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डिजिटल इंडिया :राजस्थान के एक छोटे गांव के युवा की पहल, किताबों को डिजिटल बनाने को बनाये 30 एप्स

विवेकानंद सिंह हमारे देश में लाखों बच्चे ऐसे हैं, जिनके पास आज भी किताबें खरीदने के लिए पूरे पैसे नहीं होते. राजस्थान के जयपुर जिला स्थित रावपुरा गांव के रहनेवाले शंकर यादव के पास भी अपने सिलेबस के अलावा अन्य किताबें खरीदने के लिए पैसे नहीं थे. वे किसी तरह से अपनी पढ़ाई को जारी […]

विवेकानंद सिंह
हमारे देश में लाखों बच्चे ऐसे हैं, जिनके पास आज भी किताबें खरीदने के लिए पूरे पैसे नहीं होते. राजस्थान के जयपुर जिला स्थित रावपुरा गांव के रहनेवाले शंकर यादव के पास भी अपने सिलेबस के अलावा अन्य किताबें खरीदने के लिए पैसे नहीं थे. वे किसी तरह से अपनी पढ़ाई को जारी रखे हुए थे. शंकर यादव ने तब एक सपना देखा कि वह कुछ ऐसा करेंगे, जिससे उनके जैसे बच्चों को किताबें खरीदने की जरूरत ही न रहे. इस समस्या का समाधान शंकर को डिजिटल एप्स में नजर आया. किसी इंजीनियरिंग की डिग्री लिये बिना 21 साल के शंकर अब तक 30 से ज्यादा एजुकेशनल एप्स बनाचुके हैं.
ये सारे एप्स गूगल प्ले स्टोर पर फ्री में उपलब्ध हैं, जिन्हें कोई भी वहां से डाउनलोड कर सकता है. शंकर द्वारा बनाये गये ये एप्स ऑफलाइन काम करते हैं, जो टाइम-टू-टाइम ऑटोमेटिक अपडेट भी लेते हैं.
अपने गांव को डिजिटल बनाने की पहल में शंकर ने एसआर डेवलपर्स के नाम से अपनी कंपनी भी शुरू की है. शंकर ने बताया कि लगभग आठ महीने पहले ही इन एप्स को गूगल प्ले स्टोर पर डाला गया था. खास बात है कि अब तक इनके एप्स को 20 लाख से ज्यादा लोग डाउनलोड कर चुके हैं. गूगल प्ले स्टोर पर शंकररावपुरा डॉट कॉम (shankarraopura.com) सर्च करने पर ये सारे एप्स डाउनलोड के लिए उपलब्ध हो जाते हैं.
कैसे मिला एप्स बनाने का आइडिया : वर्ष 2009 में शंकर जब आठवीं कक्षा के छात्र थे, तब गांव के सरकारी स्कूल के शिक्षक शिवचरण मीणा ने शंकर को प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने हेतु प्रश्नों के उत्तर ऑनलाइन खोजने की सलाह दी. तब शंकर को एहसास हुआ कि ऑनलाइन भी पढ़ाई की जा सकती है. शंकर के मुताबिक, यह पहला मौका था, जब उन्हें लगा कि किताबों को भी डिजिटल स्वरूप में एक्सेस किया जा सकता है. इसके बाद शंकर की रुचि कंप्यूटर में बढ़ने लगी. कंप्यूटर में बेटे की बढ़ती रुचि को देख शंकर के पिता कल्लूराम यादव ने कठिन आर्थिक परिस्थितियों के बावजूद कंप्यूटर खरीदा. इसके बाद शंकर पढ़ाई के साथ-साथ कंप्यूटर पर भी समय बिताने लगे. इस दौरान वे गूगल पर एप्स बनाने की विधि को सर्च किया करते थे.
एंड्रॉयड डेवलपमेंट की ली ट्रेनिंग : शंकर ने रावपुरा स्थित सरकारी स्कूल से वर्ष 2011 में 10वीं बोर्ड की परीक्षा पास की. फिर गांव के ही एक प्राइवेट प्लस-टू स्कूल से गणित विषय से 12वीं पास किया. एप्स को लेकर शंकर की दिलचस्पी इस तरह बढ़ी कि वे प्रोग्रामिंग सीखने की ऑनलाइन क्लासेज के बारे में सर्च करने लगे. इसी क्रम में वे एंड्रॉयड डेवलपमेंट की ट्रेनिंग लेने बेंगलुरु स्थित एक संस्थान पहुंच गये. कुछ महीने बेंगलुरु में रह कर उन्होंने प्रोग्रामिंग का कोर्स किया.
डिजिटल इंडिया मुहिम से मिली ताकत
शंकर बताते हैं कि एंड्रॉयड डेवलपमेंट का कोर्स करने के बाद वे गांव लौट आये थे. इसी दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू किये गये डिजिटल इंडिया मुहिम ने उन्हें प्रेरित किया. शंकर ने फिर पीछे मुड़ कर नहीं देखा और एक के बाद एक एजुकेशनल एप्स बनाते चले गये. एजुकेशनल एप्स के अलावा शंकर ने धर्म, स्वास्थ्य, खेल आदि से संबंधित एप्स भी बनाये हैं. एप्स के कंटेंट जेनरेशन में उनके कई शिक्षकों और दोस्तों ने मदद की. अभी शंकर समेत चार अन्य लोगों की एक टीम है, जो एप्स को अपडेट रखने में उनका सहयोग करते हैं. शंकर बताते हैं कि गांव में इंटरनेट व नेटवर्क की अनुपलब्धता को देखते हुए उन्होंने एप्स को ऑफलाइन यूज के लिए तैयार किया है.
अपने गांव को भी बनाया डिजिटल
शंकर अपने गांव के पहले एप डेवलपर हैं. शंकर ने अपने गांव की हर छोटी-बड़ी जानकारी से लैस डिजिटल रावपुरा नाम से एक एप तैयार किया है. इसके लिए उन्होंने खुद से एक बेवसाइट भी लॉन्च की, जिसमें गांव की सभी जानकारियों को उसमें डाला. शंकर की इस पहल के लिए शाहपुरा पंचायत के ग्रामीणों ने उन्हें सम्मानित भी किया है. शंकर के पिता कल्लूराम यादव एक किसान हैं और उनकी माता ज्याना देवी गृहिणी हैं. शंकर बताते हैं कि इन एप्स से थोड़ी कमाई भी होने लगी है, लेकिन उन्हें मिल रही तारीफ से उनके माता-पिता ज्यादा खुश हैं.
प्रतियोगी परीक्षा को ध्यान में रख बनाये एप्स
शंकर ने सभी एजुकेशन एप्स को 10वीं और 12वीं बच्चों व प्रतियोगी परीक्षा को ध्यान में रख कर बनाया हैं.विज्ञान, गणित, भूगोल व सोशल साइंस के अलावा भारतीय संविधान, राजस्थान की संस्कृति, जेनरल नॉलेज से जुड़े एप्स भी बनाये हैं. इनके भौतिक विज्ञान समेत दर्जनों एप को 50 हजार से ज्यादा लोग इंस्टॉल कर चुके हैं. शंकर के मुताबिक, हर दिन उनके एप्स को लगभग एक करोड़ व्यूज मिलते हैं. शंकर कहते हैं कि एड से नॉर्मल इनकम हो जाती है, जिससे अपडेट करने का खर्च निकल जाता है. शंकर का मानना है कि एप्स एक ऐसा जरिया है, जिससे देश का बच्चा-बच्चा आसानी से शिक्षित हो सकता है.

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