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फ्रांस में चुनाव : माक्रों की पार्टी प्रचंड बहुमत की ओर, यूरोपीय राजनीति ने ली नयी करवट
यूरोप की राजनीति तेज बदलाव के दौर से गुजर रही है. अभी एक महीने पहले तक धुर-दक्षिणपंथ की बढ़त पर चिंता जतायी जा रही थी और स्थापित राजनीति में ही कोई समाधान खोजने की कोशिशें हो रही थीं, पर फ्रांस में माक्रों की जीत ने यूरोप की साझी व्यवस्था को नया जीवनदान दे दिया, जिसे […]
यूरोप की राजनीति तेज बदलाव के दौर से गुजर रही है. अभी एक महीने पहले तक धुर-दक्षिणपंथ की बढ़त पर चिंता जतायी जा रही थी और स्थापित राजनीति में ही कोई समाधान खोजने की कोशिशें हो रही थीं, पर फ्रांस में माक्रों की जीत ने यूरोप की साझी व्यवस्था को नया जीवनदान दे दिया, जिसे ब्रिटेन के ब्रेक्जिट जनमत संग्रह और ली पेन की बढ़ती लोकप्रियता ने संकट में डाल दिया था.
अब फ्रांस की संसद के चुनाव में माक्रों की नवोदित पार्टी को विशाल बहुमत मिलने के स्पष्ट आसार दिख रहे हैं. दिलचस्प है कि स्थापित पार्टियां अपना वर्चस्व खो चुकी हैं और बड़ी संख्या में ऐसे लोग इस बार संसद पहुंचेंगे, जिन्होंने कभी सक्रिय स्तर पर राजनीति नहीं की. इनमें युवाओं की संख्या भी बहुत है.
अगर इस चुनाव को ब्रिटेन के संसदीय चुनाव के साथ मिला कर देखा जाये, तो यह उम्मीद बंधती है कि उग्र-राष्ट्रवाद, संरक्षणवाद और नस्लीय विशिष्टता की राजनीति को जोरदार झटका लगा है, जिसे ब्रेक्जिट और अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की जीत के बाद तेजी मिली थी. हालांकि अभी नीतिगत और कूटनीतिक स्तर पर मैक्रों और उनकी पार्टी का कामकाज देखा जाना है, पर अभी यह तो कहा जा सकता है कि यह दुनिया के लिए एक अच्छी खबर है. फ्रांस के संसदीय चुनाव के विभिन्न पहलुओं पर आधारित इन-डेप्थ की प्रस्तुति…
पुष्प रंजन
(ईयू-एशिया न्यूज के नयी दिल्ली संपादक)
बस वोट का एक आखिरी राउंड रविवार को है, उसके बाद फ्रांस की संसद में किस पार्टी के कितने सभासद चुने गये, यह परिदृश्य स्पष्ट हो जाना है. रविवार से पहले ही संसदीय चुनाव पर नजर गड़ाये राजनीतिक पंडितों ने मान लिया है कि राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों की पार्टी ‘आं मार्श’ को बड़ा बहुमत मिलेगा. फ्रांस की संसद, ‘असेंबली नेशनाले’ की 577 सीटों में से 445 पर ‘आं मार्श’ और उसकी हम मिजाज पार्टी ’मोडेम’ का कब्जा हो जाना संभव है, ऐसा आकलन इस चुनाव पर नज़र रखनेवाले कर रहे हैं.
पहले राउंड में इस गठबंधन को 32.3 फीसदी मत मिले हैं. प्रतिद्वंद्वी रूढ़िवादी ‘लेस रिपब्लिकंस पार्टी’ को 21.5 प्रतिशत वोट प्राप्त हुए हैं. धुर दक्षिणपंथी, ‘नेशनल फ्रंट’ की नेता मारीन ली पेन का जबरदस्त माहौल था, मगर जब गिनती हुई तो उन्हें मात्र 13.2 फीसद वोट मिले. ऐसा प्रतीत होता है कि फ्रांस के संसदीय चुनाव परिणाम के बाद यूरोप में दक्षिणपंथ की राजनीतिक बुलेट ट्रेन में ब्रेक लगने वाली है.
नयी पार्टी, नये चेहरे
एक साल पूरे होते-होते ‘आं मार्श’ नामक आंदोलन का कब्जा राष्ट्रपति भवन से लेकर संसद तक हो जाये, ऐसी परिघटना फ्रांस ही नहीं, पूरे यूरोप के इतिहास में कम देखने को मिलती है. संसद की 577 सीटों के लिए इस बार 7,882 उम्मीदवार जोर-आजमाइश कर रहे हैं. माक्रों ने 266 महिला प्रत्याशियों को उतारा था. ऐसे 219 प्रत्याशी हैं, जिन्होंने पहले कभी राजनीति नहीं की है. इस बार रिपब्लिकन और सोशलिस्ट दोनों पार्टियों को जनता ने नकार दिया है. रविवार को अंतिम चरण के मतदान के बाद सत्ता समीकरण में बदलाव तय है. और यह भी तय है कि राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों की पार्टी चाहे जितनी लोकप्रिय रही हो, उसे संसद चलाने के वास्ते गठबंधन साथी की आवश्यकता पड़ेगी ही.
फ्रांस की संसद, और शासन व्यवस्था
फ्रांस की संसद द्विसदनात्मक है. निचले सदन ‘असेंबली नेशनाले’ के लिए 577 सांसद (फ्रांस में इन्हें ‘डेपेयटे’ कहते हैं), निर्वाचित होते हैं. हर पांच वर्ष पर संसद का चुनाव होता है. ऊपरी सदन ’सीनेट’ की क्षमता 348 सदस्यों वाली है. सीनेट की अवधि छह साल की है, आधे लोग हर तीन साल पर सीनेट के वास्ते चुने जाते हैं. संसद का एक ही सत्र होता है, जिसकी अवधि नौ महीने की होती है. फ्रांस का राष्ट्रपति सेना का सर्वोच्च कमांडर होता है. वित्त मंत्रालय से लेकर और सरकार के सभी महत्वपूर्ण महकमे उसके अधीन होते हैं. प्रधानमंत्री किसे बनना है, यह भी फ्रांस का राष्ट्रपति तय करता है. सप्ताह में एक बार 30 से 40 सदस्यीय कैबिनेट (ले कौंसिल देस मिनिस्टर) की बैठक होती है, जिसे राष्ट्रपति आहूत करता है. यों, कैबिनेट का नेता प्रधानमंत्री होता है, लेकिन बैठक की अध्यक्षता राष्ट्रपति करता है, और किसी भी निर्णय पर अंतिम मुहर राष्ट्रपति की लगती है.
संसद में किस गठबंधन की सत्ता थी?
इस चुनाव के पहले तक संसद के निचले सदन ‘असेंबली नेशनाले’ में सोशलिस्टों का वर्चस्व था. मगर, सीनेट में दक्षिणपंथी ताकतवर थे. ‘असेंबली नेशनाले’ में फ्रेंच सोशलिस्ट पार्टी के 258 सांसद, 18 की संख्या वाले वामपंथी ‘डीवीजी’ के सभासद, पर्यावरण को मुख्य अजेंडा बनाकर चलनेवाली द ग्रीन्स (ईईएलवी) के 16 सांसद, रैडिकल लेफ्ट पीआरजी के 11 सांसद, और सिटीजन एंड रिपब्लिकन मूवमेंट (एमआरसी) के तीन सभासदों को मिलाकर कुल जमा 306 सांसद सत्ता पक्ष में थे.
फ्रांस में समाजवादी क्यों विफल हुए?
पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद की लोकप्रियता को लेकर फ्रांस से बाहर यही लगता था कि इस देश में समाजवाद की जड़ें गहरी हैं. मगर, उसकी जड़ों में पार्टी के भीतर कुछ नेता पिछले कुछ वर्षों से मट्ठा डालते जा रहे थे, जिसकी वजह से राष्ट्रपति ओलांद दुखी थे. बेरोजगारी के मोर्चे पर ओलांद सरकार विफल रही थी. लगातार हो रहे आतंकी हमलों को रोक पाने में ओलांद सरकार असफल रही थी. बल्कि, लोग उनके सतही भाषण और राष्ट्रवादी नारों से भी दुखी थे कि सिर्फ वायदे किये जा रहे हैं, परिणाम का पता नहीं है. ओलांद सरकार अवैध प्रेम संबंधों को लेकर कुख्यात हो चुकी थी.
जनवरी 2014 में जब राष्ट्रपति के संबंधों की खबर ’क्लोजर’ नामक पत्रिका ने छापी तो फ्रांस की राजनीति में हंगामा बरपा हो गया. ओलांद सरकार में एक बजट मंत्री हुआ करते थे जेरोमे काहूजाक, वे कर चोरी में पकड़े गये. स्वीट्जरलैंड से लेकर सिगापुर तक इस मंत्री द्वारा टैक्स घपले की कुंडली तैयार की गयी, और अदालत ने उन्हें तीन साल की सजा सुनायी. ओलांद खुद तो डूबे ही, अपनी पार्टी के जनाधार को लेकर भी डूब गये. चुनांचे, ओलांद ने चुनाव नहीं लड़ने का फैसला लिया. आखिरी समय में इस स्थिति के लिए पार्टी के भीतर तैयारी नहीं थी. दूसरी पांत का पता नहीं था. उस समय ऐसा नेता चाहिए था, जो डैमेज कंट्रोल के साथ वोटरों में विश्वास पैदा करता. फ्रांस में समाजवादी सरकार के पतन के ये प्रमुख कारण रहे हैं.
रोजगार का सवाल
ओलांद की मुसीबतें 2014 से ही शुरू हुई थी, जब उन्होंने 36 साल के इमानुएल माक्रों को अपनी सरकार में अर्थ मंत्री बनाया. माक्रों उद्योगपति कुनबे ‘रोथ्सचाइल्ड’ के इन्वेस्टमेंट बैंकर रह चुके थे. माक्रों की नीतियां इंडस्ट्री और बड़े कारोबारियों को भाने लगीं. माक्रों ने स्टोर्स और माॅल में काम के घंटे बढ़ाये, रविवार को कारोबार होने लगा. एक ऐसा कानून बनाया, जिसमें उद्योगवाले जब चाहे कर्मचारियों को नौकरी से चलता कर सकते थे. माक्रों की इस ‘हायर एंड फायर’ नीति ने सत्ताधारी समाजवादियों के लिए मुश्किल कर दिया कि वे जनता को जवाब दें, तो कैसे. वर्ष 2017 के शुरूआती पांच महीने में जर्मनी में तीन फीसदी और ब्रिटेन में 4.6 प्रतिशत बेरोजगारी से त्राहिमाम की स्थिति थी. इनसे भी भीषण 9.6 फीसदी ‘डबल डिजीट’ बेरोजगारी फ्रांस झेल रहा है. लेकिन यह सारा ठीकरा पूर्व राष्ट्रपति ओलांद के सिर ही फोड़ा गया. माक्रों ने फांस को बिजनेस फ्रेंडली मुल्क बनाने और कारपोरेट टैक्स कम करने का अहद कर रखा है. इससे क्या रोजगार सृजन संभव है, इस प्रश्न का उत्तर पाने के लिए कुछ महीने प्रतीक्षा करनी होगी!
बदल जायेगी संसद!
माक्रों के राष्ट्रपति चुने जाने के एक महीने बाद 11 जून को फ्रांस में संसदीय चुनाव के पहले चरण के लिए मत पड़े हैं. इस चुनाव के जरिये मतदाता 577 सांसदों का चुनाव करेंगे.
क्यों महत्वपूर्ण है यह चुनाव
माक्रों श्रम कानूनों में बदलाव, भरती व छंटनी को आसान बनाने, कॉरपोरेट टैक्स को कम करने, नौकरी के लिए प्रशिक्षण देने और अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में अरबों रुपये का निवेश करने के वादों के साथ जीते हैं. लेकिन अगर उन्हें संसद में बहुमत नहीं मिलता है, तो उनके लिए कानून बनाना और अपने सुधारवादी एजेंडे को लागू करना मुश्किल हो जायेगा. यहां बेरोजगारी दर 10 प्रतिशत के आसपास पहुंचनेवाली है, एेसे में सुधार की बहुत ज्यादा जरूरत है.
चुनावी प्रक्रिया
फ्रांस के चुनाव में हर जिला शामिल होता है और प्रत्येक जिला राष्ट्रीय परिषद के लिए सांसदों का चुनाव करता है. पहले चरण में ११ जून को हुए चुनाव में जिन प्रत्याशियों ने हिस्सा लिया है, अगर उन्हें 50 प्रतिशत से अधिक मत मिलता है तो वे परिषद के लिए चुन लिये जायेंगे. लेकिन अगर ऐसा नहीं होता है तो जिन प्रत्याशियों को पहले चरण में 12.5 प्रतिशत से अधिक मत मिला है, वे 18 जून को दूसरे चरण के लिए होने वाले मतदान में शामिल होंगे.
चुनाव लड़ रहीं पार्टियां
इस चुनाव में चार दल भाग ले रहे हैं, मैक्रों की रिपब्लिक ऑन द मूव (सेंट्रिस्ट), द रिपब्लिकन्स (सेंटर-राइट कंजर्वेटिव), ली पेन की नेशनल फ्रंट (फार-राइट) और सोशलिस्ट पार्टी (सेंटर-लेफ्ट). चुनाव में माक्रों की सफलता उल्लेखनीय है क्योंकि महज एक वर्ष से कुछ समय पहले ही उन्होंने यह पार्टी बनायी थी और आज इसने फ्रांस की राजनीति में परंपरागत दो दलों के वर्चस्व को तोड़कर रख दिया है. संसदीय चुनाव इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इसमें सोशलिस्ट पार्टी, जो पिछले पांच वर्षों से सत्तारूढ़ थी, का अस्तित्व दांव पर है.
इस चुनाव में सोशलिस्ट पार्टी को महज 15 से 30 सीटें मिलने का अनुमान जताया गया है. इधर रिपब्लिकन पार्टी, सर्वेक्षण में जिसे दूसरा स्थान दिया गया है, की एकता भी खतरे में है, क्योंकि माक्रों को समर्थन देने पर यह पार्टी बंटी हुई नजर आ रही है. ली पेन की नेशनल फ्रंट, जिसने राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीद से कहीं कमजोर प्रदर्शन किया, के इस बार बेहतर प्रदर्शन करने की उम्मीद है. पूर्व में इसके दो सांसद थे, लेकिन उम्मीद है कि इस बार उनकी संख्या कुछ बढ़ जायेगी.
क्या कहते हैं जनमत सर्वेक्षण
माक्रों की पार्टी और इसके सेंटर-राइट सहयोगियों को कम से कम 30 प्रतिशत मत मिलने की संभावना जतायी गयी है, जबकि रिपब्लिकन और इसके सहयोगियों को लगभग 20 और नेशनल फ्रंट को 17 प्रतिशत मत मिलने की संभावना है.
जनमत सर्वेक्षण बता रहे हैं कि दूसरे चरण का यह परिणाम भारी जीत में परिवर्तित हो जायेगा. हालांकि संसद के निचले सदने की 577 संसदीय क्षेत्रों के लिए भविष्यवाणी करना मुश्किल होता है, विशेषकर तब जब 7,882 उम्मीदवार इन सीटों के लिए एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा कर रहे हों. इस चुनाव में माक्रों के प्रतिद्वंद्वी भी उनके बहुमत प्राप्त करने की उम्मीद जता रहे हैं.
पिछले कुछ दिनों से एक रणनीति के तहत मतदाताओं को प्रेरित किया जा रहा है कि वे अपने मत के जरिये संसद में बड़े व दमदार विपक्ष का होनासुनिश्चित करें.
महत्वपूर्ण तथ्य
– 289 का आंकड़ा बहुत महत्वपूर्ण है और बहुमत के लिए माक्रों को कम से कम इतनी सीटें जितनी होंगी.
– यह देखना भी दिलचस्प होगा कि फ्रांस के राजनीतिक परिदृश्य को माक्रों की नयी पार्टी किस तरह से पुनर्रेखांकित करेगी.
– पिछली संसद में सोशलिस्ट पार्टी बहुमत में थी और इसके पास 331 सांसद थे, इस बार इसके 30 के आसपास सिमट जाने का अनुमान है.
– मरीन ली पेन की नेशनल फ्रंट पार्टी के प्रदर्शन पर भी नजर रखने की जरूरत है कि क्या यह पार्टी राष्ट्रपति चुनाव में मजबूत समर्थन हासिल करेगी और पूर्व के अपने दो सांसदों की संख्या में इजाफा करेगी.
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