाहर खड़ी मां को अफसोस हो रहा है कि उन्होंने अपने बेटे को पढ़ने ही क्यो दिया.
पिछले ही वर्ष उसका नामांकन लंदन मेट्रोपोलिस यूनिवर्सिटी में हुआ था और मां-बेटा लंदन में रहने आ गये थे. लंदन आने के कुछ हफ्ते बाद ही डेमोन को ट्रेन में बम रखने के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया गया था. मां को अभी भी विश्वास नहीं हो रहा है कि उनका बेटा किसी को नुकसान पहुंचा सकता है. वह कहती हैं- डेमोन नादान है. वह तो चींटी को भी नुकसान नहीं पहुंचा सकता है. जब पहली बार मैं उससे मिलने गयी थी तब उसने कहा था – मां वह तो सिर्फ एक मजाक था.
तभी कोर्ट की तरफ से अनाउंसमेंट होता है और सभी अदालत में पहुंच जाते हैं. अभियोजन पक्ष के वकील जोनाथन रीस कोर्ट से कहते हैं – डेमोन की बीमारी को देखते हुए वह कोर्ट से उसके लिए उम्र कैद की सजा नहीं मांगेगे. उसे 15-25 साल तक कैद की सजा सुनाने का आग्रह करेंगे. डिफेंस के वकील ने अपनी बात रखते हुए कोर्ट से कहा – मैने डेमोन से पूछा था कि क्या वह फिर से बम रखेगा. उसने कहा था कभी नहीं, लोग डर जाते हैं. इसके बाद उन्होंने कहा – मैनचेस्टर की घटना के बाद इस तरह के मामलों में आरोपी को माफ करने की बात कहना मुश्किल है. फिर भी हम ऐसा कर रहे हैं क्योंकि यह अलग तरह का मामला है. डिफेंस के वकील ने बताया कि डेमोन को जो बीमारी है, उसका इलाज संभव नहीं है. वकील ने आशंका जतायी कि जेल में उसे कट्टर बनाया जा सकता है.
जज ने जैसे ही अपना फैसला सुनाना शुरू किया डेमोन की मां का दिल धड़कने लगा. जज ने कहा कि वह इस बात से इत्तेफाक रखते हैं कि डेमोन ने किसी आतंकी घटना को अंजाम देने के इरादे से ट्रेन में बम नहीं रखा था. लेकिन, उसने ऐसा क्यों किया, समझना मुश्किल है. इसलिए, इस घटना की गंभीरता को नजरंदाज नहीं किया जा सकता है. उसे हम एक आतंकी की तरह नहीं देख रहे हैं. लेकिन, जितने मनोचिकित्सकों ने उससे बात की है, किसी ने यह नहीं कहा है कि वह इस तरह की हरकत दुबारा नहीं करेगा. जज ने डेमोन को 15 साल कैद की सजा सुनायी.
क्या है एस्परजर सिंड्रोम
यह एक तरह का डेवलपमेंट डिसऑडर है. इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को समाज में लोगों से मिलने – जुलने में परेशानी होती है. वह एक ही तरह का व्यवहार सभी से करते हैं. उनका कम्युनिकेशनल स्किल खराब होता है. दो साल की उम्र में इस बीमारी के लक्षण दिखने शुरू हो जाते हैं और उम्र भर रहते हैं. इस बीमारी की वजह का आज तक पता नहीं चल सका है.
जुबली लाइन ट्रेन में बम (घेरे में) रखकर बाहर आता डेमोन. इस दौरान वह सीसीटीवी कैमरे की नजर में आ गया. िजसके अगले ही िदन पुिलस ने सीसीटीवी फुटेज की मदद से उसे िगरफ्तार कर िलया.
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