किसी स्थापित कंपनी के मुकाबले स्टार्टअप्स को विविध मान्य नियमों के तहत संचालित होना पड़ता है. स्टार्टअप्स जब अपनी यात्रा शुरू करते हैं, तो उन्हें अनेक चुनौतियों का सामना करना होता है. इनमें एक सबसे बड़ी चुनौती मार्केटिंग की है. हालांकि, ब्रांड की मार्केटिंग के लिए अनेक जरिया अपनाया जाता है, लेकिन मौजूदा समय में प्रभावी, प्रचलित और सस्ता व आसान तरीका सोशल मीडिया का इस्तेमाल है. आज के स्टार्टअप आलेख में जानते हैं सोशल मीडिया के जरिये स्टार्टअप की मार्केटिंग को ज्यादा प्रभावी बनाने के बारे में …
चूंकि स्टार्टअप के पास उसकी अपनी ब्रांड के तौर पर कोई पहचान नहीं होती और बेहतरीन उत्पाद या सेवा मुहैया कराने के बारे में अक्सर लोगों को समझाने में बड़ी मुश्किल होती है.
ऐसे में स्टार्टअप की मार्केटिंग को प्राथमिकता देना जरूरी हो जाता है. एक ओर जहां अन्य कंपनियां जांची-परखी जा चुकी सही प्रक्रियाओं का इस्तेमाल कर सकती हैं, वहीं स्टार्टअप को कामयाब होने के लिए लीक से हट कर कुछ नया और रचनात्मक करने की जरूरत होती है, ताकि ज्यादा-से-ज्यादा लोग आकर्षित हो सकें.
अपने प्रमुख ग्राहकों को पहचानें और उन पर अपनी छाप छोड़ें
कोई भी कदम उठाने से पहले आपको इस तथ्य की पहचान करनी होगी कि अपने उत्पाद की मार्केटिंग आप कहां कर सकते हैं. करीब 42 फीसदी स्टार्टअप्स की असफलता का पहला कारण यह माना जाता है कि उसके संस्थापकों के पास बाजार की जरूरतों की समझ का अभाव रहा. यहां तक कि यदि आपके पास कोई उत्कृष्ट उत्पाद या अनोखी सेवा ही क्यों न हो, जब तक आपको यह नहीं पता चलेगा कि वे कौन लोग हो सकते हैं, जो इसका इस्तेमाल करना चाहते हैं, तब तक आपको कारोबारी कामयाबी नहीं मिलेगी. इसलिए सबसे पहले आपको उन लोगों की तलाश करनी होगी, जो इसका इस्तेमाल करना चाहते हैं या फिर आपको अपने उत्पाद या सेवा के लिए लोगों में जरूरत पैदा करनी होगी.
प्रसिद्ध तकनीकी व्यवसायी स्टीव जाॅब्स ने कहा था कि लोगों को तब तक यह नहीं पता होता कि उन्हें क्या चाहिए, जब तक आप उन्हें वह चीज मुहैया नहीं कराते हैं. उदाहरण के तौर पर, स्मार्टफोन को लोगों ने तेजी से अपनाया, जबकि पूर्व में महज कुछ ही लोगों ने यह अनुमान लगाया था कि यह चीज इतनी तेजी से इतनी अधिक लोकप्रिय हो जायेगी. फिर भी, आपको यह समझना चाहिए कि आपके प्रोडक्ट की मार्केटिंग किसके लिए की जायेगी, ताकि आप प्रासंगिक सामग्री और मार्केटिंग के लिए सामयिक अभियान चला सकें, जो वास्तव में आपके ग्राहकों के हित में होगा.
विश्लेषण के आधार पर बनाएं कामयाब योजना
अक्सर उद्यमियों को यह कहते हुए आपने सुना होगा कि शुरुआती सफलता के बावजूद कई उद्यम इसलिए विफल हो जाते हैं, क्योंकि फैले हुए और व्यापक बाजार में अपने लिए वे फायदा नहीं उठा पाते हैं. वाकई में, करीब 90 फीसदी स्टार्टअप्स को अपरिहार्य रूप से एक या अन्य कारणों से विफलता हाथ आती है, जो एक ऐसी सच्चाई है, जिससे तकरीबन सभी कारोबारियों को जूझना पड़ता है.
इसलिए पहला कदम एक कॉहेसिव यानी संयोजक योजना बनाना है. जैसा कि कोई भी उद्यमी आपको इसके बारे में बतायेगा, लेकिन इन योजनाओं में विफलता की आशंका भी छिपी होती है. कारोबार की असंतुलित प्रकृति कुछ इस तरह की होती है कि एक निर्धारित समय आने के बाद ही वह बेहतर परिणाम देना शुरू करता है और इस समय से पहले इसमें बहुत सी चीजों को झाेंकना होता है. यहां तक कि कई अध्ययनों में यह दर्शाया गया है कि चुनौतियों को सेट करना और खास लक्ष्यों को हासिल करने का संबंध कारोबार के ज्यादा प्रभावी परफॉरमेंस दर्शाने से जुड़ा हुआ है. इससे उद्यमी का मनोबल भी बढ़ता है. जब आपके पास स्पष्ट उद्देश्य हों, तो आप उन्हें हासिल करने की दिशा में धीरे-धीरे काम करते हुए आगे बढ़ते रहते हैं.
बढ़ते रहें निरंतर आगे
भले ही आप राह में कुछ चरणों में असफल हों, फिर भी अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए काम करते रहें. उद्यमिता की राह में अनेक बाधाएं आती हैं और तकरीबन सभी मोड़ पर आपको इससे जूझने के लिए तैयार रहना होता है.
एक बार जब आप सावधानी से अपनी योजना तैयार कर लेते हैं, तो आपको इस बात का विश्लेषण करने की जरूरत होती है कि आप इसे किस ओर ले जाना चाहते हैं. अपने प्रोडक्ट या सर्विस को बाजार में ले जाने से पहले आपको यह स्पष्ट रूप से पता होना चाहिए कि आपका स्टार्टअप सटीक रूप से बना क्या रहा है. इसका स्पष्ट जवाब आप तब ही दे सकते हैं, जब आप लाेगों से मिलने के लिए वास्तव में बाहरी दुनिया में अपनी मौजूदगी दर्ज करायेंगे.
(स्रोत : इंक42 डॉट कॉम)
सोशल मीडिया पर मजबूती से दर्ज करायें मौजूदगी
मौजूदा युग में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से आपके न जुड़े होने का आपके पास कोई बहाना नहीं है. ट्विटर, फेसबुक, लिंक्डइन और इस तरह के अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म आपको टारगेट ऑडियेंस यानी लक्षित ग्राहकों तक सीधे पहुंचने का मुफ्त में मौका मुहैया कराते हैं. ब्रांड को प्रोमोट करने की यह बड़ी जगह है. यहां आप अपने प्रोडक्ट या सर्विस के बारे में बता सकते हैं.
सोशल मीडिया मैनेजमेंट
जब आप पहली बार शुरू करें, सोशल मीडिया मैनेजमेंट आपको ब्रांड को प्रचारित करने में आसानी से सहयोग करेगा. आगे बढ़ने की राह में सोशल मीडिया मार्केटिंग हमेशा आपकी मदद कर सकता है. लिहाजा पहले खुद को शिक्षित करें कि सोशल मीडिया मार्केटिंग कैसे काम करती है. आप जो सोच सकते हैं वह सरल और स्पष्ट है, जो वास्तव में एक कठिन सबक हो सकता है.
परस्पर प्रभाव डालनेवाले सोशल मीडिया की मौजूदगी
सोशल होने के साथ ही परस्पर संवाद का होना भी समान महत्व रखता है. यदि आप सोशल मीडिया पर मौजूद रहेंगे, तो उपभोक्ता जरूर आपसे जुड़े रहेंगे. इस डिजिटल युग में, उपभोक्ता यह उम्मीद रखते हैं कि कंपनियां व्यक्तिगत रूप से उनके सवालाें का जवाब दें.
स्टार्टअप क्लास
लक्जरी निर्माण करनेवाले बिल्डर्स के गठजोड़ से कामयाब होगा मार्बल कारोबार
ऋचा आनंद
बिजनेस रिसर्च व एजुकेशन की जानकार
– पूर्वी भारत में भी ज्यादातर लोग अब मकान निर्माण के वक्त फर्श पर मार्बल लगाना चाहते हैं, लेकिन महंगा होने के कारण कम ही लोग ऐसा कर पाते हैं. पूर्वी भारत में आप इसका भविष्य कैसा देखते हैं. इसकी बिक्री से संबंधित व्यावहारिक पहलुओं को बताएं.
– सुधांशु शेखर, भागलपुर
मार्बल एक प्रीमियम प्रोडक्ट है, इसलिए आमतौर पर इसका प्रयोग लक्जरी या अभिरुचि वाले निर्माण में ज्यादा होता है. खूबसूरत, मजबूत और टिकाऊ होने की वजह से यह अन्य बिल्डिंग मैटेरियल के मुकाबले महंगा होता है. अपने देश में मार्बल का मार्केट अच्छा है, क्योंकि प्रोपर्टी मार्केट की विकास दर अच्छी है. लोगों की अभिरुचि और क्रयक्षमता भी बढ़ी है.
साथ ही सरकार ने गत वर्ष अपने नियमों में बदलाव लाकर मार्बल के आयात को सुविधाजनक बना दिया है. आप चूंकि पूर्वी या पूर्वोत्तर भारत में स्कोप ढूंढ रहे हैं, इसलिए कुछ बातों का ध्यान रखना होगा. साल में काफी समय ये जगहें ठंडी रहती हैं. इसलिए वातानुकूलन के बिना मार्बल का प्रयोग असुविधाजनक हो सकता है. इसके अलावा देशी और आयातित दोनों ही प्रकार के मार्बल के केंद्र यहां से दूर हैं, जिससे ट्रांसपोर्ट व स्टोरेज का खर्च बढ़ता है. कुल मिलाकर आपको उच्च वर्ग को टारगेट करना लाभकारी होगा.
मार्बल की बिक्री के लिए आपको लक्जरी निर्माण करनेवाले बिल्डर्स से संपर्क बनाना होगा, जिससे आपको डिमांड की सटीक जानकारी और बिक्री के अवसर मिल सकें. मार्बल की सोर्सिंग आप राजस्थान (देशी मार्बल) या होसुर (आयातित मार्बल) से कर सकते हैं. यहां से आपको स्पेशलिस्ट ट्रांसपोर्टर भी मिलेंगे, जो कम नुकसान में मार्बल को आपके मार्केट तक पहुंचाते हैं.
बड़े मार्केट के लिए मार्बल के साथ-साथ आप अन्य उत्पादों पर भी विचार कर सकते हैं. मध्यम वर्ग के लिए टाइल्स, फ्लोर लैमिनेट, विनायिल तथा वुडेन फ्लोरिंग अच्छे और सस्ते विकल्प हैं.
ड्राइविंग स्कूल की शुरुआत
– छोटे शहरों व कस्बों में कार की बढ़ती जरूरतों को देखते हुए ड्राइविंग स्कूल शुरू करने का कॉन्सेप्ट कैसा रहेगा? इस संबंध में अवसरों व चुनौतियों के बारे में बताएं. -दीपक कुमार, शहरगामा
बढ़ती आबादी और बढ़ती गाड़ियों की संख्या की वजह से ड्राइविंग स्कूल की जरूरत हमेशा रहेगी. अच्छे ढंग से चलाये जाने पर यह व्यवसाय काफी लाभकारी हो सकता है. इससे जुड़े कुछ पहलू और जरूरतें इस प्रकार हैं :
(क) ड्राइविंग स्कूल भारतीय मोटर व्हीकल एक्ट 1988 और सीएमवी नियम 1989 के अंतर्गत आते हैं. आपको अपने लोकल आरटीओ से संपर्क करना होगा और उनके प्रावधानों के अनुसार अपने ड्राइविंग स्कूल को पंजीकृत करना होगा.
(ख) आपके ड्राइविंग स्कूल के लिए कुशल और विश्वसनीय ड्राइवर्स की जरूरत होगी, जिन पर आपके स्कूल की सफलता निर्भर करेगी. ड्राइवर चुनते वक्त आप उनके बारे में पूरी जानकारी हासिल करें.
(ग) आजकल काफी महिलाएं ड्राइविंग सीख रही हैं. ऐसे में अगर आप उनकी सुरक्षा और सुविधा का खास खयाल रखें, तो आपके स्कूल की ख्याति बढ़ेगी.
(घ) साधारण तौर पर ड्राइविंग स्कूलों में गाड़ियों के रख-रखाव पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता और पुराने मॉडल की गाड़ियां उपयोग में लायी जाती हैं. अगर आप आधुनिक तथा अच्छी हालत वाली गाड़ियां ट्रेनिंग के लिए इस्तेमाल करें, तो इसका कारोबारी फायदा होगा. अपनी सर्विस को और रोचक बनाने के लिए आप विभिन्न पैकेज बना सकते हैं, जैसे कार, एसयूवी या ऑटोमैटिक गाड़ियों के लिए प्रशिक्षण आदि.
इनके अलावा आप प्रशिक्षण के लिए सुरक्षित और उपयुक्त मार्ग का चयन करें, ताकि हर तरह के ट्रैफिक का अनुभव दे पाएं. अपने स्कूल की ख्याति के लिए रिहायशी इलाकों में सही विज्ञापन दें.
शहरों में बच्चों के क्रेच का संभावित कारोबार
– बड़े शहरों में ज्यादातर महिलाएं कामकाजी होती हैं. ऐसे में बच्चों को पालने वाले क्रेच की संख्या बढ़ी है. इसे शुरू करने में कुछ कानूनी पहलू आदि भी हैं क्या? इसे शुरू करने के बारे में विस्तार से जानकारी दें.
क्रेच या डे-केयर सेंटर फिलहाल शॉप और एस्टैब्लिशमेंट एक्ट के अंतर्गत ही आते हैं. हालांकि अभी इसके लिए किसी लाइसेंस की जरूरत नहीं है, लेकिन इस पर विचार चल रहा है. क्रेच की जरूरत महानगरों के अलावा छोटे शहरों में भी बढ़ रही है. सरकार के नये मैटरनिटी कानून की वजह से भी अब 50 से अधिक कर्मचारियों वाली कंपनियों को यह सुविधा मुहैया करानी होगी. क्रेच चार तरीके से चलाये जाते हैं :
(क) प्री-स्कूल क्रेच : ये क्रेच किसी प्री-स्कूल से जुड़े होते हैं. इनसे अभिभावक को यह लाभ है कि बच्चे क्रेच से उसी प्री-स्कूल में आगे पढ़ने लगते हैं और उनके लिए माहौल ज्यादा नहीं बदलता.
(ख) प्रोफेशनल क्रेच : ये स्वतंत्र सेंटर होते हैं और प्रोफेशनल कर्मचारियों के देख-रेख में चलते हैं.
(ग) घरेलू क्रेच : कुछ लोग अपने घर में भी क्रेच चलाते हैं और अनुकूल व्यवस्था करते हुए इसे लघु रूप में ही केंद्रित रखते हैं.
(घ) सरकार के नियमों में बदलाव के बाद अब कंपनियों में भी क्रेच बनने लगे हैं और निजी कंपनियां इनके लिए प्रोफेशनल क्रेच चलाने वाली संस्थाओं से मदद ले रही हैं.
इस व्यवसाय को शुरू करने के लिए आप इन चीजों का ध्यान रखें :
(क) क्रेच का एक अच्छा और सरल नाम रखें और उसी नाम से शॉप और एस्टैब्लिशमेंट एक्ट में पंजीकृत कर लें.
(ख) उपरोक्त तरीकों में से सुविधानुसार तरीका चुन लें. स्वतंत्र क्रेच चलाने के लिए आपको करीब 1,500-2,000 स्क्वायर फीट के जगह की जरूरत पड़ेगी. बच्चों के मापदंड से इस जगह की स्वच्छता और सुरक्षा बनाये रखनी होगी.
(ग) बच्चों को रोचक लगने वाले विभिन्न खिलौने, खेल की सामग्री और रचनात्मक क्रिया-कलापों की व्यवस्था करें.
(घ) अपने संपर्क में कुछ अच्छे शिशु विशेषज्ञ, डायटीशियन और प्रोफेशनल इंस्ट्रक्टर भी रखें, जिनकी मदद से आप बच्चों की अच्छी देखभाल कर सकें.
कामयाबी की राह
बदलाव को स्वीकार आगे बढ़ने से होगी तरक्की
अधिकांश लोग आरंभ में जहां तक हो सके, बदलाव का विरोध करते हैं. लेकिन जब उन्हें यह महसूस होने लगता है कि अपरिहार्य रूप से यह बदलाव अब स्थायी बन रहा है, तब वे कुछ हिचकिचाते और विरोध करते हुए उसे अपनाते हैं. ज्यादातर लोग आखिरकार बदलाव को स्वीकार करते हैं और बाद में इसके लिए व्यथित भी होते हैं कि शुरुआती दौर में क्यों उन्होंने इसका विरोध किया था. मानव जाति प्राचीन काल से ही बदलाव लाने वाले चैंपियंस को पैदा करती रही है और इनसान की जीवन विकास यात्रा को पाषाण युग से अंतरिक्ष युग में ले जाने का श्रेय ऐसे ही बदलाव लाने वालों को जाता है.
इन दुनिया में मुश्किल से ऐसे पांच फीसदी लोग हैं, जो वास्तविक में इनोवेटिव, सृजनशील व हमेशा अपने आसपास की चीजों को उन्नत करने के बारे में सोचते रहते हैं. करीब 15 फीसदी लोग ऐसे होते हैं, जो उन बदलावों पर गहनता से नजर रखते हैं, जिसे पांच फीसदी लोगों ने बदलाव के रूप में अंजाम दिया है.
शेष 80 प्रतिशत लोग सुस्त किस्म के होते हैं और वास्तविक में वे चीजों के नये तरीकों से होने में गलतियां खोजते हैं. कुल मिलाकर वे बदलाव का विरोध करते हैं. इस प्रकार के 80 प्रतिशत लोग अपने रोजमर्रा के तरीकों में किसी तरह के व्यवधान के लिए तैयार नहीं होते हैं. उन्होंने अपने लिए एक कंफर्ट जोन यानी जीने की एक आसान राह तैयार कर ली होती है और उससे इतर नहीं चलना चाहते हैं. ऐसे लोग किसी भी संगठन में वैसे प्रबंधन के लिए चुनौती होते हैं, जो संगठन में किसी तरह के बदलाव की कोशिश करते हैं. सुनियोजित बदलाव की सफलता या असफलता को वे चालबाजी समझते हैं, जिसे वे प्रबंधन द्वारा थोपने की बात दर्शाते हैं.
यहां पर एक ऐसे लीडर की जरूरत होती है, जो ऐसे कर्मचारियों को बेहतर संवाद के जरिये यह समझा सके कि संगठन में किये जा रहे प्रस्तावित बदलाव आखिर किस प्रकार कर्मचारियों और संगठन के हितों के अनुरूप होगा. वास्तव में, व्यापक बातचीत और सोच में बदलाव लाते हुए एक परिवर्तनकारी लीडर को ऐसा माहौल बनाना चाहिए, जिससे कर्मचारियों में यह संदेश जाये कि संभावित बदलाव उनका अपना एजेंडा नहीं है और न ही शीर्ष प्रबंधन द्वारा इसे जबरदस्ती थोपा जा रहा है.